ये है भारत की सबसे बड़ी ऑब्जर्वेटरी, आज भी बताती है ग्रह-नक्षत्रों की सटीक चाल
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Agency:News18 Rajasthan
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Jantar Mantar Jaipur: जंतर-मंतर में रखे गए यंत्रों में सबसे अधिक आकर्षित करने वाला यंत्र पत्थर की सूर्य घड़ी या धूप घड़ी है. अंग्रेजी में इसे सन डायल कहते हैं. यह दुनिया की सबसे बड़ी पत्थर की सूर्य घड़ी है. इसका नाम वृहद सम्राट यंत्र है...

अंतरिक्ष काफी पहले से ही लोगों के लिए बड़ा रोचक और कौतूहल भरा विषय रहा है. खगोल विज्ञान और खगोलीय गणित के प्रति भी लोगों की गहरी रुचि रही है. पहले लोग सूर्य की परछाईं से समय का पता लगाते थे. ऐसे में सटीक समय मापने, ग्रहों और तारों की स्थिति जानने और अंतरिक्ष के अध्ययन के देश में वेधशालाओं का निर्माण कराया गया. महाराजा सवाई जय सिंह द्वितीय ने देश भर में पांच ऐतिहासिक खगोलीय वेधशालाओं (एस्ट्रोनॉमिकल ऑब्जर्वेशन) का निर्माण कराया था. इन वेधशालाओं को जंतर-मंतर नाम दिया गया. ये पांचो जंतर-मंतर जयपुर, दिल्ली, मथुरा, उज्जैन और बनारस में मौजूद हैं. इनमें भारत की सबसे बड़ी खगोलीय वेधशाला जयपुर का जंतर-मंतर है.
कहा जाता है कि महाराजा सवाई जय सिंह द्वितीय को खुद खगोलीय पिंडों की गतिविधियों का पता लगाना बेहद पसंद था, जिसके कारण उन्होंने जंतर मंतर का निर्माण कराया था. जिससे सूर्य तारों की सटीक स्थिति, उनकी गति और पृथ्वी से उनकी दूरी की गणना की जा सके. सवाई जय सिंह की ज्योतिष और पारंपरिक वेध विज्ञान में भी गहरी रूचि थी. उनके बारे में कहा जाता है कि वह खुद एक बेहतरीन खगोलशास्त्री (एस्ट्रोनोमर) भी थे.
जंतर-मंतर का इतिहास
उपलब्ध जानकारी के मुताबिक, जंतर मंतर संस्कृत के शब्द जंत्र मंत्र से लिया गया है, जिसका मतलब ‘उपकरण’ और ‘गणना’ है. इस हिसाब से जंतर मंतर का अर्थ ‘गणना करने वाला उपकरण’ बताया गया है. जंतर-मंतर की स्थापना से पहले सवाई जयसिंह ने विश्व के अलग-अलग देशों में से खगोल विज्ञान के प्रमुख और महत्वपूर्ण ग्रंथों की पांडुलिपियों का अध्ययन किया था. उसके बाद उस दौरान के प्रसिद्ध खगोल शास्त्रीयों की मदद से महाराजा सवाई जय सिंह ने जयपुर, दिल्ली, बनारस, उज्जैन और मथुरा में 5 वेधशालाओं का निर्माण करवाया था.
उपलब्ध जानकारी के मुताबिक, जंतर मंतर संस्कृत के शब्द जंत्र मंत्र से लिया गया है, जिसका मतलब ‘उपकरण’ और ‘गणना’ है. इस हिसाब से जंतर मंतर का अर्थ ‘गणना करने वाला उपकरण’ बताया गया है. जंतर-मंतर की स्थापना से पहले सवाई जयसिंह ने विश्व के अलग-अलग देशों में से खगोल विज्ञान के प्रमुख और महत्वपूर्ण ग्रंथों की पांडुलिपियों का अध्ययन किया था. उसके बाद उस दौरान के प्रसिद्ध खगोल शास्त्रीयों की मदद से महाराजा सवाई जय सिंह ने जयपुर, दिल्ली, बनारस, उज्जैन और मथुरा में 5 वेधशालाओं का निर्माण करवाया था.
कब बना था जयपुर जंतर-मंतर
सिटी पैलेस के पास स्थित जयपुर जंतर-मंतर का निर्माण सवाई जयसिंह द्वारा 1724 ई. में शुरू कराया गया था जो 1734 ई. यानी लगभग 10 साल में बनकर तैयार हुआ था. इस जंतर-मंतर की अद्भुत संरचना, ऐतिहासिक और खगोलीय वैज्ञानिक महत्व की वजह से यूनेस्को ने वर्ष 2010 में इसे वर्ल्ड हेरिटेज साइट यानी वैश्विक धरोहर या विश्व विरासत में भी शामिल किया है.
सिटी पैलेस के पास स्थित जयपुर जंतर-मंतर का निर्माण सवाई जयसिंह द्वारा 1724 ई. में शुरू कराया गया था जो 1734 ई. यानी लगभग 10 साल में बनकर तैयार हुआ था. इस जंतर-मंतर की अद्भुत संरचना, ऐतिहासिक और खगोलीय वैज्ञानिक महत्व की वजह से यूनेस्को ने वर्ष 2010 में इसे वर्ल्ड हेरिटेज साइट यानी वैश्विक धरोहर या विश्व विरासत में भी शामिल किया है.
जंतर मंतर का क्या काम है
यह विशाल वेधशाला करीब 18,700 वर्ग मीटर क्षेत्र में फैली हुई है. इसके निर्माण में बेहद अच्छी गुणवत्ता वाले संगमरमर के पत्थरों का इस्तेमाल किया गया है. इसमें समय, मौसम एवं अंतरिक्ष संबंधी भविष्यवाणी के साथ ही ग्रहों और तारों की स्थिति जानने के लिए कई अलग-अलग खगोलीय उपकरणों मौजूद हैं. इस वेधशाला में रखे गए खगोलीय उपकरण चूने और पत्थर के बने हैं तभी आज वर्षों बाद भी काम करते हैं. इन उपकरणों का इस्तेमाल आज भी गणना और शिक्षण के लिए किया जाता है. इस खगोलीय वेधशाला का इस्तेमाल सूर्य के चारों ओर कक्षाओं का अध्ययन करने के लिए भी किया जाता है.
यह विशाल वेधशाला करीब 18,700 वर्ग मीटर क्षेत्र में फैली हुई है. इसके निर्माण में बेहद अच्छी गुणवत्ता वाले संगमरमर के पत्थरों का इस्तेमाल किया गया है. इसमें समय, मौसम एवं अंतरिक्ष संबंधी भविष्यवाणी के साथ ही ग्रहों और तारों की स्थिति जानने के लिए कई अलग-अलग खगोलीय उपकरणों मौजूद हैं. इस वेधशाला में रखे गए खगोलीय उपकरण चूने और पत्थर के बने हैं तभी आज वर्षों बाद भी काम करते हैं. इन उपकरणों का इस्तेमाल आज भी गणना और शिक्षण के लिए किया जाता है. इस खगोलीय वेधशाला का इस्तेमाल सूर्य के चारों ओर कक्षाओं का अध्ययन करने के लिए भी किया जाता है.
जंतर मंतर के खास यंत्र और उनकी खासियत
जयपुर जंतर-मंतर में वर्तमान में लगभग 20 विशेष खगोलीय यंत्र रखे गए हैं, जो समय मापने, मौसम की स्थिति जानने, आकाशीय ऊंचाई का पता लगाने, किसी तारे की गति एवं स्थिति का पता लगाने और ग्रहण की भविष्यवाणी करने समेत सौरमंडल की तमाम गतिविधियों की जानकारी हासिल करने में मदद करते हैं. यहां सम्राट यंत्र, उन्नातांश यंत्र, दिशा यन्त्र, नाड़ीवलय यंत्र, जय प्रकाश यंत्र, लघु सम्राट यंत्र, पाषांश यंत्र, शशि वलय यंत्र, चक्र यंत्र, दिगंश यंत्र, ध्रुवदर्शक पट्टिका, दळिणोदक यंत्र, राम यंत्र, राज यंत्र, दक्षिणा यंत्र, ध्रुव यंत्र, दीर्घ क्रांति यंत्र, लघु क्रांति यंत्र, राशिवलय यंत्र जैसे उपकरण मौजूद हैं.
जयपुर जंतर-मंतर में वर्तमान में लगभग 20 विशेष खगोलीय यंत्र रखे गए हैं, जो समय मापने, मौसम की स्थिति जानने, आकाशीय ऊंचाई का पता लगाने, किसी तारे की गति एवं स्थिति का पता लगाने और ग्रहण की भविष्यवाणी करने समेत सौरमंडल की तमाम गतिविधियों की जानकारी हासिल करने में मदद करते हैं. यहां सम्राट यंत्र, उन्नातांश यंत्र, दिशा यन्त्र, नाड़ीवलय यंत्र, जय प्रकाश यंत्र, लघु सम्राट यंत्र, पाषांश यंत्र, शशि वलय यंत्र, चक्र यंत्र, दिगंश यंत्र, ध्रुवदर्शक पट्टिका, दळिणोदक यंत्र, राम यंत्र, राज यंत्र, दक्षिणा यंत्र, ध्रुव यंत्र, दीर्घ क्रांति यंत्र, लघु क्रांति यंत्र, राशिवलय यंत्र जैसे उपकरण मौजूद हैं.
दुनिया की सबसे बड़ी सूर्य घड़ी
जंतर-मंतर में रखे गए यंत्रों में सबसे अधिक आकर्षित करने वाला यंत्र पत्थर की सूर्य घड़ी या धूप घड़ी है. अंग्रेजी में इसे सन डायल कहते हैं. यह दुनिया की सबसे बड़ी पत्थर की सूर्य घड़ी है. इसका नाम वृहद सम्राट यंत्र है. यह सम्राट यंत्र स्थानीय समय को 2 सेकंड की सटीकता तक माप सकता है. राम यंत्र आकाशीय ऊंचाई मापने का प्रमुख यंत्र है. जय प्रकाश यंत्र का उपयोग सितारों की सही स्थिति का पता लगाने के लिए किया जाता है. मिश्र यंत्र से वर्ष के सबसे छोटे और सबसे बड़े दिनों का पता लगाया जाता है. नाड़ीवलय यंत्र से सूर्य की स्थिति और स्थानीय समय का अनुमान लगता है.
जंतर-मंतर में रखे गए यंत्रों में सबसे अधिक आकर्षित करने वाला यंत्र पत्थर की सूर्य घड़ी या धूप घड़ी है. अंग्रेजी में इसे सन डायल कहते हैं. यह दुनिया की सबसे बड़ी पत्थर की सूर्य घड़ी है. इसका नाम वृहद सम्राट यंत्र है. यह सम्राट यंत्र स्थानीय समय को 2 सेकंड की सटीकता तक माप सकता है. राम यंत्र आकाशीय ऊंचाई मापने का प्रमुख यंत्र है. जय प्रकाश यंत्र का उपयोग सितारों की सही स्थिति का पता लगाने के लिए किया जाता है. मिश्र यंत्र से वर्ष के सबसे छोटे और सबसे बड़े दिनों का पता लगाया जाता है. नाड़ीवलय यंत्र से सूर्य की स्थिति और स्थानीय समय का अनुमान लगता है.
किस यंत्र का क्या काम है
ध्रुवदर्शक पट्टिका यंत्र के दक्षिणी सिरे पर आंख लगाकर देखने से उत्तरी सिरे पर ध्रुव तारे की स्थिति स्पष्ट होती है. राशि वलय की संख्या 12 है जो 12 राशियों को इंगित करते हैं. प्रत्येक राशि और उनमें ग्रह-नक्षत्रों की स्थिति की जानकारी प्रदान करते हैं.
ध्रुवदर्शक पट्टिका यंत्र के दक्षिणी सिरे पर आंख लगाकर देखने से उत्तरी सिरे पर ध्रुव तारे की स्थिति स्पष्ट होती है. राशि वलय की संख्या 12 है जो 12 राशियों को इंगित करते हैं. प्रत्येक राशि और उनमें ग्रह-नक्षत्रों की स्थिति की जानकारी प्रदान करते हैं.
यहां लगे उपकरणों की सबसे खास बात यह है कि हजारों साल बाद आज भी यह उपकरण सही तरीके से काम कर रहे हैं. पर्यवेक्षक आज भी गणना के लिए इस यंत्र का इस्तेमाल सभी मौसम सबंधी जानकारियां हासिल करने के लिए करते हैं. जयपुर जंतर-मंतर में रियासत कालीन परंपरा के अनुसार आषाढ़ महीने की पूर्णिमा के दिन आज भी सम्राट यंत्र से वायु परीक्षण किया जाता है. इस वायु परीक्षण के लिए ज्योतिषाचार्य सम्राट यंत्र की ऊंचाई पर पहुंचते हैं, और एक ध्वज लहराकर वायु की दिशा के आधार पर वर्षा का पूर्वानुमान करते हैं, जो करीब 100 किलोमीटर की परिधि में बारिश का सटीक पूर्वानुमान बताता है. इन्हीं यंत्रों की गणना के आधार पर आज भी जय विनोदी नाम से पंचांग निकाला जाता है.
इस प्राचीन वेधशाला को देखने हर साल लगभग सात लाख देशी विदेशी सैलानी आते हैं. इनमें कई ऐसे हैं जो इन प्राचीन यंत्रों का अध्ययन करने आते हैं. इन यन्त्रों को देखने से पता चलता है कि प्राचीन काल से ही भारतीयों को गणित और खगोलिकी की जटिल संकल्पनाओं में गहरी रुचि और गहन ज्ञान था. ये वेधशाला उसका जीता जागता सबूत हैं. सवाई जयसिंह खुद खगोल शास्त्र विषय में रुचि रखते थे. उन्होंने एक किताब भी लिखी थी, यंत्र राज्य रचना, जिसमें यंत्रों के बारे में लिखा गया था.
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