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बाबरी केस: 'मस्जिद में नमाज' मामले पर दोनों जजों से असहमत क्यों थे जस्टिस नजीर?

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जस्टिस नजीर ने कहा, 'मैं अपने भाई जजों की राय से सहमत नहीं हूं. मस्जिद इस्लाम का अभिन्न हिस्सा है, इस विषय पर फैसला धार्मिक आस्था को ध्यान में रखते हुए होना चाहिए, उसपर गहन विचार की जरूरत है.'

बाबरी केस: 'मस्जिद में नमाज' मामले पर दोनों जजों से असहमत क्यों थे जस्टिस नजीर?29 अक्टूबर से अयोध्या केस की सुनवाई शुरू होगी.
अयोध्या के रामजन्मभूमि-बाबरी मस्जिद विवाद से जुड़े एक अहम मामले में सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को बड़ा फैसला सुनाया. तीन जजों की बेंच ने 1994 में दिए गए 'मस्जिद इस्लाम का अभिन्न अंग है या नहीं' के फैसले को पुनर्विचार के लिए बड़ी बेंच (पांच सदस्यीय) में भेजने से इनकार कर दिया है. फैसला देने वाली बेंच में सीजेआई दीपक मिश्रा, जस्टिस अशोक भूषण और जस्टिस एसए नजीर शामिल थे. 2-1 के बहुमत से आए सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले में तीसरे जज नजीर इस मामले में चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा और जस्टिस भूषण से सहमत नहीं थे.

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जस्टिस नजीर ने कहा, 'मैं अपने भाई जजों की राय से सहमत नहीं हूं. मस्जिद इस्लाम का अभिन्न हिस्सा है, इस विषय पर फैसला धार्मिक आस्था को ध्यान में रखते हुए होना चाहिए, उस पर गहन विचार की जरूरत है.'

खतने पर सुप्रीम कोर्ट के हाल के फैसले का जिक्र करते हुए जस्टिस नजीर ने कहा, 'इस मामले को बड़ी बेंच में भेजा जाना चाहिए. मस्जिद इस्लाम का अभिन्न हिस्सा है, इस विषय पर फैसला धार्मिक आस्था को ध्यान में रखते हुए होना चाहिए, उसपर गहन विचार की जरूरत है.'

दो जजों ने फैसले में क्या कहा?
जस्टिस भूषण ने अपने और CJI दीपक मिश्रा की तरफ से फैसले में कहा कि अयोध्या जमीन विवाद को बड़ी बेंच को नहीं भेजा जाएगा. सुप्रीम कोर्ट ने 2-1 से फैसला सुनाते हुए कहा कि मामले को बड़ी बेंच में भेजने की जरूरत नहीं है.

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जस्टिस भूषण ने कहा कि सभी मंदिर, मस्जिद और चर्च का अधिग्रहण किया जा सकता है. उन्होंने कहा कि मस्जिद में नमाज इस्लाम का अभिन्न हिस्सा नहीं है, यह कहा जा चुका है. उन्होंने कहा कि सवाल था कि मस्जिद का अधिग्रहण हो सकता है या नहीं.

क्या कहते हैं मुस्लिम पक्षकार?
यह मुद्दा अयोध्या केस की सुनवाई के दौरान उठा था. दरअसल, मुस्लिम पक्षकारों की ओर से दलील दी गई थी कि इस केस की सुनवाई बड़ी बेंच में होनी चाहिए. पक्षकारों का तर्क था कि 1994 में इस्माइल फारूकी केस में सुप्रीम कोर्ट ने अपने जजमेंट में कहा है कि मस्जिद में नमाज पढ़ना इस्लाम का अभिन्न हिस्सा नहीं है. ऐसे में इस फैसले को दोबारा परीक्षण की जरूरत है और मामले को संवैधानिक बेंच को भेजा जाना चाहिए.
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