Krishna Janmashtami: 'प्रभु के अवतार की वेला आ पहुंची है, स्वामी!' श्रीकृष्ण जन्म पर बोलीं देवकी
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कृष्ण जन्माष्टमी के पर्व पर चहूं और "नंद के आनंद भयो जय कन्हैया लाल" की गूंज है. बृजभूमि के मथुरा, गोकुल ही नहीं देश-विदेश के मंदिरों को सुंदर झांकियों से सजाया गया है. भक्त कृष्ण के भजनों पर झूम रहे हैं तो कवि तथा शायर कृष्ण भक्ति में गीत, ग़ज़ल-शायरी कर रहे हैं.

Krishna Janmashtami 2023: साहित्यकारों ने भगवान श्रीकृष्ण की लीलाओं पर बहुत कुछ लिखा है और लिखा भी जा रहा है. कुरुक्षेत्र के मैदान में श्रीकृष्ण द्वारा अर्जुन को गीता के उपदेशों की हर विद्वान अपने तरीके से व्याख्या करके गीता के बताए सूत्रों को जीवन में उतारने की बात कहता है.ऐसे ही हिंदी, गुजराती और अंग्रेजी भाषा के एक विद्वान हुए हैं कन्हैयालाल माणिकलाल मुंशी. उन्होंने भारतीय पौराणिक और धार्मिक कथाओं पर बहुत कुछ लिखा है.
केके मुंशी को हिंदी और गुजराती में ऐतिहासिक और पौराणिक उपन्यास व कहानी लेखक के रूप में तो प्रसिद्ध मिली. भगवान श्रीकृष्ण को लेकर उन्होंने कृष्णावतार नाम से सात उपन्यासों की एक सीरीज तैयार की. यह सीरीज हिंदी, गुजराती और अंग्रेजी में प्रकाशित हुई. राजकमल प्रकाशन से यह सीरीज हिंदी में प्रकाशित हुई है. कृष्णजन्माष्टमी के अवसर पर पढ़ें कन्हैयालाल माणिकलाल मुंशी के उपन्यास शृंखला ‘कृष्णावतार’ के पहले उपन्यास ‘बंसी की धुन’ का एक अंश-
आठवीं सन्तान
समस्त ब्रजभूमि की जनता बड़ी आशा से भविष्य की ओर टकटकी लगाए थी. प्रत्येक व्यक्ति अपने-अपने ढंग से बड़ी अधीरता के साथ प्रतीक्षारत था. शूरों के सरदार वसुदेव की धर्मपत्नी देवकी की कोख से आठवीं सन्तान के अवतरित होने का समय आ पहुंचा था.
समस्त ब्रजभूमि की जनता बड़ी आशा से भविष्य की ओर टकटकी लगाए थी. प्रत्येक व्यक्ति अपने-अपने ढंग से बड़ी अधीरता के साथ प्रतीक्षारत था. शूरों के सरदार वसुदेव की धर्मपत्नी देवकी की कोख से आठवीं सन्तान के अवतरित होने का समय आ पहुंचा था.
ज्यों-ज्यों प्रसूति का समय नजदीक आता जाता था, देवकी दिनों-दिन वसन्तकाल के पुष्प के समान प्रफुल्लित होती जाती थी. ऐसे आनन्द का अनुभव उसे पहले कभी नहीं हुआ था. सोते-जागते, हर समय उसे भगवान् के दर्शन होते और उसकी आंखें भक्ति-भाव से चमक उठतीं.
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फिर भी वह चिन्तातुर अवश्य थी. अपने-जैसी निर्बल, निःसहाय और निर्भागी स्त्राी की कोख से स्वयं भगवान् अवतार धारण करेंगे, यह मानना कभी-कभी उसके लिए बहुत कठिन हो जाता. उसका मन सदा ऊहापोह में रहता कि क्या उसकी आठवीं सन्तान यादवों को दुष्ट कंस के पंजे से मुक्ति दिला सकेगी, अथवा कंस उसकी भी हत्या कर देगा?
इन शंकाओं के रहते हुए भी उसकी श्रद्धा कभी नहीं डगमगाई. वह सोचती कि क्या नारद मुनि की भविष्यवाणी और मुनि वेदव्यास के वचन कभी मिथ्या हो सकते हैं.
कंस ने प्रसूति का समय निकट आया जानकर अपने प्रबन्ध में अधिक सख्ती करना शुरू कर दिया. जिस महल में देवकी तथा वसुदेव को बन्दी रखा गया था, वहां से सभी परिचारकों को वापस बुला लिया गया. इस बार किसी दाई की व्यवस्था भी नहीं की गई. उसके स्थान पर अपने अंगरक्षकों के सरदार और विशेष विश्वासपात्रा प्रद्योत की पत्नी पूतना को वहां रखा गया; किन्तु पूतना देवकी को इतनी अप्रिय थी कि वह उसे अपने पास तक नहीं फटकने देती.
देवकी को दासी के अभाव में कोई कष्ट न हो और उसे अकेलापन नहीं अखरे, इसलिए वसुदेव स्वयं अपनी सुन्दर और सुकुमार पत्नी का हर समय ध्यान रखते. वह उन्हें अत्यन्त प्रिय थी और उसकी हर इच्छा पूरी करने को वह सदा तत्पर रहते थे. उसके साथ प्रार्थना में वह शरीक होते और जब भी वह चिन्तातुर दिखाई पड़ती, तब उसके पास बैठकर वह उसे अपनी प्रेमपगी वाणी से आश्वस्त करते. यमुना की तरंगों को देखती हुई जब वह झरोखे में लेटी रहती, तब प्राचीन काल के वीर पुरुषों की गाथाएं सुनाकर वह उसका मनोरंजन भी करते.
भगवान् विष्णु और उनकी कृपा की चर्चा इस श्रद्धालु दम्पति का प्रधान और प्रिय विषय था. अटूट श्रद्धा-शृंखला से बद्ध उन दोनों के हृदय एक हो गए थे. कई बार तो भगवान् की चर्चा करते समय उन्हें ऐसा लगता कि प्रभु स्वयं अपने हाथ पसारकर उन्हें आशीर्वाद दे रहे हैं.
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ब्रजभूमि के गांवों और आश्रमों के वासियों की तरह मथुरा के निवासी भी भविष्य पर बड़ी-बड़ी आशाएं रखते थे. प्रत्येक व्यक्ति पिछले नौ वर्षों से कंस के राज्य में प्रवर्त अधर्म का अन्त देखना चाहता था. प्रत्येक बार कंस जब देवकी के बालकों का वध करता, तब लोगों को लगता कि उद्धारक के जन्म लेने का समय और नजदीक आ गया है. अशुभ ग्रहों की शान्ति के लिए व्रतों का पालन कर, वे देवताओं से प्रार्थना करते कि तारणहार का जन्म अब शीघ्र ही हो. यमुना के किनारे आश्रमों में रहनेवाले ऋषि-मुनि भी देवों का आह्वान करते हुए यज्ञ करते. धार्मिक विधि अथवा प्रार्थना करते समय ब्राह्मण भी ईश्वर से अत्यन्त विनयपूर्वक प्रार्थना किए बिना नहीं रहते कि प्रभु, अब तू शीघ्र ही अवतार ले.
इन दिनों कंस को स्वयं भी कई प्रकार के नए-नए भयों का अनुभव होने लगा था. अनेक बार उसने अपने शत्रुओं को कुचल दिया, फिर भी यादवकुल ने उसकी सत्ता को स्वीकार नहीं किया था. कितने ही यादव सरदार तो ब्रजभूमि छोड़कर ही चले गए थे. कंस को यह भी मालूम था कि कितने ही दम्भी चाटुकार प्रकट में तो उसकी स्तुति करते हैं, परन्तु भीतर-ही-भीतर उसके पतन की कामना करते हैं. उसके अपने सेनानायक और समर्थक भी उसके प्रति इसीलिए वफादार थे कि यादवों के रोष से उनकी रक्षा केवल कंस ही कर सकता था.
ज्यों-ज्यों दिन बीतते गए, कंस अधिकाधिक भय विह्वल होता गया. नित्य-प्रति ये समाचार उसे मिलते कि तारणहार के शीघ्र अवतार लेने की आशा लोगों में बढ़ती जा रही है और इससे वह विक्षुब्ध हो उठता. प्रत्येक व्यक्ति को अब वह सन्देह की दृष्टि से देखने लगा था. मामूली-सी बातों से भी वह उत्तेजित हो जाता. कई बार तो शून्यमनस्क हो जाता. उसकी नींद उड़ गई थी और भयंकर सपनों से वह परेशान रहने लगा था.
वसुदेव और देवकी के प्रहरी सैनिक कंस की आज्ञा से रोज-रोज बदलने लगे. वसुदेव को धार्मिक विधि सम्पन्न कराने के लिए उनके कुल गुरु गर्गाचार्य ही केवल वसुदेव-देवकी के पास जा सकते थे, अन्य किसी को उनसे मिलने नहीं दिया जाता था. देवकी की तबीयत का हाल पूतना रोज जाकर कंस को सुनाती. देवकी के आठवें पुत्रा की हत्या करने पर लोग उत्तेजित हो विद्रोह न कर बैठें, इस आशंका से कंस ने शहर के मुख्य-मुख्य स्थानों पर मगध के सैनिक बिठा रखे थे.
उस दिन भाद्रपद कृष्णा अष्टमी थी. दिन-भर मेघगर्जन और बिजली की चमक के साथ घनघोर वर्षा होती रही; पवन भी बडे़ वेग से मचल रहा था. आंधी-पानी का जोर होने पर भी गर्गाचार्य दोपहर को उस दिन भी नित्य की भांति महल में धार्मिक विधि सम्पन्न कराने आए. विधि पूर्ण हो जाने पर वह वसुदेव से मिले और उनके कान में कुछ कहा.
दिन-भर भयंकर वर्षा और पवन का आतंक रहा. सांझ पड़ने से पहले ही सारे शहर में अंधेरा छा गया. गली-रास्ते सभी पानी से भर गए. इसीलिए पूतना जो सवेरे अपने घर गई थी, आज देवकी की निगरानी रखने महल नहीं लौट सकी. उसके आगमन के लिए मुख्य दरवाजा खुला छोड़कर प्रहरी शीत से बचने के लिए अपनी कोठरियों में जा बैठे.
दिन-भर भयंकर वर्षा और पवन का आतंक रहा. सांझ पड़ने से पहले ही सारे शहर में अंधेरा छा गया. गली-रास्ते सभी पानी से भर गए. इसीलिए पूतना जो सवेरे अपने घर गई थी, आज देवकी की निगरानी रखने महल नहीं लौट सकी. उसके आगमन के लिए मुख्य दरवाजा खुला छोड़कर प्रहरी शीत से बचने के लिए अपनी कोठरियों में जा बैठे.
महल में भी सर्वत्रा अन्धकार व्याप्त था. केवल उस कोठरी में, जहां देवकी लेटी थी और उसकी बगल में वसुदेव बैठे थे, तेल का एक छोटा-सा दीया टिमटिमा रहा था. मूसलाधार बरसात गिरने की भयंकर आवाज और बादलों की गड़गड़ाहट महल के सूने कक्षों में गूंज रही थी.
एकाएक बिजली इतनी जोर से चमकी कि सारा आकाश प्रज्वलित हो उठा. एक भयंकर मेघगर्जना से महल की नींव तक हिल गई. भयभीत हो देवकी उठ बैठी और अपनी वेदना को कम करने के लिए उसने वसुदेव का हाथ थाम लिया. पति के मुख को वह भक्ति-भाव और प्रेम-भरी दृष्टि से निहारने लगी और नयन आनन्दाश्रु से भर गए.
प्रसूति की वेदना को दबाकर उसने कहा, “प्रभु के अवतार की वेला आ पहुंची है, स्वामी!”
अत्यन्त पुलकित हो वसुदेव देवकी को सावधानीपूर्वक पास ही के दूसरे कक्ष में ले गए. मध्यरात्रि का समय था. वर्षा और बिजली का जोर अभी पूर्ववत् था. तभी पूर्वाकाश में अभिजित नक्षत्र का योग हुआ और आनन्द-समाधि का अनुभव करती हुई देवकी ने बिना किसी कष्ट का अनुभव किए एक पुत्र-रत्न को जन्म दिया.
दाई का काम स्वयं वसुदेव ने संभाला. अपनी एकमात्र आशा के रूप में उस नवजात शिशु को देखकर वह स्तब्ध रह गए. बालक का अंग-अंग सुडौल था, वर्ण नीलकमल के समान था और जन्म के समय अन्य बालकों की तरह रुदन करने के स्थान पर उसके सुकोमल होंठों पर एक मधुर मुस्कान थिरक रही थी.
वसुदेव बालक को एकटक निहारते रहे. क्षण-भर के लिए उन्होंने शंख, चक्र, गदा धारण किए, अपूर्व तेज तथा वैभव से देदीप्यमान भगवान् विष्णु को अपने सामने खड़ा देखा. अन्ततः वेदव्यास का वचन सत्य सिद्ध हुआ.
प्रयत्न करके वसुदेव ने स्वयं को प्रकृतिस्थ किया. उन्हें अब अपना कर्त्तव्य पूरा करना था. बालक को कुछ देर के लिए देवकी को सौंपकर वह अपने हाथ में दो दीये लेकर झरोखे में गए, और मानो आरती उतार रहे हों, इस प्रकार दीयों को उन्होंने हिलाया. नदी के सामने के तट से इसके उत्तर में एक मशाल दिखाई दी. फिर, देवकी के पास लौटकर वसुदेव ने नवजात शिशु को स्नान कराया, शहद की बत्ती बनाकर उन्होंने उसे चूसने को दी और उसे एक टोकरी में सुला दिया.
“अब मुझे चले जाना चाहिए,” उन्होंने कहा.
“परन्तु आप जाएंगे किस प्रकार? घनघोर वर्षा हो रही है और यमुना में बाढ़ आई हुई है.”
“जैसी भगवान् की इच्छा! वे जो करते हैं अच्छा ही करते हैं.” यह कहकर वह देखने चले गए कि चौकीदार क्या कर रहे हैं. उन्होंने देखा कि चौकीदार अपनी-अपनी कोठरी में किवाड़ बन्द किए गहरी नींद में सो रहे हैं और महल का मुख्य द्वार पूतना के अब तक न लौटने के कारण खुला पड़ा है.
“परन्तु आप जाएंगे किस प्रकार? घनघोर वर्षा हो रही है और यमुना में बाढ़ आई हुई है.”
“जैसी भगवान् की इच्छा! वे जो करते हैं अच्छा ही करते हैं.” यह कहकर वह देखने चले गए कि चौकीदार क्या कर रहे हैं. उन्होंने देखा कि चौकीदार अपनी-अपनी कोठरी में किवाड़ बन्द किए गहरी नींद में सो रहे हैं और महल का मुख्य द्वार पूतना के अब तक न लौटने के कारण खुला पड़ा है.
वसुदेव ने बालक को शाल में लपेटकर फिर टोकरी में रखा, और उस पर एक छोटी-सी चटाई ढंक दी. टोकरी को कन्धे पर उठाकर वह महल से बाहर निकल पड़े. थोड़ी ही दूर पर नदी का प्रवाह एक पथरीले पट पर से होकर बहता था, जहां नदी पार कर सामने गोकुल जाने का एक सहज, प्राकृतिक मार्ग बन गया था. टोकरी को सिर पर रखकर वसुदेव वहीं पहुंचे. मुंह में पैर का अंगूठा चूसता हुआ नवजात बालक शान्ति से टोकरी में सोया रहा. और तब एक चमत्कार हुआ. वर्षा रुक गई और नाग के फण के समान एक काले बादल का टुकड़ा टोकरी पर छत्राछाया करने लगा.
नदी का प्रवाह अत्यन्त वेगवान होते हुए भी उक्त मार्ग से वसुदेव शीघ्र ही यमुना पार चले गए. सामने ही किनारे पर एक वृक्ष के नीचे गोकुल के यादवों के नेता नन्द तथा गुरु गर्गाचार्य खड़े थे.
गर्गाचार्य ने वसुदेव से वह टोकरी ले ली और उसके स्थान पर एक दूसरी टोकरी उन्हें दी.
“यह किसकी सन्तान है?” वसुदेव ने पूछा.
“आज सवेरे ही यशोदा की कोख से जन्मी पुत्री है.”
आनन्द तथा कृतज्ञता की भावना से वसुदेव ने नन्द से कहा, “नन्द, तुम्हारे उपकार का बदला मैं किस प्रकार चुका सकूंगा.”
गर्गाचार्य ने वसुदेव से वह टोकरी ले ली और उसके स्थान पर एक दूसरी टोकरी उन्हें दी.
“यह किसकी सन्तान है?” वसुदेव ने पूछा.
“आज सवेरे ही यशोदा की कोख से जन्मी पुत्री है.”
आनन्द तथा कृतज्ञता की भावना से वसुदेव ने नन्द से कहा, “नन्द, तुम्हारे उपकार का बदला मैं किस प्रकार चुका सकूंगा.”
वसुदेव का चरणस्पर्श करके नन्द ने उत्तर दिया “प्रभु, आप तो हमारे स्वामी है. मेरा जो कुछ है, वह आपका ही है.”
गर्गाचार्य के हाथ से नन्द ने वह टोकरी ले ली. उस पर ढँकी हुई चटाई खिसक पड़ी. तभी बिजली चमकी और उसके प्रकाश में नीलवर्ण का सुन्दर बालक अपनी आंखें टिमकारता हुआ टोकरी में उन्हें दिखाई पड़ा. उस वृद्ध ग्वाले के हृदय में असीम वात्सल्य उमड़ आया.
तारणहार का आगमन हो चुका था!
तारणहार का आगमन हो चुका था!
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श्रीराम शर्मा
लगभग 15 वर्षों से पत्रकारिता के क्षेत्र में सक्रिय. वर्तमान में News18Hindi में न्यूज एडिटर के तौर पर कार्यरत. बिजनेस और साहित्य टीम का हिस्सा हैं. न्यूज18हिंदी से पहले Zee News, NDTV, डीडी न्यूज, दिल्ली प्रेस ...और पढ़ें
लगभग 15 वर्षों से पत्रकारिता के क्षेत्र में सक्रिय. वर्तमान में News18Hindi में न्यूज एडिटर के तौर पर कार्यरत. बिजनेस और साहित्य टीम का हिस्सा हैं. न्यूज18हिंदी से पहले Zee News, NDTV, डीडी न्यूज, दिल्ली प्रेस ... और पढ़ें
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