चीन के दबाव में पीछे हटा श्रीलंका, भारत और जापान से तोड़ा ECT करार
Agency:News18Hindi
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भारत और जापान (India and Japan) के साथ इस्टर्न कंटेनर टर्मिनल (ECT) प्रोजेक्ट से श्रीलंका पीछे हट गया है. सूत्रों के मुताबिक श्रीलंका ने ये कदम चीन के दबाव में उठाया है.

नई दिल्ली. श्रीलंका (Sri Lanka) ने अपना 73वां स्वतंत्रता दिवस (Independence Day) गुरुवार को मनाया. कार्यक्रम में देश के राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री दोनों मौजूद थे. लेकिन इस दौरान वहां पर मौजूद अधिकारी श्रीलंका ने यू-टर्न को लेकर चर्चा कर रहे थे. दरअसल भारत और जापान के साथ इस्टर्न कंटेनर टर्मिनल (ECT) प्रोजेक्ट से श्रीलंका पीछे हट गया है. सूत्रों के मुताबिक श्रीलंका ने ये कदम चीन के दबाव में उठाया है.
25 ट्रेड यूनियन की बदौलत दबाव बनाया गया
श्रीलंका के इस कदम को सीधे तौर पर विदेश नीति में बदलाव से जोड़कर देखा जा रहा है. इस कदम को दिल्ली और टोक्यो में एक झटके के रूप में देखा गया. कुछ विश्वसनीय सूत्रों के मुताबिक इस पूरे घटनाक्रम के पीछे बीजिंग का दबाव काम कर रहा है. कहा जा रहा है कि भारत और जापान को इस पैक्ट से बाहर करने के लिए 25 ट्रेड यूनियन की बदौलत दबाव बनाया गया. इन ट्रेड यूनियन पर बीजिंग का दबाव है. यूनियनों ने भारत और जापान को पैक्ट से बाहर करने की चेतावनी दी थी.
श्रीलंका के इस कदम को सीधे तौर पर विदेश नीति में बदलाव से जोड़कर देखा जा रहा है. इस कदम को दिल्ली और टोक्यो में एक झटके के रूप में देखा गया. कुछ विश्वसनीय सूत्रों के मुताबिक इस पूरे घटनाक्रम के पीछे बीजिंग का दबाव काम कर रहा है. कहा जा रहा है कि भारत और जापान को इस पैक्ट से बाहर करने के लिए 25 ट्रेड यूनियन की बदौलत दबाव बनाया गया. इन ट्रेड यूनियन पर बीजिंग का दबाव है. यूनियनों ने भारत और जापान को पैक्ट से बाहर करने की चेतावनी दी थी.
कर्ज में दबे श्रीलंका ने उठाया ऐसा कदम
साउथ एशिया माइनर में छपी एक रिपोर्ट में भारतीय अधिकारियों के हवाले से कहा गया है कि भारत इसमें स्पष्ट तौर पर चीन का हाथ देख रहा है. चीनी एजेंसीज इस प्रोजेक्ट के विरोध में प्रदर्शनों को भी फंड कर रही थीं. इसे श्रीलंका में चीन और भारत के बीच पैर जमाने की जंग के तौर पर प्रदर्शित किया गया. श्रीलंकाई पत्रकार कलानी कुमारसिंघे के मुताबिक-चीन का बड़ा कर्ज देश पर है जो श्रीलंका चुका नहीं पा रहा है. यही वजह है कि देश के हंबंतोता बंदरगाह का कंट्रोल चीनी व्यापारियों को दिया गया. इसके बाद से श्रीलंका सरकार को लगातार स्थानीय समूहों और ट्रेड यूनियनों की आलोचना का सामना करना पड़ा.
साउथ एशिया माइनर में छपी एक रिपोर्ट में भारतीय अधिकारियों के हवाले से कहा गया है कि भारत इसमें स्पष्ट तौर पर चीन का हाथ देख रहा है. चीनी एजेंसीज इस प्रोजेक्ट के विरोध में प्रदर्शनों को भी फंड कर रही थीं. इसे श्रीलंका में चीन और भारत के बीच पैर जमाने की जंग के तौर पर प्रदर्शित किया गया. श्रीलंकाई पत्रकार कलानी कुमारसिंघे के मुताबिक-चीन का बड़ा कर्ज देश पर है जो श्रीलंका चुका नहीं पा रहा है. यही वजह है कि देश के हंबंतोता बंदरगाह का कंट्रोल चीनी व्यापारियों को दिया गया. इसके बाद से श्रीलंका सरकार को लगातार स्थानीय समूहों और ट्रेड यूनियनों की आलोचना का सामना करना पड़ा.
अब बढ़ते प्रदर्शनों को शांत करने के लिए कोलंबो एयरपोर्ट पर भारत और जापान के साथ विकसित किए जा रहे इस्टर्न टर्मिनल की जगह वेस्टर्न टर्मिनल विकसित करने की घोषणा की गई. सरकार ने कहा कि वेस्टर्न टर्मिनल पूरी तरीके से श्रीलंका पोर्ट अथॉरिटी के तौर पर विकसित किया जाएगा. भारत और जापान दोनों ने ही श्रीलंका को अपने करार की याद दिलाई है. गौरतलब है कि जापान लंबे समय से श्रीलंका में निवेश करता रहा है और कोलंबो पोर्ट को भी डेवलप करने में मदद की थी. लेकिन अब श्रीलंका अधर में है. एक तरफ भारत है जो उसका सबसे नजदीकी और मददगार पड़ोसी है तो दूसरी तरफ चीन है जिससे उसने अरबों का कर्ज ले रखा है.
(डीपी सतीश की ये स्टोरी मूल रूप में अंग्रेजी में है. इसे यहां क्लिक कर पूरा पढ़ा जा सकता है.)
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