Ghazals of Parveen Shakir : वो शायरा जिनके शेरों में धड़कता है आधुनिकता का दिल और लोकगीतों की सादगी
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अपने शुरुआती दिनों में परवीन शाकिर 'बीना' नाम से लिखा करती थीं. वे 'अहमद नदीम क़ासमी' को अपना उस्ताद मानती थीं और उन्हें 'अम्मुजान' कहकर पुकारती थीं. परवीन शाकिर के गज़ल-संग्रह 'ख़ुशबू' ने उन्हें 'अदमजी' पुरस्कार दिलवाया. आगे जाकर उन्हें पाकिस्तान के सर्वोच्च पुरस्कार 'प्राईड ऑफ परफ़ॉरमेंस' से भी नवाज़ा गया. परवीन शाकिर की ग़ज़लें अपने-आप में एक मिसाल है. उनकी ग़ज़लों में कहीं-कहीं प्रेम का सूफियाना रूप मिलता है, तो कहीं प्रेम में डूबी एक मासूम-सी लड़की. जिस तरह इब्ने इंशा को अपनी रचनाओं में चांद बहुत प्यारा था, उसी तरह परवीन शाकिर को भीगा हुआ जंगल. परवीन शाकिर की किताब 'ख़ुशबू' का प्रकाशन वाणी प्रकाशन ने हिंदी में भी किया है, जिसमें उनकी गज़लों-नज़्मों और शायरियों की बहार है. आइए पढ़ते हैं उनके गज़ल-संग्रह 'ख़ुशबू' से कुछ चुनिंदा ग़ज़लें...

24 नवंबर 1952 को पाकिस्तान के कराची में जन्मीं दुनिया की मशहूर शायरा ‘परवीन शाकिर’ बहुत कम उम्र में दुनिया से चली गईं. उनके अपने पति से रिश्ते ठीक नहीं थे. 26 दिसंबर 1994 को जब वह अपनी कार से दफ़्तर जा रही थीं, तो इस्लामाबाद की सड़क पर एक बस की टक्कर से 42 साल की उम्र में उनकी जान चली गई. परवीन की दुखद मौत से कुछ दिन पहले ही उनका तलाक हुआ था, हादसे के बाद तमाम खयालात हवा में तैरे थे. उनके बारे में एक किस्सा मशहूर है कि जब उन्होंने 1982 में ‘सेंट्रल सुपीरियर सर्विस’ की लिखित परीक्षा दी तो उस परीक्षा में उन्हीं पर एक सवाल पूछा गया था, जिसे देखकर वह आत्मविभोर हो उठी थीं. उर्दू शायरी में उनके लफ्ज़ एक युग का प्रतिनिधित्व करते हैं. वर्ष 1977 में प्रकाशित अपने पहले संकलन में उन्होंने लिखा था, ‘जब हौले से चलती हुई हवा ने फूल को चूमा था तो ख़ुशबू पैदा हुई…’ परवीन शाकिर पाकिस्तान की उन कवयित्रियों में से एक हैं, जिनके शेरों और ग़ज़लों में लोकगीत की सादगी भी है और लय भी… क्लासिकी संगीत की नफ़ासत भी और नज़ाकत भी. उनकी नज़्में और ग़ज़लें भोलेपन और सॉफ़िस्टीकेशन का दिलआवेज़ संगम है.
परवीन शाकिर की प्रमुख कृतियों में ‘ख़ुशबू’, ‘सदबर्ग’, ‘रहमतों की बारिश’, ‘ख़ुद-कलामी’, ‘इंकार’, ‘खुली आंखों में सपना’, और ‘माह-ए-तमाम’ शामिल हैं. उनके पास अंग्रेजी साहित्य, लिग्विंसटिक्स एवं बैंक एडमिनिस्ट्रेशन की तीन-तीन स्नातकोत्तर डिग्रियां थीं. वह नौ वर्षों तक अध्यापन के पेशे में रहीं और बाद में प्रशासक बन गईं. गौरतलब है, कि वह पाकिस्तान सिविल सेवा में अधिकारी के पद पर थीं. उन्हें पाकिस्तान के सर्वोच्च पुरस्कार ‘प्राईड ऑफ परफ़ॉरमेंस’ से नवाज़ा गया था. परवीन शाकिर जैसी कम ही शायरा हुईं हैं, जिनके लफ्जों में टीस और उन्माद एक साथ हो. उनकी गज़लों और नज़्मों को पढ़ते हुए ये महसूस होता है, कि अधिकतर आत्मकथात्मक हैं. उनकी रचनाओं का केन्द्र-बिंदु हमेशा स्त्री ही रही है. अपनी रचानाओं के द्वारा परवीन शाकिर ने ज़िंदगी के भिन्न-भिन्न मोड़ों को एक क्रम देने की कोशिश की है और शायद यही वजह है कि उनके लेखन की लोकप्रियता आज भी फिकी नहीं पड़ती. चिड़ियों को प्रतीक बनाकर उन्होंने कई लाजवाब शायरियां लिखीं, जिनमें ‘दाने तक जब पहुंची चिड़िया जाल में थी, ज़िन्दा रहने की ख़्वाहिश ने मार दिया…’ ख़ासा लोकप्रिय हुई. तितलियों और पक्षियों को प्रतीक बनाकर उनकी और भी कई रचनाएं हैं, जो मशहूर हुईं.
परवीन शाकिर एक पत्नी के साथ-साथ मां भी थीं, कवियित्री भी और रोज़ी कमाने वाली एक बहादुर औरत भी. अपनी गज़लों के माध्यम से उन्होंने प्रेम के जितने आयामों को छुआ, उतना कोई पुरुष कवि चाह कर भी नहीं कर पाया. क्योंकि औरत की बात करने की पहली शर्त ही है औरत होना, औरत के संघर्षों को जीना और अपने औरत होने को भीतर तक महसूस करना. परवीन शाकिर ने उस दौर में यौन नज़दीकियों, गर्भावस्था, प्रसव, बेवफ़ाई, वियोग और तलाक जैसे विषयों को छुआ, जिस पर उनके समकालीन पुरुष कवियों की कम ही नज़र गई. उनकी भाषा सरल हो या साहित्यिक लेकिन उससे यह आभास ज़रूर मिलता है, कि उसमें संयम और सावधानी को तरजीह दी गई.
आइए पढ़ते हैं, परवीन शाकिर की वो चुनिंदा मशहूर गज़लें, जिन्हें उनके ग़ज़ल-संग्रह ख़ुशबू से लिया गया है. ‘ख़ुशबू’ को ‘वाणी प्रकाशन’ ने हिंदी में प्रकाशित किया. ‘ख़ुशबू’ के लिए परवीन शाकिर को “अदमजी” पुरस्कार भी मिला और आगे जाकर उन्हें पाकिस्तान के सर्वोच्च पुरस्कार “प्राईड ऑफ परफ़ोरमेंस” से भी नवाज़ा गया. आपको बता दें, कि इस संग्रह की कई गज़लों को ‘ख़ुशबू’ के अलावा, ‘आसान और पसंदीदा कलाम’, ‘100 मशहूर गज़लें’ और ‘आसान और पसंदीदा नज़्में’ जैसे शायरी-संग्रहों में भी शामिल किया गया.
1)
अक्स-ए-ख़ुशबू हूं बिखरने से न रोके कोई
अक्स-ए-ख़ुशबू हूं बिखरने से न रोके कोई
और बिखर जाऊं तो मुझ को न समेटे कोई
अक्स-ए-ख़ुशबू हूं बिखरने से न रोके कोई
अक्स-ए-ख़ुशबू हूं बिखरने से न रोके कोई
और बिखर जाऊं तो मुझ को न समेटे कोई
कांप उठती हूं मैं ये सोच के तन्हाई में
मेरे चेहरे पे तिरा नाम न पढ़ ले कोई
मेरे चेहरे पे तिरा नाम न पढ़ ले कोई
जिस तरह ख़्वाब मिरे हो गए रेज़ा रेज़ा
उस तरह से न कभी टूट के बिखरे कोई
उस तरह से न कभी टूट के बिखरे कोई
मैं तो उस दिन से हिरासां हूं कि जब हुक्म मिले
ख़ुश्क फूलों को किताबों में न रक्खे कोई
ख़ुश्क फूलों को किताबों में न रक्खे कोई
अब तो इस राह से वो शख़्स गुज़रता भी नहीं
अब किस उम्मीद पे दरवाज़े से झांके कोई
अब किस उम्मीद पे दरवाज़े से झांके कोई
कोई आहट कोई आवाज़ कोई चाप नहीं
दिल की गलियां बड़ी सुनसान हैं आए कोई
दिल की गलियां बड़ी सुनसान हैं आए कोई
2)
खुली आंखों में सपना झांकता है
खुली आंखों में सपना झांकता है
वो सोया है कि कुछ कुछ जागता है
खुली आंखों में सपना झांकता है
खुली आंखों में सपना झांकता है
वो सोया है कि कुछ कुछ जागता है
तिरी चाहत के भीगे जंगलों में
मिरा तन मोर बन कर नाचता है
मिरा तन मोर बन कर नाचता है
मुझे हर कैफ़ियत में क्यूं न समझे
वो मेरे सब हवाले जानता है
वो मेरे सब हवाले जानता है
मैं उस की दस्तरस में हूं मगर वो
मुझे मेरी रज़ा से मांगता है
मुझे मेरी रज़ा से मांगता है
किसी के ध्यान में डूबा हुआ दिल
बहाने से मुझे भी टालता है
बहाने से मुझे भी टालता है
सड़क को छोड़ कर चलना पड़ेगा
कि मेरे घर का कच्चा रास्ता है
कि मेरे घर का कच्चा रास्ता है
3)
टूटी है मेरी नींद मगर तुम को इस से क्या
टूटी है मेरी नींद मगर तुम को इस से क्या
बजते रहें हवाओं से दर तुम को इस से क्या
टूटी है मेरी नींद मगर तुम को इस से क्या
टूटी है मेरी नींद मगर तुम को इस से क्या
बजते रहें हवाओं से दर तुम को इस से क्या
तुम मौज मौज मिस्ल-ए-सबा घूमते रहो
कट जाएं मेरी सोच के पर तुम को इस से क्या
कट जाएं मेरी सोच के पर तुम को इस से क्या
औरों का हाथ थामो उन्हें रास्ता दिखाओ
मैं भूल जाऊं अपना ही घर तुम को इस से क्या
मैं भूल जाऊं अपना ही घर तुम को इस से क्या
अब्र-ए-गुरेज़-पा को बरसने से क्या ग़रज़
सीपी में बन न पाए गुहर तुम को इस से क्या
सीपी में बन न पाए गुहर तुम को इस से क्या
ले जाएं मुझ को माल-ए-ग़नीमत के साथ अदू
तुम ने तो डाल दी है सिपर तुम को इस से क्या
तुम ने तो डाल दी है सिपर तुम को इस से क्या
तुम ने तो थक के दश्त में खे़मे लगा लिए
तन्हा कटे किसी का सफ़र तुम को इस से क्या
तन्हा कटे किसी का सफ़र तुम को इस से क्या
4)
बारिश हुई तो फूलों के तन चाक हो गए
बारिश हुई तो फूलों के तन चाक हो गए
मौसम के हाथ भीग के सफ़्फ़ाक हो गए
बारिश हुई तो फूलों के तन चाक हो गए
बारिश हुई तो फूलों के तन चाक हो गए
मौसम के हाथ भीग के सफ़्फ़ाक हो गए
बादल को क्या ख़बर है कि बारिश की चाह में
कैसे बुलंद-ओ-बाला शजर ख़ाक हो गए
कैसे बुलंद-ओ-बाला शजर ख़ाक हो गए
जुगनू को दिन के वक़्त परखने की ज़िद करें
बच्चे हमारे अहद के चालाक हो गए
बच्चे हमारे अहद के चालाक हो गए
लहरा रही है बर्फ़ की चादर हटा के घास
सूरज की शह पे तिनके भी बेबाक हो गए
सूरज की शह पे तिनके भी बेबाक हो गए
बस्ती में जितने आब-गज़ीदा थे सब के सब
दरिया के रुख़ बदलते ही तैराक हो गए
दरिया के रुख़ बदलते ही तैराक हो गए
सूरज-दिमाग़ लोग भी अबलाग़-ए-फ़िक्र में
ज़ुल्फ़-ए-शब-ए-फ़िराक़ के पेचाक हो गए
ज़ुल्फ़-ए-शब-ए-फ़िराक़ के पेचाक हो गए
जब भी ग़रीब-ए-शहर से कुछ गुफ़्तुगू हुई
लहजे हवा-ए-शाम के नमनाक हो गए
लहजे हवा-ए-शाम के नमनाक हो गए
5)
रक़्स में रात है बदन की तरह
रक्स में रात है बदन की तरह
बारिशों की हवा में बन की तरह
रक़्स में रात है बदन की तरह
रक्स में रात है बदन की तरह
बारिशों की हवा में बन की तरह
चांद भी मेरी करवटों का गवाह
मेरे बिस्तर की हर शिकन की तरह
मेरे बिस्तर की हर शिकन की तरह
चाक है दामन ए क़बा ए बहार
मेरे ख़्वाबों के पैरहन की तरह
मेरे ख़्वाबों के पैरहन की तरह
जिंदगी तुझसे दूर रह कर मैं
काट लूंगी जलावतन की तरह
काट लूंगी जलावतन की तरह
मुझको तस्लीम मेरे चांद कि मैं
तेरे हमराह हूं गगन की तरह
तेरे हमराह हूं गगन की तरह
बारहा तेरा इंतज़ार किया
अपने ख़्वाबों में इक दुल्हन की तरह
अपने ख़्वाबों में इक दुल्हन की तरह
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