Begam Akhtar Birth Anniversary: बेगम अख्तर की गजल के दीवाने थे जसराज, लेकिन दर्द भरी थी जिंदगी
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Agency:News18Hindi
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Begam Akhtar Birth Anniversary: पंडित जसराज छुटपन में बेगम अख्तर की गजल के दीवाने थे. स्कूल से आते-जाते समय रास्ते में पड़ने वाले एक होटल में बेगम अख्तर की गजल बजती रहती थी. पंडित जसराज बहुत मन से उसे सुना करते थे. 'दीवाना बनाना है तो दीवाना बना दे' उनकी पसंदीदा गजल थी.
आज सुर साम्राज्ञी बेगम अख्तर का जन्मदिन है. Begam Akhtar Birth Anniversary: आज 7 अक्टूबर को बेगम अख्तर का जन्मदिन है. बेगम अख्तर को गज़ल की मल्लिका कहा जाता था. बेगम साहिबा को बचपन में सब बिब्बी कहकर पुकारते थे. बेगम अख्तर फैजाबाद के शादीशुदा वकील असगर हुसैन और तवायफ मुश्तरीबाई की बेटी थीं. शायद यही वजह है कि संगीत की तालीम उन्हें शुरू से मिली और उन्होंने दादरा और ठुमरी गायन में अपना परचम बुलंद किया. बेगम साहिबा की आवाज में एक मीठा सा दर्द हमेशा छलकता था.
छोटी उम्र में शुरू किया गाना:
बेगम अख्तर ने सात साल की कच्ची उम्र से ही गाने का रियाज शुरू कर दिया था. हालांकि, उनकी मां मुश्तरीबाई चाहती थीं कि बेगम अख्तर पढ़ाई लिखाई में दिल लगाएं. लेकिन बेगम अख्तर का मन हमेशा गाने बजाने में ही रमता देखकर उनकी मां ने उनकी संगीत शिक्षा घर में ही शुरू करवा दी.
इसे भी पढ़ें: क्यों डरें ज़िन्दगी में क्या होगा, पढ़ें 'जादू' जावेद अख्तर की शायरी
बेगम अख्तर की गजल के दीवाने थे जसराज:
पंडित जसराज छुटपन में बेगम अख्तर की गजल के दीवाने थे. स्कूल से आते-जाते समय रास्ते में पड़ने वाले एक होटल में बेगम अख्तर की गजल बजती रहती थी. पंडित जसराज बहुत मन से उसे सुना करते थे. 'दीवाना बनाना है तो दीवाना बना दे' उनकी पसंदीदा गजल थी.
पद्मश्री और पद्मभूषण से नवाजी गईं बेगम अख्तर:
बेगम अख्तर को उनकी सुरीली आवाज के कारण सुर साम्राज्ञी भी कहा जाता है. बेगम अख्तर को भारत सरकार ने पद्मश्री और पद्मभूषण से सम्मानित किया था. इसके अलावा बेगम अख्तर के नाम संगीत नाटक अकादमी पुरस्कार और कई अन्य प्रतष्ठित पुरस्कार भी थे. बेगम अख्तर ने कई शायरों की गजलों को अपनी आवाज दी. इसमें से एक है मोमिन की गज़ल. आज हम आपके लिए रेख्ता के साभार से लाए हैं मोमिन की गज़ल.
1. वो जो हम में तुम में क़रार था तुम्हें याद हो के न याद हो
वही यानी वादा निभाने का तुम्हें याद हो के न याद हो
वो नये गिले वो शिकायतें वो मज़े मज़े की हिकायतें
वो हर एक बात पे रूठना तुम्हें याद हो के न याद हो
कोई बात ऐसी अगर हुई जो तुम्हारे जी को बुरी लगी
तो बयाँ से पहले ही भूलना तुम्हें याद हो के न याद हो
सुनो ज़िक्र है कई साल का, कोई वादा मुझ से था आप का
वो निभाने का तो ज़िक्र क्या, तुम्हें याद हो के न याद हो. (मोमिन)
झेलना पड़ा था बलात्कार का दंश भी:
माना जाता है कि बेगम अख्तर ने 13 साल की उम्र में बलात्कार का दंश भी झेला था. कहा जाता है कि बिहार के राजा ने बेगम अख्तर से हमदर्दी जताते हुए उनके विश्वास का नाजायज फायदा उठाया था और उनकी अस्मिता से खिलवाड़ किया था.
छोटी उम्र में शुरू किया गाना:
बेगम अख्तर ने सात साल की कच्ची उम्र से ही गाने का रियाज शुरू कर दिया था. हालांकि, उनकी मां मुश्तरीबाई चाहती थीं कि बेगम अख्तर पढ़ाई लिखाई में दिल लगाएं. लेकिन बेगम अख्तर का मन हमेशा गाने बजाने में ही रमता देखकर उनकी मां ने उनकी संगीत शिक्षा घर में ही शुरू करवा दी.
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बेगम अख्तर की गजल के दीवाने थे जसराज:
पंडित जसराज छुटपन में बेगम अख्तर की गजल के दीवाने थे. स्कूल से आते-जाते समय रास्ते में पड़ने वाले एक होटल में बेगम अख्तर की गजल बजती रहती थी. पंडित जसराज बहुत मन से उसे सुना करते थे. 'दीवाना बनाना है तो दीवाना बना दे' उनकी पसंदीदा गजल थी.
पद्मश्री और पद्मभूषण से नवाजी गईं बेगम अख्तर:
बेगम अख्तर को उनकी सुरीली आवाज के कारण सुर साम्राज्ञी भी कहा जाता है. बेगम अख्तर को भारत सरकार ने पद्मश्री और पद्मभूषण से सम्मानित किया था. इसके अलावा बेगम अख्तर के नाम संगीत नाटक अकादमी पुरस्कार और कई अन्य प्रतष्ठित पुरस्कार भी थे. बेगम अख्तर ने कई शायरों की गजलों को अपनी आवाज दी. इसमें से एक है मोमिन की गज़ल. आज हम आपके लिए रेख्ता के साभार से लाए हैं मोमिन की गज़ल.
1. वो जो हम में तुम में क़रार था तुम्हें याद हो के न याद हो
वही यानी वादा निभाने का तुम्हें याद हो के न याद हो
वो नये गिले वो शिकायतें वो मज़े मज़े की हिकायतें
वो हर एक बात पे रूठना तुम्हें याद हो के न याद हो
कोई बात ऐसी अगर हुई जो तुम्हारे जी को बुरी लगी
तो बयाँ से पहले ही भूलना तुम्हें याद हो के न याद हो
सुनो ज़िक्र है कई साल का, कोई वादा मुझ से था आप का
वो निभाने का तो ज़िक्र क्या, तुम्हें याद हो के न याद हो. (मोमिन)
झेलना पड़ा था बलात्कार का दंश भी:
माना जाता है कि बेगम अख्तर ने 13 साल की उम्र में बलात्कार का दंश भी झेला था. कहा जाता है कि बिहार के राजा ने बेगम अख्तर से हमदर्दी जताते हुए उनके विश्वास का नाजायज फायदा उठाया था और उनकी अस्मिता से खिलवाड़ किया था.
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