ब्लड डोनेट करने से क्या सच में हो जाती है खून की कमी, अपोलो के बड़े डॉक्टर की बातें हैरान कर देंगी आपको, लोग क्यों डरते हैं इतना
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Blood Donating cause Anemia: अक्सर लोग ब्लड डोनेट करने से डरते हैं. लोगों का मानना होता है कि इससे शरीर में खून की कमी हो जाती है जिससे कमजोरी बढ़ जाती है. आखिर इस बात में कितनी सच्चाई है. इसी बात को जानने के लिए हमने अपोलो अस्पताल, नई दिल्लील में इंटरनल मेडिसीन के बड़े फिजिशियन डॉ. राकेश गुप्ता से बात की.

Blood Donating cause Anemia: कहा जाता है कि रक्त दान महा दान. यह ऐसा दान है जिससे किसी का जिंदगी वापस आ जाती है. कई लोग मौत के मुंह से बाहर आ जाते हैं. इतना महादान होने के बावजूद अक्सर लोगों में ब्लड डोनेट के नाम पर खौफ रहता है. कुछ लोगों का मानना है कि खून दान करने से शरीर में खून की भारी कमी हो जाती है और इसके बाद बहुत ज्यादा परेशानी होने लगती है.कुछ लोग तो इतने खौफ में रहते हैं वे जीवन में कभी भी ब्लड डोनेट नहीं करते. इन्हें कितना भी समझाया जाए ये कभी किसी की बात नहीं मानेंगे. तो क्या सच में खून दान करने से शरीर में खून की कमी हो जाती है या शरीर में कमजोरी हो जाती है. इस बात को जानने के लिए हमने देश के सबसे बड़े डॉक्टरों में एक अपोलो अस्पताल के सीनियर फिजीशियन डॉ. राकेश गुप्ता से बात की.
48 घंटे में बन जाता है दोबारा खून
डॉ. राकेश गुप्ता ने बताया कि पहले तो यह समझ लीजिए कि हमारे शरीर में 5 से साढ़े पांच लीटर खून होता है और आप जब किसी को खून देते हैं 300 एमएल के करीब देते हैं. 300 एमएल खून को शरीर में दोबारा से बनने में 48 घंटे का समय लगता है. इसलिए अगर कोई व्यक्ति खून दान करता है तो इतने समय में दोबारा से खून बन जाएगा. इसलिए अगर व्यक्ति हेल्दी है और वह खून डोनेट करता है तो खून की कमी का कोई सवाल ही नहीं. दूसरी बात यह है कि अगर किसी व्यक्ति के शरीर में हीमोग्लोबिन कम है तो डॉक्टर ऐसे व्यक्तियों के शरीर से खून निकालेगा ही नहीं. फिर तो उसी व्यक्ति को खून चढ़ाने की जरूरत पड़ सकती है. इसलिए यह कहना कि ब्लड डोनेट करने से खून की कमी हो जाती है या कमजोरी होती है, यह बात पूरी तरह से गलत है.
डॉ. राकेश गुप्ता ने बताया कि पहले तो यह समझ लीजिए कि हमारे शरीर में 5 से साढ़े पांच लीटर खून होता है और आप जब किसी को खून देते हैं 300 एमएल के करीब देते हैं. 300 एमएल खून को शरीर में दोबारा से बनने में 48 घंटे का समय लगता है. इसलिए अगर कोई व्यक्ति खून दान करता है तो इतने समय में दोबारा से खून बन जाएगा. इसलिए अगर व्यक्ति हेल्दी है और वह खून डोनेट करता है तो खून की कमी का कोई सवाल ही नहीं. दूसरी बात यह है कि अगर किसी व्यक्ति के शरीर में हीमोग्लोबिन कम है तो डॉक्टर ऐसे व्यक्तियों के शरीर से खून निकालेगा ही नहीं. फिर तो उसी व्यक्ति को खून चढ़ाने की जरूरत पड़ सकती है. इसलिए यह कहना कि ब्लड डोनेट करने से खून की कमी हो जाती है या कमजोरी होती है, यह बात पूरी तरह से गलत है.
किसे कमजोरी हो सकती है
डॉ. राकेश गुप्ता ने बताया कि अगर व्यक्ति हेल्दी है, उसका हीमोग्लोबिन हेल्दी है और खून से संबंधित कोई इंफेक्शन नहीं है तो खून दान करने से कुछ नहीं होता. अगर व्यक्ति को थोड़ी हीमोग्लोबिन की कमी है तो हल्का कमजोरी या सिर दर्द हो सकता है लेकिन यह बहुत ही कम लोगों में होता है. ऐसा सोचना गलत है. लेकिन यह भी सोचिए कि यदि किसी को खून की कमी है तो डॉक्टर उसका खून लेंगे ही नहीं क्योंकि खून डोनेट करने से पहले खून से संबंधित इंफेक्शन और हीमागोल्बिन की जांच की जाती है. साथ डॉक्टर ब्लड डोनेट करने वालों से कुछ सवाल पूछते हैं जिसके आधार पर यह जानकारी हासिल की जाती है कि उसे खून से संबंधित कोई क्लीनिकली परेशानी तो नहीं है.
डॉ. राकेश गुप्ता ने बताया कि अगर व्यक्ति हेल्दी है, उसका हीमोग्लोबिन हेल्दी है और खून से संबंधित कोई इंफेक्शन नहीं है तो खून दान करने से कुछ नहीं होता. अगर व्यक्ति को थोड़ी हीमोग्लोबिन की कमी है तो हल्का कमजोरी या सिर दर्द हो सकता है लेकिन यह बहुत ही कम लोगों में होता है. ऐसा सोचना गलत है. लेकिन यह भी सोचिए कि यदि किसी को खून की कमी है तो डॉक्टर उसका खून लेंगे ही नहीं क्योंकि खून डोनेट करने से पहले खून से संबंधित इंफेक्शन और हीमागोल्बिन की जांच की जाती है. साथ डॉक्टर ब्लड डोनेट करने वालों से कुछ सवाल पूछते हैं जिसके आधार पर यह जानकारी हासिल की जाती है कि उसे खून से संबंधित कोई क्लीनिकली परेशानी तो नहीं है.
कितने दिनों पर ब्लड डोनेट करना है सेफ
जो स्टैंडर्ड मानक है, उसके हिसाब से तीन महीने के बाद कोई भी हेल्दी और वयस्क व्यक्ति ब्लड डोनेट कर सकता है. यही कारण है कि कुछ लोग रेगुलर तीन महीने के बाद ब्लड डोनेट कर देते हैं. सोशल वर्कर अक्सर ऐसा करते हैं. हां, तीन महीने से पहले ब्लड डोनेट नहीं करना चाहिए क्योंकि इससे दिक्कत हो सकती है. अगर बहुत ज्यादा मजबूरी है, जीवन और मौत का सवाल है तो ऐसा किया जा सकता है. इसमें मामूली परेशानी होगी लेकिन दोबारा फिर से खून बन जाएगा
जो स्टैंडर्ड मानक है, उसके हिसाब से तीन महीने के बाद कोई भी हेल्दी और वयस्क व्यक्ति ब्लड डोनेट कर सकता है. यही कारण है कि कुछ लोग रेगुलर तीन महीने के बाद ब्लड डोनेट कर देते हैं. सोशल वर्कर अक्सर ऐसा करते हैं. हां, तीन महीने से पहले ब्लड डोनेट नहीं करना चाहिए क्योंकि इससे दिक्कत हो सकती है. अगर बहुत ज्यादा मजबूरी है, जीवन और मौत का सवाल है तो ऐसा किया जा सकता है. इसमें मामूली परेशानी होगी लेकिन दोबारा फिर से खून बन जाएगा
क्या ब्लड डोनेट करने से फायदा होता है
निश्चित रूप से फायदा होता है. पहला तो यह कि जिसे आप ब्लड डोनेट करते हैं उसके जीवन में नया सवेरा आ सकता है. दूसरा इससे आपको संतोष की प्राप्ति होती है जिसके कारण आपका तनाव बहुत कम हो जाता है. इससे आप रिलेक्स फील करते हैं. भावनात्मक रूप से आप मजबूत हो जाते हैं. कुछ मामलों में फिजिल हेल्थ में भी सुधार हो जाता है. नकारात्मक भावनाओं से आप बाहर आ जाते हैं. इन सबके अलावा आपकी मुफ्त में खून की कई तरह की जांच हो जाती है. एचआईवी, सिफलिस, हेपटाइटिस आदि की जांच हो जाती है.
निश्चित रूप से फायदा होता है. पहला तो यह कि जिसे आप ब्लड डोनेट करते हैं उसके जीवन में नया सवेरा आ सकता है. दूसरा इससे आपको संतोष की प्राप्ति होती है जिसके कारण आपका तनाव बहुत कम हो जाता है. इससे आप रिलेक्स फील करते हैं. भावनात्मक रूप से आप मजबूत हो जाते हैं. कुछ मामलों में फिजिल हेल्थ में भी सुधार हो जाता है. नकारात्मक भावनाओं से आप बाहर आ जाते हैं. इन सबके अलावा आपकी मुफ्त में खून की कई तरह की जांच हो जाती है. एचआईवी, सिफलिस, हेपटाइटिस आदि की जांच हो जाती है.
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LAKSHMI NARAYAN
Excelled with colors in media industry, enriched more than 16 years of professional experience. Lakshmi Narayan contributed to all genres viz print, television and digital media. he professed his contribution i...और पढ़ें
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