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VIDEO: महफ़िल-ए-मुशायरा- 'जितने सख़ी थे शहर में कंगाल हो गए, चादर के जैसे लोग भी रूमाल हो गए'

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आज की महफ़िल-ए-मुशायरा में पेश हैं वसीम नादिर के क़लाम.

VIDEO: महफ़िल-ए-मुशायरा- 'जितने सख़ी थे शहर में कंगाल हो गए, चादर के जैसे लोग भी रूमाल हो गए'वसीम नादिर
वसीम नादिर की शायरी के मायने जितने गहरे होते हैं, उनके अल्फ़ाज़ उतने ही सुलझे हुए होतें. वे अपने गहरे मायनों में पिरोओ अल्फ़ाज को जिस तरह बोलते हैं, उसमें जिंदगी के सबसे महीन जज़्बातों पिरो देते हैं. हर लफ़्ज के साथ सबक़ और सीख देते हैं.

आज की महफ़िल-ए-मुशायरा में पेश हैं वसीम नादिर के क़लाम.

तुमने तो अपने दर्द भी तक़सीम कर लिए
हमसे हमारा दर्द बयां तक नहीं हुआ

हैरत है, वो भी शहर बसाने की ज़िद में है
तीमर जिससे अपना मकां तक नहीं हुआ

जितने सख़ी थे शहर में कंगाल हो गए
चादर के जैसे लोग भी रूमाल हो गए

ये देखना है किस घड़ी दफ़नाया जाऊंगा
मुझको मरे हुए तो कई साल हो गए
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