यहां है राजस्थान की भूतही बावड़ी, जिसके अंदर दूल्हे समेत पूरी बारात हो गई थी गायब
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Agency:News18 Rajasthan
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बावड़ी वास्तव में एक जल प्रबंधन की शानदार प्राचीन परंपरा है. राजस्थान में भी काफी बावड़ी हैं. ऐसी ही एक बावड़ी है जयपुर से लगभग 70 किलोमीटर दूर भांडारेज गांव में.
अंकित राजपूत/जयपुर. पुराने समय में जल प्रबंधन और वास्तुकला के लिए राजा महाराजा बावड़ियों का निर्माण करवाते थे. इन बावड़ियों को भारत के राज्यों में अलग-अलग नाम से जाना जाता है. महाराष्ट्र में बारव, गुजरात में वाव, केरल में कल्याण और राजस्थान में बावड़ी प्रसिद्ध हैं. राजपूताना में सर्वप्रथम बावड़ी निर्माण राव जोधा ने शुरू किया था.
बावड़ी वास्तव में एक जल प्रबंधन की शानदार प्राचीन परंपरा है. राजस्थान में भी काफी बावड़ी हैं. ऐसी ही एक बावड़ी है जयपुर से लगभग 70 किलोमीटर दूर भांडारेज गांव में. यहां एक ऐसी ही अनोखी तिमंजिली बावड़ी जिसके बारे में कहा जाता है कि यह बावड़ी एक दिन और रात में तैयार हुई थी. इस गांव में बावड़ियों को बोरिस के नाम से जाना जाता है.
रोचक है भांडारेज बावड़ी का इतिहास
भांडारेज गांव से प्राप्त शिलालेख से पता चलता है कि इस बावड़ी का निर्माण विक्रम संवत् 1789 (1752 ई.) में कुभाणी शासक दीप सिंह व दौलत सिंह ने करवाया था. इस बावड़ी के बारे में स्थानीय लोग बताते हैं कि एक बार एक बारात भांडारेज गांव में आई और वह बारात इस बावड़ी में रुकी और बारात बावड़ी के अंदर बनी हुई सुरंग में गई तो वह से कभी वापस नहीं लौटी. इसीलिए इस बावड़ी की सुरंग को भूतों की बावड़ी भी कहा जाता है. भांडारेज गांव की इस बावड़ी की सुरंग बड़ी बावड़ी होते हुए आभानेरी गांव की चांद बावड़ी तक जाती है.
बावड़ी की शानदार और खूबसूरत बनावट
गांव में स्थित यह बावड़ी प्राचीन शिल्पकला बेहतरीन नमूना है. यह बावड़ी 5 मंजिल इमारत के जैसी है. जिसकी सीढियां बावड़ी के तल तक जाती है सीढ़ियों को छायादार बनाने के लिए उनके ऊपर छाया के लिए बरामदे बनाए हुए हैं. इस बावड़ी का प्रवेश प्रवेश द्वार भी आकर्षक और भव्य बनाया गया है.
इस बावड़ी में पानी के तल तक पहुंचने के लिए सीढ़ियां बनी हुई है. जो मुख्य प्रवेश से होते हुए नीचे तक जाती हैं. इस बावड़ी के चार नारों पर छतरिया बनी हुई हैं. यह बावड़ी कलात्मक आयताकार अलंकरण युक्त गुम्बदार अष्टकोमायुक्त साम्यी, कलात्मक छतरियों, आराईश की दीवारों, आवक कलशों, कंगूरों तथा घुमावदार छज्जों से बनी हुई है. इस बावड़ी के चारों ओर पूजा करने तथा वस्त्र बदलने के कक्ष तथा पीछे की ओर एक गोलाकार कुंआ बना हुआ है.
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