AIIMS के बाद इन 3 बड़े अस्पतालों में होगा 'बोन मैरो ट्रांसप्लांट', केंद्र ने बनाई ये बड़ी योजना, जानिए कितना आएगा इलाज पर खर्च?
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Bone Marrow Transplant in Central Hospitals: नई दिल्ली स्थित एम्स (AIIMS) के अलावा राजधानी के तीन अन्य अस्पतालों में भी बोन मैरो ट्रांसप्लांट (BMT) करने की सुविधा शुरू करने की तैयारी की जा रही है. केंद्र सरकार के इन तीनों अस्पतालों में बोन मैरो ट्रांसप्लांट के लिए केंद्र स्थापित किए जा रहे हैं जिसके बाद इस बीमारी से ग्रसित मरीजों को कम दाम में अच्छे और बेहतर इलाज की सुविधा मिल सकेगी. प्राइवेट अस्पतालों में बोन मैरो ट्रांसप्लांट पर करीब 12 से 30 लाख रुपये का खर्च आता है.

नई दिल्ली. बोन मैरो ट्रांसप्लांट यानी अस्थि मज्जा प्रत्यारोपण (Bone Marrow Transplant) को किफायती और आम मरीजों की पहुंच में लाने के लिए केंद्र सरकार (Central Government) ने बड़ा कदम उठाया है. नई दिल्ली स्थित एम्स (AIIMS) के अलावा राजधानी के तीन अन्य अस्पतालों में भी बोन मैरो ट्रांसप्लांट (BMT) करने की सुविधा शुरू करने की तैयारी की जा रही है.
केंद्र सरकार के इन तीनों अस्पतालों (Central Government Hospitals) में बोन मैरो ट्रांसप्लांट के लिए केंद्र स्थापित किए जा रहे हैं. जिसके बाद इस बीमारी से ग्रसित मरीजों को कम दाम में अच्छे और बेहतर इलाज की सुविधा मिल सकेगी. प्राइवेट अस्पतालों में इस बीमारी का इलाज कराना आम मरीजों के वश की बात नहीं है. प्राइवेट अस्पतालों में बोन मैरो ट्रांसप्लांट पर करीब 12 से 30 लाख रुपये का खर्च आता है.
टाइम्स ऑफ इंडिया की एक रिपोर्ट के मुताबिक केंद्र सरकार इस बीमारी के इलाज को किफायती बनाने की दिशा में बड़ा काम कर रही है. अब तक केवल एम्स में ही इसका इलाज किया जा रहा था. इसको अब विस्तार देने के लिए योजना बनाई है. केंद्र सरकार ने अपने अधीनस्थ तीन और अस्पतालों (Central Government Hospitals) में इस बीमारी के इलाज के लिए सेंटर स्थापित करने की तैयारी की है. इसको लेकर संबंधित अस्पतालों में इसके इलाज के लिए तेजी के साथ काम किया जा रहा है. इन तीन अस्पतालों में सफदरजंग (Safdarjung Hospital), आरएमएल (RML) और लेडी हार्डिंग अस्पताल (Lady Hardinge Hospital) प्रमुख रूप से शामिल हैं.
सूत्रों की माने तो हाल ही में स्वास्थ्य सेवाओं के महानिदेशक कार्यालय में एक अहम बैठक भी आयोजित की गई थी. इस बैठक में भाग लेने वाले एक डॉक्टर के मुताबिक आगामी 11 अप्रैल को खास मीटिंग होने जा रही है. इस मीटिंग में इस सुविधा से संबंधित सभी तौर तरीकों को अंतिम रूप दिया जा सकता है. अगर सब कुछ ठीक ठाक रहा तो इन तीनों अस्पतालों सफदरजंग, आरएमएल और लेडी हार्डिंग में जल्द ही केंद्र शुरू होने की संभावना है. इन केंद्रों की शुरुआत करने के पीछे मकसद निजी अस्पतालों में महंगे इलाज के मुकाबले किफायती इलाज उपलब्ध कराना है. जिससे कि मरीजों को परेशानी ना उठानी पड़े.
प्राइवेट अस्पताल में ट्रांसप्लांट पर आता है करीब 30 लाख का खर्च
अधिकारियों का कहना है कि इन केंद्रों पर एक मरीज के लिए अधिकतम खर्च करीब 2 लाख रुपये तक आएगा. इन मरीजों के इलाज के लिए ज्यादातर दवाएं और डाइग्नोसिस टेस्ट आदि की सुविधा अस्पतालों में उपलब्ध नहीं हैं. डोनर के प्रकार और स्टेम सेल के स्रोत के अनुसार निजी अस्पतालों में प्रत्यारोपण की लागत 12 लाख से 30 लाख रुपये तक होती है. वहीं, एम्स में हर माह केवल 15 प्रत्यारोपण करने की क्षमता है. इस कारण से कई रोगी लंबे समय तक प्रतीक्षा करते हैं क्योंकि वे निजी क्षेत्र के अस्पतालों में इलाज का खर्च नहीं उठा सकते हैं.
अधिकारियों का कहना है कि इन केंद्रों पर एक मरीज के लिए अधिकतम खर्च करीब 2 लाख रुपये तक आएगा. इन मरीजों के इलाज के लिए ज्यादातर दवाएं और डाइग्नोसिस टेस्ट आदि की सुविधा अस्पतालों में उपलब्ध नहीं हैं. डोनर के प्रकार और स्टेम सेल के स्रोत के अनुसार निजी अस्पतालों में प्रत्यारोपण की लागत 12 लाख से 30 लाख रुपये तक होती है. वहीं, एम्स में हर माह केवल 15 प्रत्यारोपण करने की क्षमता है. इस कारण से कई रोगी लंबे समय तक प्रतीक्षा करते हैं क्योंकि वे निजी क्षेत्र के अस्पतालों में इलाज का खर्च नहीं उठा सकते हैं.
AIIMS में हर साल होते हैं 200 ट्रांसप्लांट
इंडियन सोसाइटी फॉर ब्लड एंड मैरो ट्रांसप्लांटेशन की माने तो दिल्ली-एनसीआर में करीब 1,200 अस्थि मज्जा प्रत्यारोपण किए जाते हैं, जिनमें हर साल कम से कम 200 ट्रांसप्लांट एम्स में होते हैं. लेकिन इसके इलाज की 3,200 रोगियों को जरूरत होती है.
इंडियन सोसाइटी फॉर ब्लड एंड मैरो ट्रांसप्लांटेशन की माने तो दिल्ली-एनसीआर में करीब 1,200 अस्थि मज्जा प्रत्यारोपण किए जाते हैं, जिनमें हर साल कम से कम 200 ट्रांसप्लांट एम्स में होते हैं. लेकिन इसके इलाज की 3,200 रोगियों को जरूरत होती है.
फोर्टिस मेमोरियल रिसर्च इंस्टीट्यूट, गुड़गांव के हेमेटोलॉजी के निदेशक डॉ. राहुल भार्गव ने महानिदेशक की मीटिंग में शिरकत की थी. उन्होंने कहा कि वह सरकारी अस्पतालों में मुफ्त में प्रक्रियाएं करने के लिए तैयार हैं और साथ ही साथ कर्मचारियों को प्रशिक्षित करेंगे ताकि बाद में वे स्वयं उनका संचालन कर सकें.
डॉक्टरों के अनुसार, एक मरीज को स्वस्थ स्टेम सेल (रक्त बनाने वाली कोशिकाएं) प्राप्त होती हैं, जो विकिरण उपचार या कीमोथेरेपी की उच्च खुराक से नष्ट हो चुके अपने स्वयं के स्टेम सेल (Stem Cells) को बदलने के लिए होती हैं. स्वस्थ स्टेम कोशिकाएं रोगी के अस्थि मज्जा या संबंधित या असंबंधित डोनर से आ सकती हैं.
इस तरह से काम करेंगे इन अस्पतालों के बीएमटी सेंटर
इस मामले पर सफदरजंग अस्पताल के चिकित्सा अधीक्षक डॉ. बीएल शेरवाल का कहना है कि इस सुविधा को शुरू करने के लिए अस्पताल में बुनियादी ढांचा और मानव संसाधन पर्याप्त है. इसलिए इस सुविधा को जल्द ही अस्पताल में शुरू कर दिया जाएगा. वहीं, लेडी हार्डिंग मेडिकल कॉलेज और संबद्ध अस्पतालों के निदेशक डॉ. सुभाष गिरि ने भी इस सुविधा को जल्द शुरू करने की पुष्टि की है.
इस मामले पर सफदरजंग अस्पताल के चिकित्सा अधीक्षक डॉ. बीएल शेरवाल का कहना है कि इस सुविधा को शुरू करने के लिए अस्पताल में बुनियादी ढांचा और मानव संसाधन पर्याप्त है. इसलिए इस सुविधा को जल्द ही अस्पताल में शुरू कर दिया जाएगा. वहीं, लेडी हार्डिंग मेडिकल कॉलेज और संबद्ध अस्पतालों के निदेशक डॉ. सुभाष गिरि ने भी इस सुविधा को जल्द शुरू करने की पुष्टि की है.
उन्होंने कहा कि अपने इन अस्पतालों में इस सुविधा को शुरू करने के लिए क्षेत्र की पहचान कर ली गई थी. इसके लिए सामग्री की खरीद की जा रही है. उन्होंने उम्मीद जताई कि अगले कुछ माह के भीतर इस सुविधा को शुरू कर दिया जाएगा. शुरुआती चरण में इस सुविधा के लिए दो बेड उपलब्ध होंगे. इसके बाद इनकी संख्या को बढ़ाकर 6 कर दिया जाएगा.
इस बीमारी से जूझ रहे मरीजों की मदद करने वाले जनहितैषी सुनील कपूर का कहना है कि कई मरीज ट्रांसप्लांट कराने के लिए एक अस्पताल से दूसरे अस्पताल जाते रहते हैं. लेकिन या तो वो आर्थिक तंगी या फिर सीमित सरकारी सुविधाओं के कारण लंबी वेटिंग लिस्ट के चलते खुद को असहाय महसूस करते हैं.
क्या होता है बोन मैरो ट्रांसप्लांटेशन
बताते चलें कि बोन मैरो ट्रांसप्लांटेशन या बीएमटी या स्टेम सेल ट्रांसप्लांट एक जटिल मेडिकल प्रक्रिया होती है. इसमें क्षतिग्रस्त या नष्ट हुई स्टेम सेल को स्वस्थ बोन मैरो सेल से बदला जाता है. बोन मैरो या अस्थि मज्जा हड्डियों के बीच पाया जाने वाला एक पदार्थ होता है जिसमें स्टेम सेल होते हैं. बोन मैरो ट्रांसप्लांटेशन की आवश्यकता तब पड़ती है जब बोन मैरो ठीक तरह से काम करना बंद कर देता है या पर्याप्त मात्रा में स्वस्थ रक्त कोशिकाओं का उत्पादन नहीं कर पाता है. बोन मैरो ट्रांसप्लांटेशन में यह जरूरी है कि रोगी का बोन मैरो डोनर के बोन मैरो से मेल खाता हो. इसके साथ ही ह्यूमन ल्यूकोसाइट एंटीजन यानी एचएलए का मैच होना भी जरूरी है.
बताते चलें कि बोन मैरो ट्रांसप्लांटेशन या बीएमटी या स्टेम सेल ट्रांसप्लांट एक जटिल मेडिकल प्रक्रिया होती है. इसमें क्षतिग्रस्त या नष्ट हुई स्टेम सेल को स्वस्थ बोन मैरो सेल से बदला जाता है. बोन मैरो या अस्थि मज्जा हड्डियों के बीच पाया जाने वाला एक पदार्थ होता है जिसमें स्टेम सेल होते हैं. बोन मैरो ट्रांसप्लांटेशन की आवश्यकता तब पड़ती है जब बोन मैरो ठीक तरह से काम करना बंद कर देता है या पर्याप्त मात्रा में स्वस्थ रक्त कोशिकाओं का उत्पादन नहीं कर पाता है. बोन मैरो ट्रांसप्लांटेशन में यह जरूरी है कि रोगी का बोन मैरो डोनर के बोन मैरो से मेल खाता हो. इसके साथ ही ह्यूमन ल्यूकोसाइट एंटीजन यानी एचएलए का मैच होना भी जरूरी है.
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Bhupender Panchal
करीब 18 साल से पत्रकारिता के पेशे से जुड़ा हूं. पूर्व PM अटल बिहारी वाजपेयी (Atal Bihari Vajpayee) पूर्व डिप्टी PM एलके आडवाणी (LK Advani) द्वारा संपादित समाचार-पत्र वीर अर्जुन (मॉर्निंग) से अपने पत्रकारि...और पढ़ें
करीब 18 साल से पत्रकारिता के पेशे से जुड़ा हूं. पूर्व PM अटल बिहारी वाजपेयी (Atal Bihari Vajpayee) पूर्व डिप्टी PM एलके आडवाणी (LK Advani) द्वारा संपादित समाचार-पत्र वीर अर्जुन (मॉर्निंग) से अपने पत्रकारि... और पढ़ें
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