औरंगजेब ने आम की दो किस्मों को संस्कृत नाम दिए
बनारस हिंदू विश्वविद्यालय में एक मुस्लिम स्कॉलर को संस्कृत विभाग में अस्सिटेंट प्रोफेसर बनाने पर विवाद हो गया है. हालांकि हकीकत ये है मुगल साम्राज्य ने भी संस्कृत काफी सम्मान दिया था. खुद औरंगजेब को संस्कृत से लगाव था. उसने अपने समय में दो आमों के नाम संस्कृत में ही रखे थे.
मुगल बादशाह औरंगजेब को आम बेहद पसंद थे. आम की अलग-अलग किस्मों को नियमित तौर पर बादशाह अपने पास मंगाता था.
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आम के संस्कृत में नाम
यहां गौर करने वाली बात यह कि जिस औरंगजेब को हिंदुओं से नफरत के लिए जाना जाता है उसी औरंगजेब ने अपने बेटे के कहने पर आम की दो अलग-अलग किस्मों को संस्कृत में नाम दिए. औरंगजेब ने एक आम का नाम सुधारस रखा और दूसरे का नाम रसना विलास रखा.
इन दो आमों को दरअसल औरंगज़ेब ने संस्कृत नाम दिए थे. संस्कृत के शब्द सुधा का मतलब नेक्टर होता है और दूसरे शब्द रस का अर्थ जूस होता है. संस्कृत शब्द रसना का अर्थ हिंदी में जीभ होता है जबकि विलास का अर्थ हिंदीं में आनंद होता है. साफ है कि औरंगज़ेब संस्कृत भाषा को काफी अच्छे से जानता था.
अपनी प्रसिद्ध पुस्तक 'संस्कृति के चार अध्याय' में रामधारी सिंह 'दिनकर' ने लिखा है कि बोलचाल में भी मुस्लिम बादशाह संस्कृत शब्दों का इस्तेमाल करते रहते थे. वजह ये थी कि संस्कृत शब्द उस समय देश में अधिक समझे जाते थे.
औरंगजेब को आम को लेकर पड़ी डांट
बात जब संस्कृत और आम की हो रही है तो ये कहना चाहिए औरंगजेब को आम काफी पसंद थे,जिसके चलते उन्हें पिता की डांट खानी पड़ी. दरअसल दक्कन में दो आमों के पेड़ पर चौबीस घंटे पहरा रहता था. बादशाह शाहजहां को इन पेड़ों के आम काफी पसंद थे. सीजन आने पर जब इन पेड़ों के कुछ आम बादशाह को भेजे गए तो शाहजहां काफी नाराज हुआ.
दरअसल आम काफी कम थे और वह खराब हो चुके थे. उस वक्त औरंगजेब दक्कन का गवर्नर था. औरंगजेब ने अपनी बचाव में अपने पिता को लिखा कि आंधी तूफान की वजह से ऐसा हुआ. आदाब ए आलमगीरी में यह पत्र संकलित है.
औरंगजेब
पूरे भारत में मिलते थे आम
फ्रांसिस बर्नियर के मुताबिक़ गर्मियों के दो महीनों में आम काफी भारी संख्या में मिलता था. ये काफी सस्ता होता था लेकिन जो दिल्ली में उगाया जाता था वह काफी अलग होता था. आईने अकबरी के मुताबिक़ सबसे अच्छा आम बंगाल, गोलकुंडा और गोआ से आता था. आम पूरे भारत में पाए जाते थे खासतौर से बंगाल, गुजरात, मालवा, ख़ानदेश और दक्कन.
(‘ औरंगजेब नायक या खलनायक ’ किताब के पहले खंड से उद्धृत)
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