बचपन में छूटा मां का साथ, फिर पिता ने दिलाया गायकी का मंच, आज ये युवा सिंगर अपने भजनों से मचा रहा धमाल
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सोशल मीडिया स्टार और युवा भजन गायकार अनिल नागौरी का शुरुआती सफर तो मुश्किल और संघर्षों भरा रहा, लेकिन तमाम विपरीत परिस्थितियों के आगे भी अपने सपनों को पूरा करने की ठाने बाल कलाकार ने अपनी सुरीली जादुई फनकार से सफलता की वो इबारत लिखी, जो आज दुनिया के लिए मिशाल है.
नरेश पारीक/ चूरू:- कुछ लोगों के सपने उनकी उम्र से बड़े होते हैं और अपने सपने को पूरा कर लक्ष्य को पाने के लिए ऐसे लोग कड़ी मेहनत करते हैं. ऐसा ही लक्ष्य अपनी जादुई आवाज से कम उम्र में लोगो के दिलों में जगह बनाने वाले सोशल मीडिया स्टार और युवा भजन गायकार अनिल नागौरी का है, जिनका शुरुआती सफर तो मुश्किल और संघर्षों भरा रहा, लेकिन तमाम विपरीत परिस्थितियों के आगे भी अपने सपनों को पूरा करने की ठाने बाल कलाकार ने अपनी सुरीली जादुई फनकार से सफलता की वो इबारत लिखी, जो आज दुनिया के लिए मिशाल है.
अनिल बताते हैं कम उम्र में मां को खोया और फिर पिता ने ना सिर्फ संभाला, बल्कि मां और पिता दोनों का प्यार दिया. भजन गायन के लिए उन्होंने मंच दिया, जिसके बाद वह अनिल से अनिल नागौरी बने. चूरू के भामासी गांव में बाबा रामदेव के जागरण में अपनी जादुई आवाज से श्रोताओं को झूमने पर मजबूर करने वाले अनिल नागौरी ने लोकल 18 से खास बातचीत करते हुए अपने जीवन से जुड़े कई रोचक किस्से और अपना अब तक का सफर साझा किया.
राजस्थानी भाषा को दिया समर्थन
राजस्थानी भाषा को मान्यता दिलाने के लिए लंबे समय से किए जा रहे प्रयासों को लेकर अनिल ने कहा कि वह भी चाहते हैं कि राजस्थानी भाषा को मान्यता मिले और इस मान्यता के लिए लंबे समय से संघर्ष कर रहे लोगो के हर संभव सहयोग के लिए तैयार हैं. आने वाले समय मे उनके चाहने वालों को पुराने भजन नए कलेक्शन और नए अंदाज में सुनने को मिलेगा.
राजस्थानी भाषा को मान्यता दिलाने के लिए लंबे समय से किए जा रहे प्रयासों को लेकर अनिल ने कहा कि वह भी चाहते हैं कि राजस्थानी भाषा को मान्यता मिले और इस मान्यता के लिए लंबे समय से संघर्ष कर रहे लोगो के हर संभव सहयोग के लिए तैयार हैं. आने वाले समय मे उनके चाहने वालों को पुराने भजन नए कलेक्शन और नए अंदाज में सुनने को मिलेगा.
इन भजनो की रहती है डिमांड
अनिल Local 18 को बताते हैं कि ‘क्या लेकर आया बंदा, क्या लेकर जाएगा, लिख दो म्हारे रोम रोम में’ सहित उनके डेढ़ दर्जन ऐसे भजन हैं, जिसकी डिमांड हर कार्यक्रम में रहती है. वह बताते हैं कि पुराने भजन व संस्कृति को आगे बढ़ाने का काम कर रहा हूं. लोगों का प्यार है, जिसकी बदौलत उन्होंने कम समय में ही इतना नाम बना लिया है. उन्होंने नागौर के सथेरण में अपने गांव में बचपन गुजारा. साल 2003 में जन्म के बाद 6 साल की उम्र में मां के निधन के बाद अपने भजन गायक पिता के साथ भजन संध्या में जाता रहा. पहली बार 13 साल की उम्र में उन्होंने एक गाना गाया, जिसको लोगों ने काफी पसंद किया. अनिल नागौरी के सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर 30 लाख से अधिक फॉलोअर्स हैं.
अनिल Local 18 को बताते हैं कि ‘क्या लेकर आया बंदा, क्या लेकर जाएगा, लिख दो म्हारे रोम रोम में’ सहित उनके डेढ़ दर्जन ऐसे भजन हैं, जिसकी डिमांड हर कार्यक्रम में रहती है. वह बताते हैं कि पुराने भजन व संस्कृति को आगे बढ़ाने का काम कर रहा हूं. लोगों का प्यार है, जिसकी बदौलत उन्होंने कम समय में ही इतना नाम बना लिया है. उन्होंने नागौर के सथेरण में अपने गांव में बचपन गुजारा. साल 2003 में जन्म के बाद 6 साल की उम्र में मां के निधन के बाद अपने भजन गायक पिता के साथ भजन संध्या में जाता रहा. पहली बार 13 साल की उम्र में उन्होंने एक गाना गाया, जिसको लोगों ने काफी पसंद किया. अनिल नागौरी के सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर 30 लाख से अधिक फॉलोअर्स हैं.
छोटी उम्र में हुई शुरुआत
अनिल नागौरी बताते हैं कि उनके भजन करने की शुरूआत 6 साल की उम्र में हुई. उन्होंने कहा कि जब पापा के साथ जाता था, तब शुरुआत में मंजीरे बजाता था. 13 साल की उम्र तक पापा के साथ ही भजन गाया करता था. इसी दौरान बालोतरा में एक कार्यक्रम में मैंने ‘लीलो लीलो घोड़ो बाबा रामदेव जी रो’ गाना गाया और महज 4 दिन में ही 40 लाख से अधिक लोगों ने इसको देखा.
अनिल नागौरी बताते हैं कि उनके भजन करने की शुरूआत 6 साल की उम्र में हुई. उन्होंने कहा कि जब पापा के साथ जाता था, तब शुरुआत में मंजीरे बजाता था. 13 साल की उम्र तक पापा के साथ ही भजन गाया करता था. इसी दौरान बालोतरा में एक कार्यक्रम में मैंने ‘लीलो लीलो घोड़ो बाबा रामदेव जी रो’ गाना गाया और महज 4 दिन में ही 40 लाख से अधिक लोगों ने इसको देखा.
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