PCOS Awareness Month: नजर आएं ये 10 लक्षण तो न करें इग्नोर, हो सकता है पीसीओएस, कारण, रिस्क फैक्टर्स को भी जानें
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What is PCOS: प्रत्येक वर्ष 1 से 30 सितंबर तक 'पीसीओएस अवेयरनेस मंथ' के रूप में सेलिब्रेट किया जाता है. पीसीओएस या पॉलिसिस्टिक ओवरी सिंड्रोम महिलाओं में होने वाली एक हॉर्मोनल समस्या है. इसकी वजह से उनके शरीर में मेल हॉर्मोन एंड्रोजन का लेवल काफी बढ़ जाता है. पीसीओएस के कारण महिलाओं में पीरियड्स इर्रेगुलर हो जाती है. जानें, इसके लक्षण, कारण और उपचार.

PCOS Symptoms and Causes: प्रत्येक वर्ष सितंबर महीने में ‘पीसीओएस अवेयरनेस मंथ 2023’ सेलिब्रेट किया जाता है. 1 से लेकर 30 सितंबर तक मनाए जाने वाले पीसीओएस जागरूकता माह का उद्देश्य पीसीओएस से प्रभावित लोगों के जीवन को बेहतर बनाने में मदद करना. इसके लक्षणों को दूर करने के साथ-साथ इसके जोखिमों को कम करने में मदद करना है. पूरे एक महीने अलग-अलग कार्यक्रम के तहत महिलाओं में होने वाली इस समस्या के प्रति जानकारी देकर लोगों को जागरूक किया जाता है. आइए जानते हैं क्या है पॉलिसिस्टिक ओवरी सिंड्रोम के लक्षण, कारण और उपचार का तरीका.
क्या है पॉलिसिस्टिक ओवरी सिंड्रोम?
फोर्टिस हॉस्पिटल (कल्याण मुंबई) की कंसल्टेंट- प्रसूति एवं स्त्रीरोग विशेषज्ञ डॉ. सुषमा तोमर कहती हैं कि पॉलिसिस्टिक ओवरी सिंड्रोम को पीसीओएस भी कहते हैं. यह महिलाओं में होने वाली एक हॉर्मोनल समस्या है. इसकी वजह से उनके शरीर में एंड्रोजन (पुरुष हॉर्मोन जो महिलाओं में थोड़ी मात्रा में पाई जाती है) का लेवल काफी बढ़ जाता है. पीसीओएस के कारण महिलाओं में हॉर्मोन संबंधी असंतुलन हो जाता है, जिससे पीरियड्स इर्रेगुलर हो जाती है. नेचुरल तरीके से गर्भधारण करना भी कठिन हो जाता है.
फोर्टिस हॉस्पिटल (कल्याण मुंबई) की कंसल्टेंट- प्रसूति एवं स्त्रीरोग विशेषज्ञ डॉ. सुषमा तोमर कहती हैं कि पॉलिसिस्टिक ओवरी सिंड्रोम को पीसीओएस भी कहते हैं. यह महिलाओं में होने वाली एक हॉर्मोनल समस्या है. इसकी वजह से उनके शरीर में एंड्रोजन (पुरुष हॉर्मोन जो महिलाओं में थोड़ी मात्रा में पाई जाती है) का लेवल काफी बढ़ जाता है. पीसीओएस के कारण महिलाओं में हॉर्मोन संबंधी असंतुलन हो जाता है, जिससे पीरियड्स इर्रेगुलर हो जाती है. नेचुरल तरीके से गर्भधारण करना भी कठिन हो जाता है.
भारत में क्यों बढ़ रहे हैं पीसीओएस के मामले?
डॉ. सुषमा तोमर कहती हैं कि देश में यह समस्या तेजी से बढ़ रही है, खासकर शहरी क्षेत्रों में. पॉलिसिस्टिक ओवरी सिंड्रोम अनुवांशिक कारणों से हो सकता है. कई बार लाइफस्टाइल से जुड़े कारक जैसे असक्रिय जीवनशैली, जंक फूड का अत्यधिक सेवन, घर का बना सेहतमंद भोजन ना करना, तनाव, एक्सरसाइज की कमी आदि से भी पीसीओएस हो सकता है. आज खासकर पिछले दो दशकों में देश के शहरी इलाकों में रहन-सहन का तरीका काफी बदल गया है. हाल के एक अध्ययन के अनुसार, पांच में से लगभग एक भारतीय (20%) महिला, पीसीओएस की समस्या से जूझ रही है. हालांकि, एक्सरसाइज और डाइट से पीसीओएस से होने वाले कई सारे प्रभावों को कंट्रोल किया जा सकता है.
डॉ. सुषमा तोमर कहती हैं कि देश में यह समस्या तेजी से बढ़ रही है, खासकर शहरी क्षेत्रों में. पॉलिसिस्टिक ओवरी सिंड्रोम अनुवांशिक कारणों से हो सकता है. कई बार लाइफस्टाइल से जुड़े कारक जैसे असक्रिय जीवनशैली, जंक फूड का अत्यधिक सेवन, घर का बना सेहतमंद भोजन ना करना, तनाव, एक्सरसाइज की कमी आदि से भी पीसीओएस हो सकता है. आज खासकर पिछले दो दशकों में देश के शहरी इलाकों में रहन-सहन का तरीका काफी बदल गया है. हाल के एक अध्ययन के अनुसार, पांच में से लगभग एक भारतीय (20%) महिला, पीसीओएस की समस्या से जूझ रही है. हालांकि, एक्सरसाइज और डाइट से पीसीओएस से होने वाले कई सारे प्रभावों को कंट्रोल किया जा सकता है.
पीसीओएस होने के कारण
आमतौर पर, 20-35 साल के बीच की महिलाओं को पीसीओएस प्रभावित करता है. कम उम्र की महिलाओं में इसकी वजह से इर्रेगुलर पीरियड्स, शरीर के अलग-अलग हिस्सों में अवांछित बालों का उगना, जैसे होंठ के ऊपरी हिस्से, ठुड्डी, बगलों और पेट पर और मोटापे की शिकायत हो जाती है. थोड़ी बड़ी उम्र की महिलाओं में इसकी वजह से गर्भधारण करने में अक्षमता, गर्भपात का खतरा, जन्मजात डायबिटीज, हाई ब्लड प्रेशर के साथ गर्भावस्था, शिशुओं में जन्मजात असामान्याताएं जैसी परेशानियां उत्पन्न हो सकती हैं. वैसे तो पीसीओएस होने का सटीक कारण अज्ञात है, लेकिन इसके कारक अनुवांशिक, इंसुलिन प्रतिरोधकता और सूजन हो सकते हैं, क्योंकि ये सभी अतिरिक्त एंड्रोजन निर्माण के कारक हैं. ऐसा भी कहा जाता है कि पीसीओएस को सिर्फ एक रोग नहीं माना जा सकता, क्योंकि यह एक मेटाबॉलिक और हॉर्मोनल समस्या है. यह लाइफस्टाइल और खानपान की आदतों की वजह से होता है.
आमतौर पर, 20-35 साल के बीच की महिलाओं को पीसीओएस प्रभावित करता है. कम उम्र की महिलाओं में इसकी वजह से इर्रेगुलर पीरियड्स, शरीर के अलग-अलग हिस्सों में अवांछित बालों का उगना, जैसे होंठ के ऊपरी हिस्से, ठुड्डी, बगलों और पेट पर और मोटापे की शिकायत हो जाती है. थोड़ी बड़ी उम्र की महिलाओं में इसकी वजह से गर्भधारण करने में अक्षमता, गर्भपात का खतरा, जन्मजात डायबिटीज, हाई ब्लड प्रेशर के साथ गर्भावस्था, शिशुओं में जन्मजात असामान्याताएं जैसी परेशानियां उत्पन्न हो सकती हैं. वैसे तो पीसीओएस होने का सटीक कारण अज्ञात है, लेकिन इसके कारक अनुवांशिक, इंसुलिन प्रतिरोधकता और सूजन हो सकते हैं, क्योंकि ये सभी अतिरिक्त एंड्रोजन निर्माण के कारक हैं. ऐसा भी कहा जाता है कि पीसीओएस को सिर्फ एक रोग नहीं माना जा सकता, क्योंकि यह एक मेटाबॉलिक और हॉर्मोनल समस्या है. यह लाइफस्टाइल और खानपान की आदतों की वजह से होता है.
- अनियमित पीरियड्स होना
- पीरियड्स होने पर अत्यधिक ब्लीडिंग होना
- पीठ, पेट, छाती, चेहरे और शरीर पर बालों का ज्यादा विकसित होना
- चेहरे और पीठ पर एक्ने होना
- वजन का बढ़ना, ओवरी में सिस्ट
- बालों का झड़ना
- शरीर के जोड़ वाली त्वचा का रंग गहरा होना जैसे गर्दन, कमर, ब्रेस्ट के अंदर की त्वचा
- सिरदर्द होना
कब डॉक्टर को दिखाएं?
आप किसी भी स्वास्थ्य समस्या से गुजर रही हों, हर महिला को साल में एक बार स्त्रीरोग विशेषज्ञ से परामर्श लेने की सलाह दी जाती है. इसके साथ ही, इन परिस्थितियों में चिकित्सक से सहायता लें:
अनियमित माहवारी, पीसीओएस से जुड़े लक्षण, जैसे अनचाहे बालों का बढ़ना, एक्ने, बाल झड़ना,
असुरक्षित यौन संबंध बनाने के बावजूद गर्भधारण ना कर पाना
आप किसी भी स्वास्थ्य समस्या से गुजर रही हों, हर महिला को साल में एक बार स्त्रीरोग विशेषज्ञ से परामर्श लेने की सलाह दी जाती है. इसके साथ ही, इन परिस्थितियों में चिकित्सक से सहायता लें:
अनियमित माहवारी, पीसीओएस से जुड़े लक्षण, जैसे अनचाहे बालों का बढ़ना, एक्ने, बाल झड़ना,
असुरक्षित यौन संबंध बनाने के बावजूद गर्भधारण ना कर पाना
पीसीओएस का उपचार
आमतौर पर, डॉक्टर महिलाओं में पेल्विक परीक्षण, अल्ट्रासोनोग्राफी और हॉर्मोन से जुड़े ब्लड टेस्ट की मदद से पीसीओएस का पता लगाते हैं. यह जांच सामान्यतौर पर तब किया जाता है, जब महिला को पीरियड्स हो रहा हो. इससे उनके बेसलाइन हॉर्मोन और उनके गर्भाशय के आकार का पता लगाने में मदद मिलती है. इसके अलावा, बांझपन से गुजर रहे रोगियों में समय पर ओव्युलेट ना कर पाने की स्थिति में लैप्रोस्कोपिक डिंबग्रंथि (ovarian) ड्रिलिंग की जा सकती है. पीसीओएस का पता लगने के बाद, सामान्यतौर पर उपचार में वजन कम करना, आहार और एक्सरसाइज जैसे लाइफस्टाइल से जुड़े बदलाव किए जाते हैं. कुछ मामलों में उपचार योजना में 3-6 महीनों के लिए हॉर्मोनल उपचार शामिल होता है.
आमतौर पर, डॉक्टर महिलाओं में पेल्विक परीक्षण, अल्ट्रासोनोग्राफी और हॉर्मोन से जुड़े ब्लड टेस्ट की मदद से पीसीओएस का पता लगाते हैं. यह जांच सामान्यतौर पर तब किया जाता है, जब महिला को पीरियड्स हो रहा हो. इससे उनके बेसलाइन हॉर्मोन और उनके गर्भाशय के आकार का पता लगाने में मदद मिलती है. इसके अलावा, बांझपन से गुजर रहे रोगियों में समय पर ओव्युलेट ना कर पाने की स्थिति में लैप्रोस्कोपिक डिंबग्रंथि (ovarian) ड्रिलिंग की जा सकती है. पीसीओएस का पता लगने के बाद, सामान्यतौर पर उपचार में वजन कम करना, आहार और एक्सरसाइज जैसे लाइफस्टाइल से जुड़े बदलाव किए जाते हैं. कुछ मामलों में उपचार योजना में 3-6 महीनों के लिए हॉर्मोनल उपचार शामिल होता है.
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अंशुमाला
अंशुमाला हिंदी पत्रकारिता में डिप्लोमा होल्डर हैं. इन्होंने YMCA दिल्ली से हिंदी जर्नलिज्म की पढ़ाई की है. पत्रकारिता के क्षेत्र में पिछले 13 वर्षों से काम कर रही हैं. न्यूज 18 हिंदी में फरवरी 2022 से लाइफस्टाइ...और पढ़ें
अंशुमाला हिंदी पत्रकारिता में डिप्लोमा होल्डर हैं. इन्होंने YMCA दिल्ली से हिंदी जर्नलिज्म की पढ़ाई की है. पत्रकारिता के क्षेत्र में पिछले 13 वर्षों से काम कर रही हैं. न्यूज 18 हिंदी में फरवरी 2022 से लाइफस्टाइ... और पढ़ें
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