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भारतीय शोधकर्ताओं को मिली बड़ी सफलता, खोजी मीठे पानी की खाने वाली नई प्रजाति की मछली

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ओडिशा केंद्रीय विश्वविद्यालय (CUO), कोरापुट और जूलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया (जेडएसआई) के शोधकर्ताओं ने हाल ही में घाटगुडा में कोरापुट के कोलाब नदी से एक दुर्लभ मीठे पानी की खाद्य मछली (Edible Fish) खोजी है.

भारतीय शोधकर्ताओं को बड़ी सफलता, खोजी मीठे पानी की खाने वाली नई प्रजाति की मछलीनई प्रजाति का नाम 'गर्रा लैशरामी' रखा गया है.(ANI)
भुवनेश्वर: ओडिशा केंद्रीय विश्वविद्यालय (CUO), कोरापुट और जूलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया (जेडएसआई) के शोधकर्ताओं ने हाल ही में घाटगुडा में  कोरापुट के कोलाब नदी से एक दुर्लभ मीठे पानी की खाद्य मछली (Edible Fish) खोजी है. डीएसटी इंस्पायर (DST INSPIRE) की टॉपिक ‘ओडिशा के पूर्वी घाटों में कोरापुट के मीठे पानी के निकायों में विविधता, मछलियों का वितरण और खतरे’ विषय पर रिसर्च करने वाली सुप्रिया सुरचिता, सीयूओ के प्रोफेसर शरत कुमार पलिता, जैव विविधता और संरक्षण स्कूल के डीन की देखरेख में किया. कोलाब नदी, गोदवरी नदी की एक महत्वपूर्ण सहायक नदी है. वहीं, यूनिवर्सिटी के वाईस चांसलर ने पूरे टीम बधाई को दिया है.

ऐसे मिली सफलता

मालूम हो कि सीयूओ के शोधकर्ताओं ने जूलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया (जेडएसआई), कोलकाता के बी रॉय चौधरी के साथ जीनस गर्रा की कुछ मछलियों को सावधानीपूर्वक जांच कर रहे थे, तभी ये मछली की नई प्रजाति की खोज में सफलता मिली. इस नई प्रजाति को जीएसआई के डॉ लैशराम कोश्यिन के सम्मान में ‘गर्रा लैशरामी’ नाम दिया गया है. वहीं, इस रिसर्च को जर्मनी की अंतराष्ट्रीय पत्रिका ‘इचथियोलॉजिकल एक्सप्लोरेशन ऑफ फ्रेशवाटर्स’ में भी स्थान दिया गया है.
आकार और पाए जाने का क्षेत्र
इस प्रजाति की मछलियां लंबी, छोटी से मध्यम आकार और पानी में काफी अंदर रहती हैं. इनके गूलर क्षेत्रों से उत्तकों के विकास के कारण गूलर डिस्क बनता है जो, उनके थूथन के आकार, उनका आकार, उनके बनावट को औरों मछलियों से अलग करती हैं. इस प्रकार की मछलियां, बोर्नियों, दक्षिणी चीन, दक्षिणी एशिया से लेकर मध्य पूर्व एशिया, अरब प्रायद्वीप, पूर्व से पश्चिमी अफ्रीका तक मिलती हैं. हालांकि, अभी तक जानकारी वाली, गर्रा लैशरामी सिर्फ पूर्वी घाट की गोदावरी नदी की सहायक नदी, कोलाब में मिले जाने की मालूम चला है. 
किस प्रजाति से संबंधित हैं?
ये नई मछली एक प्रकार से शुण्ड प्रजाति से संबंधित है जिसके लंबे नाक या थूथन होते हैं जो कि ये एक प्रकार के नालिकार रूप में होते हैं. इस प्रजाति के अन्य सदस्य भारतीय महाद्वीप में ही पाए जाते हैं. इनके मुंह आगे की तरफ निकले हुए, और उनपर चेचक की तरह कुछ उठे हुआ होते हैं, जो इनके शारीरिक बनावट और इन्हे अन्य प्रजातियों से अलग बनाते हैं.
स्थानीय लोग इसे खाते हैं 
इनकी लंबाई 76 मिमी से 95.5 मिमी तक होती हैं और ये खाने योग्य होती हैं. हालांकि, खोज के पहले से स्थानीय लोग इन्हे खाने में प्रयोग करते हैं. ये मछलिया पानी के अंदर रॉक के अंदर या उनके बीच में पायी जाती हैं. वहीं, रिसर्च में कोलाब नदी में गुप्तेश्वर के सबरी इलाके इनकी बहुलता की बात कही गई है.
नई प्रजातियों के मिलने की उम्मीद
वहीं, रिसर्च टीम के हेड, प्रो. एस के. पालिता बताया कि कोरापुट जैव विविधता का एक समृद्ध भंडार है जहां जीवों की कई प्रजातियां अभी भी वैज्ञानिक दुनिया के लिए अज्ञात हैं. इस समृद्ध जैव विविधता की गहन जांच होनी चाहिए और इसके संरक्षण के प्रयास समय की मांग है. प्रो. पालिता को इस क्षेत्र से मछली की कुछ और नई प्रजातियों के मिलने की उम्मीद है.
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