NFHS-5 की रिपोर्ट- देश में फर्टिलिटी रेट में आई कमी, लोग अपना रहे हैं गर्भ निरोध के आधुनिक तरीके
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Agency:News18Hindi
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राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण (NFHS-5) के आंकड़ों से पता चलता है कि लोग परिवार नियोजन पर विशेष ध्यान दे रहे हैं. सर्वेक्षण के मुताबिक गर्भनिरोधकों के आधुनिक तरीकों का उपयोग भी लगभग सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में बढ़ गया है. इतना ही नहीं अब ग्रामीण महिलाएं भी अस्पतालों में प्रसव के लिए अधिक संख्या में पहुंच रही हैं.

नई दिल्ली. राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण (एनएफएचएस-5) के पांचवे चरण की रिपोर्ट से पता चला है कि भारत की कुल प्रजनन दर (फर्टिलिटी रेट) 2.2 से घटकर 2.0 हो गई है. इसे पता चलता है कि देश में जनसंख्या नियंत्रण के लिए उठाए गए कदम सकारात्मक परिणाम दे रहे हैं. गौरतलब है कि एनएफएचएस के चौथे चरण के आंकड़े के अनुसार प्रजनन दर 2.7 था. बता दें कि प्रति महिला बच्चों की औसत संख्या के रूप में कुल प्रजनन दर निकाला जाता है. नए आंकड़ों के अनुसार, देश में केवल 5 ऐसे राज्य हैं, जहां की प्रजनन क्षमता 2.1 से अधिक है. इनमें बिहार (2.98), मेघालय (2.91), उत्तर प्रदेश (2.35), झारखंड (2.26) और मणिपुर (2.17) शामिल हैं.
एनएफएचएस-5 सर्वक्षण का कार्य देश के 28 राज्यों और 8 केंद्र शासित प्रदेशों के 707 जिलों (मार्च 2017 तक) के तकरीबन 6.37 लाख परिवारों में काय गया था, जिसमें 7,24,115 महिलाओं और 1,01,839 पुरुषों को शामिल किया गया था, ताकि अलग-अलग अनुमान का पता चल सके. सर्वेक्षण में यह भी पता चला है कि देश में कन्ट्रासेप्टिव प्रिवलेंस रेट (सीपीआर) में भी अच्छी वृद्धि हुई है. यह 54 फीसदी से बढ़कर 67 फीसदी हो गया है. सरल भाषा में कहें तो देश की महिला अपने जीवन में 2 बच्चों को ही जन्म दे रही हैं.
ग्रामीण महिलाओं में आई है जागरूकता
न्यूज एजेंसी एएनआई की एक रिपोर्ट के मुताबिक, गर्भनिरोधकों के आधुनिक तरीकों का उपयोग भी लगभग सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में बढ़ गया है. लोग परिवार नियोजन पर विशेष ध्यान दे रहे हैं. इतना ही नहीं अब महिलाएं अस्पतालों में प्रसव के लिए अधिक संख्या में पहुंच रही हैं. नए आंकड़ों के मुताबिक, इसमें 89 फीसदी की वृद्धि हुई है. पहले 79 फीसदी बच्चों का जन्म अस्पताल में होता था. ग्रामीण क्षेत्रों में भी यह आंकड़ा बढ़ा है. शहरी क्षेत्रों में 94 फीसदी बच्चों का जन्म अस्पताल में होता है. अरूणाचल प्रदेश, असम, बिहार, मेघालय, छत्तीसगढ़, नागालैंड, मणिपुर, उत्तर प्रदेश और पश्चिम बंगाल के लोगों में काफी जागरूकता आई है. पिछले 5 वर्षों में देश के 91 फीसदी से अधिक जिलों में 70 प्रतिशत से अधिक बच्चों का जन्म स्वास्थ्य सुविधाओं में हुआ है.
बच्चों के विकास (स्टंटिंग) में आई है मामूली कमी
वहीं देश के 5 साल से कम उम्र के बच्चों में स्टंटिंग (विकास रुकावट होना) के मामलों में कमी आई है, जो 38 फीसदी से घटकर 36 फीसदी हो गए हैं. 2019-21 में शहरी क्षेत्रों (30 प्रतिशत) की तुलना में ग्रामीण क्षेत्रों (37 प्रतिशत) में बच्चों में स्टंटिंग अधिक है. स्टंटिंग में भिन्नता पुडुचेरी में सबसे कम (20 प्रतिशत) और मेघालय में उच्चतम (47 प्रतिशत) है.
हरियाणा, उत्तराखंड, राजस्थान, उत्तर प्रदेश और सिक्किम (प्रत्येक में 7 प्रतिशत अंक), झारखंड, और मध्य प्रदेश और मणिपुर (प्रत्येक में 6 प्रतिशत अंक), और चंडीगढ़ और बिहार (प्रत्येक में 5 प्रतिशत अंक) में स्टंटिंग में उल्लेखनीय कमी देखी गई.
मोटापे की समस्या बढ़ी
एनएफएचएस-4 की तुलना में एनएफएचएस-5 में अधिकतर राज्यों और संघ राज्य क्षेत्रों में अधिक वजन या मोटापे की समस्या बढ़ी है. राष्ट्रीय स्तर पर महिलाओं में 21 प्रतिशत से बढ़कर 24 प्रतिशत और पुरुषों में 19 प्रतिशत से बढ़कर 23 प्रतिशत हो गई है. केरल, अंडमान और निकोबार द्वीप समूह, आंध्र प्रदेश, गोवा, सिक्किम, मणिपुर, दिल्ली, तमिलनाडु, पुडुचेरी, पंजाब, चंडीगढ़ और लक्षद्वीप (34-46 प्रतिशत) में एक तिहाई से अधिक महिलाएं ज्यादा वजन या मोटापे से ग्रस्त हैं.
स्वच्छता के प्रति बढ़ी है जागरूकता
एनएफएचएस-5 में स्वच्छ खाना पकाने के ईंधन (44 प्रतिशत से 59 प्रतिशत) और बेहतर स्वच्छता सुविधाओं (49 प्रतिशत से 70 प्रतिशत) के उपयोग में वृद्धि का भी उल्लेख है, जिसमें साबुन और पानी से हाथ धोने की सुविधा (60 प्रतिशत) शामिल है. बेहतर सुविधाओं का उपयोग करने वाले परिवारों के अनुपात में पर्याप्त वृद्धि हुई है, जिसका श्रेय स्वच्छ भारत मिशन कार्यक्रम को दिया जा सकता है.
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