कमलकांत सक्सेना के गीत-ग़ज़ल- 'जिंदगी है धड़कनों का घर, आदमी है अनुभवों का घर'
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मध्य प्रदेश के शिवपुरी जिले के करैरा गांव में 5 अक्टूबर, 1948 को जन्मे कमलकांत सक्सेना गीत, ग़ज़ल, दोहे आदि की दुनिया में अपनी विशेष पहचान कायम की है. कमलकांत सक्सेना ने शिवपुरी, ग्वालियर और भोपाल को अपनी कर्मभूमि बनाया और पत्रकारिता, साहित्य तथा समाज सेवा के क्षेत्र में यश एवं सम्मान अर्जित किया.

साहित्यिक पत्रकारिता में महत्वपूर्ण योगदान देने वाले कमलकांत सक्सेना ने साप्ताहिक, पाक्षिक और मासिक पत्र-पत्रिकाओं का प्रकाशन तथा संपादन किया. अनेक दैनिक पत्रों में भी अपनी सेवाएं दीं. छंद कविता विशेषकर गीत और ग़ज़ल के उन्नयन में उन्होंने विशेष योगदान दिया.
कमलकांत सक्सेना ने ‘ग्वालियर बाज़ार पत्रिका’, ‘साहित्य सागर’, ‘राष्ट्रीय गीत उत्सव’, ‘नटवर गीत सम्मान’ और चार खंडों वाले ‘गीत अष्टक’ जैसे उपक्रमों में अपनी सृजनात्मक अमिट पहचान छोड़ी. अपने जीवनकाल में अनेक कवियों को गढ़ने-मढ़ने, मंच और पहचान देने वाले कमलकांत सक्सेना का केवल एक काव्य संग्रह ‘ऋजुता’ ही उनके जीवनकाल में प्रकाशित हो सका. 31 अगस्त, 2012 को असमय अचानक चले गये कमलकांत सक्सेना अपने पीछे 2001 में प्रकाशित जो ‘ऋजुता’ छोड़ गये, उसे अनेक गीतकारों, समीक्षकों एवं कला विद्वानों का भरपूर प्रतिसाद मिला. प्रस्तुत हैं उनके चुनिंदा गीत, ग़ज़ल और दोहे-
गीत
दीप हूं बस रात का मेहमान ही तो
बुझ रहा यदि भोर को तो दोष क्या है
दीप हूं बस रात का मेहमान ही तो
बुझ रहा यदि भोर को तो दोष क्या है
इस धरा को ज्योति मिलती इसलिए है
तम बिखरकर टूट जाएं दीप्त हो मन
चेतना को प्रीत मिलती इसलिए है
गा सके हर बीज में इक पुष्प यौवन
तम बिखरकर टूट जाएं दीप्त हो मन
चेतना को प्रीत मिलती इसलिए है
गा सके हर बीज में इक पुष्प यौवन
पुष्प हूं बस दो घड़ी की गंध ही तो
झर रहा यदि सांझ को तो दोष क्या है
झर रहा यदि सांझ को तो दोष क्या है
मैं थका हारा मुसाफिर क्या करूं अब
लक्ष्य सम्मुख शेष पर अनुराग कितना
फिर उठूंगा भस्म अपने प्राण करने
अग्नि गायक हूं जलूंगा आग जितना
लक्ष्य सम्मुख शेष पर अनुराग कितना
फिर उठूंगा भस्म अपने प्राण करने
अग्नि गायक हूं जलूंगा आग जितना
मैं समय के चक्र की गति मात्र ही तो
तज रहा यदि मोह को तो दोष क्या है
….
तज रहा यदि मोह को तो दोष क्या है
….
गीत
जग तो सारा जीत लिया
लेकिन खुद से
हार गये
जग तो सारा जीत लिया
लेकिन खुद से
हार गये
पीड़ा का बोझा
लिये घूमते
उष्मा के आंगन
अधर चूमते
नाव रही मंझधार सदा
लेकिन फिर भी
पार गये
लिये घूमते
उष्मा के आंगन
अधर चूमते
नाव रही मंझधार सदा
लेकिन फिर भी
पार गये
सूरज के घर में
रहते रहते
मुझसे नहीं कभी
जलते भुनते
मोक्ष द्वार तो दूर रहा
लेकिन तन मन
तार गये
…
रहते रहते
मुझसे नहीं कभी
जलते भुनते
मोक्ष द्वार तो दूर रहा
लेकिन तन मन
तार गये
…
बिसरा दी अपनी संस्कृति
मान्यताएं, मर्यादा
ठुकरा दिये आदर्श सभी
गलतियों पर, आमादा
फिर भी गर्वोन्नत है शीर्ष
उफ़, हम कितने सभ्य हैं?
मान्यताएं, मर्यादा
ठुकरा दिये आदर्श सभी
गलतियों पर, आमादा
फिर भी गर्वोन्नत है शीर्ष
उफ़, हम कितने सभ्य हैं?
पूर्वाग्रह और प्रतिबद्धता
चारों ओर हमारे
परम्परावादी लेखनी
प्रगतिशीलता उकारे
अंध आडंबर ओढ़ लिये
दिखते कैसे भव्य हैं?
चारों ओर हमारे
परम्परावादी लेखनी
प्रगतिशीलता उकारे
अंध आडंबर ओढ़ लिये
दिखते कैसे भव्य हैं?
संभावित सूर्य को प्रणाम
अवमूल्यित वर्तमान
शून्यवत आस्था आचरण
क्षणभंगुर दीपदान
भेद रहे कुंठा के घाव
ज्यों सभी एकलव्य हैं!
अपने क्या मन्तव्य हैं?
…
अवमूल्यित वर्तमान
शून्यवत आस्था आचरण
क्षणभंगुर दीपदान
भेद रहे कुंठा के घाव
ज्यों सभी एकलव्य हैं!
अपने क्या मन्तव्य हैं?
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गीत
भागा रे भागा
भागा रे भागा
अरे! सांप तो भाग गया
अब
लाठी ठोकते रहो
भागा रे भागा
भागा रे भागा
अरे! सांप तो भाग गया
अब
लाठी ठोकते रहो
महंगाई की काया है
बेकारी की छाया है
हाय जवानी विवश खड़ी
मनमोहन की माया है
दागा रे दागा
दागा रे दागा
अरे! दांव तो दाग गया
अब
पांसे झोंकते रहो
बेकारी की छाया है
हाय जवानी विवश खड़ी
मनमोहन की माया है
दागा रे दागा
दागा रे दागा
अरे! दांव तो दाग गया
अब
पांसे झोंकते रहो
सूरज जागा भोर हुई
चंदा जागा रात हुई
जन जन ने मतदान किया
नेता जागा घात हुई
जागा रे जागा
जागा रे जागा
अरे! गांव तो जाग गया
अब
राहें रोकते रहो
…
चंदा जागा रात हुई
जन जन ने मतदान किया
नेता जागा घात हुई
जागा रे जागा
जागा रे जागा
अरे! गांव तो जाग गया
अब
राहें रोकते रहो
…
ग़ज़ल-1
हर सुबह व्यापार जैसी जिंदगी
शाम है अखबार जैसी जिंदगी
हर सुबह व्यापार जैसी जिंदगी
शाम है अखबार जैसी जिंदगी
शुष्क पत्ते ही तुम्हें बतलाएंगे
टूटते कचनार जैसी जिंदगी
टूटते कचनार जैसी जिंदगी
दर्पणों में दीखती है गुलमुहर
जबकि है तलवार जैसी जिंदगी
जबकि है तलवार जैसी जिंदगी
मान खो दे मांग भी सिंदूर का
तब मिले कलदार जैसी जिंदगी
तब मिले कलदार जैसी जिंदगी
जी रही है प्यास के तालाब में
बांझ के शृंगार जैसी ज़िंदगी
बांझ के शृंगार जैसी ज़िंदगी
लोग जीते हैं खिलौनों की तरह
खेलते संसार जैसी ज़िंदगी
खेलते संसार जैसी ज़िंदगी
कीच में ऊगा कमल ईश्वर बना
पूजिए अवतार जैसी जिंदगी
….
पूजिए अवतार जैसी जिंदगी
….
ग़ज़ल- 2
ज़िंदगी है धड़कनों का घर
आदमी है अनुभवों का घर
ज़िंदगी है धड़कनों का घर
आदमी है अनुभवों का घर
पूज लो भगवान को मिलकर
क्या करेगा भुखमरों का घर
क्या करेगा भुखमरों का घर
यह हमारा घर तुम्हारा घर
है कहां पर लापतों का घर
है कहां पर लापतों का घर
आप अपने आप को देखें
रोशनी है आइनों का घर
रोशनी है आइनों का घर
कल कभी होता तो कब होता
आज तो है अवसरों का घर
आज तो है अवसरों का घर
क्या रखा है आबोदानों में
आशियाना रहज़नों का घर
आशियाना रहज़नों का घर
तेज़ लहरों में कमल सोचो
प्यास पीड़ित मछलियों का घर
….
प्यास पीड़ित मछलियों का घर
….
ग़ज़ल 3
लो जले अंगार अधरों पर कमल
हो गये शृंगार ग़ज़लों पर कमल
लो जले अंगार अधरों पर कमल
हो गये शृंगार ग़ज़लों पर कमल
लोग तो कहते रहे सुख से जियो
पर चले दुश्वार राहों पर कमल
पर चले दुश्वार राहों पर कमल
कुनमुनाती आस्थाएं दोस्तो
टूटते घर द्वार सिक्कों पर कमल
टूटते घर द्वार सिक्कों पर कमल
जब चले निज पांव पर ही तो चले
कब चले दो चार कांधों पर कमल
कब चले दो चार कांधों पर कमल
अब कला का मोल होता है कहां
जी रहे फ़नकार रोज़ों पर कमल
जी रहे फ़नकार रोज़ों पर कमल
आपको जो चाहिए ले लीजिए
ले रहे अधिकार शब्दों पर कमल
ले रहे अधिकार शब्दों पर कमल
यह हमारी सभ्यता है देखिए
ख़ुद बने उपहार लपटों पर कमल
………
ख़ुद बने उपहार लपटों पर कमल
………
कुछ दोहे
साधू खड़ा बजार में पूछे मन का भाव
कोई कहे सुख कोई दुख कोई कहे अभाव
कोई कहे सुख कोई दुख कोई कहे अभाव
सुख के सपने छू हुए प्रजातंत्र के गांव
महंगाई बढ़ने लगी बारूदों की छांव
महंगाई बढ़ने लगी बारूदों की छांव
राम राम रटते रहे नाम दाम में ध्यान
इसीलिए तो प्राण में सांस सांस व्यवधान
इसीलिए तो प्राण में सांस सांस व्यवधान
मेरे भीतर आग है, मेरे बाहर आग
गीत आग का राग है, और ग़ज़ल अनुराग
गीत आग का राग है, और ग़ज़ल अनुराग
समय समय की बात है समय समय की बात
चतुर सयाना सारथी नयनों से गिर जात
चतुर सयाना सारथी नयनों से गिर जात
गुम होते संसार से रीति नीति के नोट
अगर चयन करना पड़े किसको देंगे वोट
अगर चयन करना पड़े किसको देंगे वोट
तन माटी का अंश है, मन माटी का सार
माटी से माटी करे, माटी जैसा प्यार
माटी से माटी करे, माटी जैसा प्यार
About the Author
श्रीराम शर्मा
लगभग 15 वर्षों से पत्रकारिता के क्षेत्र में सक्रिय. वर्तमान में News18Hindi में न्यूज एडिटर के तौर पर कार्यरत. बिजनेस और साहित्य टीम का हिस्सा हैं. न्यूज18हिंदी से पहले Zee News, NDTV, डीडी न्यूज, दिल्ली प्रेस ...और पढ़ें
लगभग 15 वर्षों से पत्रकारिता के क्षेत्र में सक्रिय. वर्तमान में News18Hindi में न्यूज एडिटर के तौर पर कार्यरत. बिजनेस और साहित्य टीम का हिस्सा हैं. न्यूज18हिंदी से पहले Zee News, NDTV, डीडी न्यूज, दिल्ली प्रेस ... और पढ़ें
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