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पापी से लेकर पुण्यात्मा तक....., मरते समय इन अंगों से निकलते हैं प्राण, गरुण पुराण में है व्याख्या

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Agency:Local18
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नौ छिद्रों से मिले संकेतों से आत्मा के वहिरगमन के संकेत प्राप्त होते हैं, जिनसे प्राणी के कर्म और मृत्यु के प्रकार का पता चलता है कि प्राणी नारकी (अधोगामी) था या फिर ऊर्धगामी था.

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विकाश पाण्डेय / सतना:- जीवन में एक दिन मृत्यु सभी की आती है. लेकिन सभी के प्राण अलग-अलग तरह से निकलते हैं. मरते समय किसी का मुंह टेढ़ा हो जाता है, तो किसी की आंखें उलट जाती हैं. ऐसे ही कई संकेतों से मनुष्य के कर्म को समझा जाता है, तो आज हम उन्ही संकेतों और इनकी धार्मिक मान्यताओं के बारे में बात करेंगे.

आध्यात्मिक गुरु पं. रमाशंकर महाराज ने बताया की गरुण पुराण के 16 वें अध्याय प्रेत खंड के अनुसार मनुष्य की मृत्यु के बाद शरीर के नौ छिद्रों से आत्म निकलती हैं. यह नौ छिद्र दो आंख, नाक के दो छिद्र, कान के दो छिद्र, मुख सहित मल, मूत्र मार्ग होते हैं. इन्हीं नौ छिद्रों से मिले संकेतों से आत्मा के वहिरगमन के संकेत प्राप्त होते हैं, जिनसे प्राणी के कर्म और मृत्यु के प्रकार का पता चलता है कि प्राणी नारकी (अधोगामी) था या फिर ऊर्धगामी था.
पापी प्राणी के ऐसे निकलते हैं प्राण
गरुण पुराण के अनुसार जो व्यक्ति पापी होते हैं, सदैव अपने और अपने परिवार के बारे में बस सोचते हैं, धन लोभी और कामवासना में लीप्त होता हैं, लोक कल्याण, सामाजिक कर्तव्य और मानवीय नैतिक मूल्यों से दूर होते हैं, ऐसे प्राणी नारकी प्राणी होते हैं. ऐसे पापियों के प्राण मल, मूत्र मार्ग से निकलते हैं.

पारिवारिक मोह में लीन प्राणी के ऐसे निकलते हैं प्राण
गरुड़ पुराण में भगवान विष्णु गरुड़ को बताते हैं कि जो जीने की बहुत ज्यादा चाह रखते हैं और अपने परिजनों से जिनका मोह बहुत ज्यादा होता है, ऐसे लोग परिवार के मोह के कारण प्राण नहीं छोड़ना चाहते. फिर यमराज के दूत बलपूर्वक उनके प्राण निकालते हैं. ऐसे में जब उनके प्राण आंखों से बलपूर्वक निकलते हैं, तो आंखें उलट जाती हैं.
मुंह और नाक से प्राण निकलना
मान्यता है कि जो लोग जीवन भर धर्म के मार्ग पर चलते हैं, उनके प्राण वायु में मुंह के द्वारा निकलते हैं. और मुंह टेढ़ा हो जाता है. मुंह से प्राण निकलना बहुत ही शुभ माना जाता है.

नाक से प्राण निकलना
जिस मनुष्य ने सामाजिक और पारिवारिक कर्तव्यों को अच्छे से निर्वाह किया हो और जिसका मन वैरागी हो, उसके प्राण नाक से निकलते हैं. इस तरह से प्राण निकलना काफी शुभ माना जाता है.
शास्त्रीय मतानुसार भगवान की भक्ति में लीन योगी, संत, महात्मा, वैरागी, जो ईश्वर की भक्ति में लीन होकर भगवत मार्ग से प्राणों को स्वयं से त्यागते हैं अर्थात जो योगी होते हैं, उनके प्राण ब्रम्ह तालु यानी मस्तिष्क के ऊपर वाले कोपल स्थान से अदृश्य रुप से निकलते हैं.

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मरते समय मनुष्य के इन अंगों से निकलते हैं प्राण, गरुण पुराण में है व्याख्या
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