Ajab Gajab : ये है एशिया का सबसे बड़ा हॉल, इसमें नहीं कोई खंभा, एक साथ बैठ सकते हैं 25 हजार लोग
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OMG : एशिया महाद्वीप का सबसे बड़ा हॉल जिसे बनाने में खंभे की मदद नहीं ली गयी. इसकी बनावट ऐसी है कि इसे बिना किसी पिलर के बनाया गया और ये पिछले 28 साल से इसी मजबूती के साथ टिका हुआ है. इस हॉल में देश की राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, सहित कई पूर्व राष्ट्रपति कई राज्यों के मुख्यमंत्री और हस्तियां आ चुकी हैं. बड़े कार्यक्रमों के दौरान 250 कर्मचारी इस हॉल की व्यवस्था संभालते हैं.
सिरोही : मकान हो या दुकान या अन्य कोई भवन. उसकी मजबूती उसके खंभों और दीवारों पर निर्भर रहती है. लेकिन अगर खंभे ही न हों तो फिर क्या हो. वो भी कोई छोटा मोटा कमरा नहीं. बल्कि एशिया का सबसे बड़ा हॉल, जिसमें एक साथ 25 हजार लोग बैठ सकते हैं. ऐसा हॉल है वो भी बिना खंभे का.
ये सिर्फ भारत ही नहीं बल्कि एशिया महाद्वीप का सबसे बड़ा हॉल है. जिसे खड़ा करने में किसी खंभे की मदद नहीं ली गयी है. इसकी बनावट ऐसी है कि इसे बिना किसी पिलर के बनाया गया और ये पिछले 28 साल से इसी मजबूती के साथ टिका हुआ है. इस हॉल में देश की राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, सहित कई पूर्व राष्ट्रपति कई राज्यों के मुख्यमंत्री और हस्तियां आ चुकी हैं. हम बात कर रहे हैं सिरोही जिले के माउंट आबू में स्थित ब्रह्माकुमारी संस्थान के अंतर्राष्ट्रीय मुख्यालय शांतिवन में बने डायमंड हॉल की.
1996 में बना हॉल
वर्ष-1996 में ब्रह्माकुमारी ईश्वरीय विश्वविद्यालय के मुख्यालय शांतिवन में संस्थान प्रमुख दादी प्रकाशमणि के समय ये हॉल बनवाया गया. इसे बनने में सिर्फ 9 महीने लगे. हॉल के निर्माण कार्य में मुख्य मैकेनिकल इंजीनियर रमेश कुंवर सहित अन्य इंजीनियरों की देखरेख में काम पूरा किया गया था. उस वक्त इसमें 3 करोड़ से अधिक का खर्च आया था.
वर्ष-1996 में ब्रह्माकुमारी ईश्वरीय विश्वविद्यालय के मुख्यालय शांतिवन में संस्थान प्रमुख दादी प्रकाशमणि के समय ये हॉल बनवाया गया. इसे बनने में सिर्फ 9 महीने लगे. हॉल के निर्माण कार्य में मुख्य मैकेनिकल इंजीनियर रमेश कुंवर सहित अन्य इंजीनियरों की देखरेख में काम पूरा किया गया था. उस वक्त इसमें 3 करोड़ से अधिक का खर्च आया था.
16 भाषाओं में ट्रांसलेशन
इस हॉल की लम्बाई 450 फीट और चौड़ाई 213 फीट है. कारपेट एरिया 1 लाख वर्गफीट है. इसमें 25 हजार लोग एक साथ बैठ सकते हैं. हॉल में आने वाले लोगों के प्रवेश और निकासी के लिए 46 गेट और 84 खिड़कियां हैं. 3 हजार वर्ग फीट का स्टेज और 8,988 वर्ग फीट का हॉल है. यहां होने वाले कार्यक्रमों का विभिन्न भाषाओं में ट्रांसलेशन के लिए दोनों तरफ दो ट्रांसलेशन रूम बने हुए हैं. इनमें 16 भाषाओं में ट्रांसलेशन हो सकता है. लोगों के देखने के लिए दो बड़ी एलईडी भी लगी हुई है. एयर वेंटिलेशन के अलावा दस विशाल पंखे लगे हैं. इस हॉल का नाम लिम्का बुक ऑफ रिकार्ड में राष्ट्रीय श्रेणी में देश के सबसे बड़े हॉल के रूप में दर्ज किया गया था.
इस हॉल की लम्बाई 450 फीट और चौड़ाई 213 फीट है. कारपेट एरिया 1 लाख वर्गफीट है. इसमें 25 हजार लोग एक साथ बैठ सकते हैं. हॉल में आने वाले लोगों के प्रवेश और निकासी के लिए 46 गेट और 84 खिड़कियां हैं. 3 हजार वर्ग फीट का स्टेज और 8,988 वर्ग फीट का हॉल है. यहां होने वाले कार्यक्रमों का विभिन्न भाषाओं में ट्रांसलेशन के लिए दोनों तरफ दो ट्रांसलेशन रूम बने हुए हैं. इनमें 16 भाषाओं में ट्रांसलेशन हो सकता है. लोगों के देखने के लिए दो बड़ी एलईडी भी लगी हुई है. एयर वेंटिलेशन के अलावा दस विशाल पंखे लगे हैं. इस हॉल का नाम लिम्का बुक ऑफ रिकार्ड में राष्ट्रीय श्रेणी में देश के सबसे बड़े हॉल के रूप में दर्ज किया गया था.
हॉल मेंटेनेंस के लिए 250 लोग
डायमंड हॉल की चौबीस साल से देखरेख कर रहे प्रभारी बीके वल्लभ भाई ने बताया संस्थान की डायमंड जुबली वर्ष मनाया जा रहा था. उस दौरान इस हॉल के बारे में विचार आया. इसलिए इसका नाम भी डायमंड हॉल रखा गया. इसकी देखरेख में उनके अलावा दो अन्य प्रभारी हैं. साफ-सफाई के लिए 10 नियमित कर्मचारी और संस्थान के सदस्यों की भी सेवाएं ली जाती हैं. बड़े कार्यक्रम में 200-250 लोग हॉल में काम करते हैं.
डायमंड हॉल की चौबीस साल से देखरेख कर रहे प्रभारी बीके वल्लभ भाई ने बताया संस्थान की डायमंड जुबली वर्ष मनाया जा रहा था. उस दौरान इस हॉल के बारे में विचार आया. इसलिए इसका नाम भी डायमंड हॉल रखा गया. इसकी देखरेख में उनके अलावा दो अन्य प्रभारी हैं. साफ-सफाई के लिए 10 नियमित कर्मचारी और संस्थान के सदस्यों की भी सेवाएं ली जाती हैं. बड़े कार्यक्रम में 200-250 लोग हॉल में काम करते हैं.
ऐसे आया आइडिया
इस हॉल को तैयार करने में अहम भूमिका निभाने वाले मैकेनिकल इंजीनियर रमेश कुंवर ने बताया बिना पिलर इतना बड़ा हॉल बनाने के लिए एक विशेष मैकेनिकल डिजाइन होता है. उसी आधार पर इसे तैयार किया गया है. इसका आइडिया उन्हें भटिंडा से मिला. उसके बाद उनकी देखरेख में छत का पूरा कार्य बिना पिलर के किया गया. मैकेनिकल कार्य में 50-60 लोग रोज काम करते थे. इसके अलावा निर्माण संबंधित काम मजदूर अलग से करते थे.
इस हॉल को तैयार करने में अहम भूमिका निभाने वाले मैकेनिकल इंजीनियर रमेश कुंवर ने बताया बिना पिलर इतना बड़ा हॉल बनाने के लिए एक विशेष मैकेनिकल डिजाइन होता है. उसी आधार पर इसे तैयार किया गया है. इसका आइडिया उन्हें भटिंडा से मिला. उसके बाद उनकी देखरेख में छत का पूरा कार्य बिना पिलर के किया गया. मैकेनिकल कार्य में 50-60 लोग रोज काम करते थे. इसके अलावा निर्माण संबंधित काम मजदूर अलग से करते थे.
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