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Urs-E-Razvi 2023: आला हजरत ने जारी किए थे 7500 से ज्यादा फतवें, लिखी हैं 1100 से अधिक किताबें

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यूपी के बरेली में भारत देश के सबसे बड़े उर्स को दरगाह आला हजरत पर मनाया जा रहा है, जिसें उर्स-ए-आला हजरत को उर्स-ए-रजवी भी कहा जाता है.

आला हजरत ने जारी किए थे 7500 से ज्यादा फतवें,  लिखी हैं 1100 से अधिक किताबेंदरगाह आला हजरत
अंश कुमार माथुर/बरेली. यूपी के बरेली में रविवार से तीन दिवसीय उर्स-ए-आला हजरत शुरू हो चुका है. भारत देश के सबसे बड़े इस उर्स को उर्स-ए-रजवी भी कहा जाता है. आला हजरत के 105वें उर्स में देशभर के मौलाना, उलेमा और जायरीनों समेत 16 देशों के जायरीन शामिल हुए.

बरेली के बिहारीपुर स्थित सौदागरान में दरगाह आला हजरत और ताजुश्शरिया दरगाह पर उर्स में आए जायरीन दुआ मांगने पहुंच रहे हैं. उर्स स्थल इस्लामिया मैदान में परचम कुशाई के जुलूस से इस उर्स का आगाज होने के बाद तमाम रश्में अदा की जा रही है. आपको बता दें आला हजरत ने 7500 से ज्यादा फतवे और 1100 से ज्यादा किताबें लिखी हैं. उन्होंने विभिन्न विषयों पर जारी किए फतवों पर फ़रमाया है कि इस्लाम से जुड़े किसी भी मसलें पर कुरान और हदीस की रोशनी में जो हुक्म जारी किया जाए, वही फतवा है.
105वां उर्स-ए-रिजवी 

आला हजरत ट्रस्ट के प्रेसीडेंट मोहतशीम रजा खान काशाना- ए- नूरी बताते है कि आला हजरत का जन्म 14 जून 1856 में हुआ था. अपने जीवन में उन्होंने हज की यात्रा समेत कई देशों की भी यात्रा की और 28 अक्टूबर 1921 को उनका वीसाल (मृत्यु) हो गया. अंग्रेजी कैलेंडर के हिसाब से देखा जाए तो उनका वीसाल को 102 साल पूरे हो  गए हैं, लेकिन उनकी याद में इस बार यह 105वां उर्स मनाया जा रहा है. जिसके बारे में कहा गया है कि इस्लाम धर्म में चांद के हिसाब से हर 36 साल में एक साल बढ़ती है, इसलिए इस बार 105वां उर्स-ए-रिजवी मनाया जा रहा है.
जमात रज़ा-ऐ-मुस्तफा की थी शुरुआत

दरगाह आला हजरत से जुड़े संगठन जमात रजा ए मुस्तफा के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष सलमान मियां ने बताया कि आला हजरत इमाम अहमद रज़ा अलेहिर्रहमा ने जमात रज़ा-ए-मुस्तफा को 1920 में क़ायम किया था. यह वो वक्त था कि जब मुल्क-ए-हिन्दुस्तान पर अंग्रेजों की हुकूमत थी और उस वक्त बरेली के ताजदार ने हिन्दुस्तान के कोने- कोने से उलेमाए अहले सुन्नत को एक प्लेटफार्म पर इकट्ठा किया. जिसके बाद दीनो सुन्नियत और मसलकों मजहब के साथ ही मुसलमानों के दीनी व दुनियावी मसाइल को हल करने के लिए एक तहरीक की बुनियाद रखी. जिसका नाम जमात रज़ा-ऐ-मुस्तफा रखा. जिसके बाद से उनके बताए रास्ते पर आज भी दुनिया भर के मुस्लिम आगे बढ़ रहे हैं. उनका शिक्षा, धर्म, मानवता प्रति योगदान हमेशा से रहा साथ ही उन्होंने जो किताबें लिखीं, वह आज भी देश और दुनिया में उनके मुरीदों के द्वारा पढ़ी जा रही हैं.
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