Noida News:- मिलिए समीरा और काजल से जिन्होंने मुफलिसी की दीवार तोड़कर जेसीबी चलाना सीखा और आज अपने घर का खयाल रख रही है
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आज के दौर में स्त्रियों ने अपनी शक्ति को पहचाना है और लड़कों के साथ कंधे से कंधा मिलाकर चल ही नहीं रही है उन्हें कड़ी टक्कर भी दे रही है. इसका उदाहरण ग्रेटर नोएडा के दो युवतियों काजल और समीरा ने पेश किया है.रूढ़िवादी सोंच को तोड़कर इन दोनों युवतियों ने जेसीबी चलाना सीखा साथ ही इस काम से पैसा कमा कर अपने परिजनों की मदद भी कर रही है.
नोएडा:आज के दौर में स्त्रियों ने अपनी शक्ति को पहचाना है और लड़कों के साथ कंधे से कंधा मिलाकर चल ही नहीं रही है उन्हें कड़ी टक्कर भी दे रही है. इसका उदाहरण ग्रेटर नोएडा के दो युवतियों काजल और समीरा ने पेश किया है.किसी जमाने में जेसीबी मशीन चलाने का काम लड़को का माना जाता था, लेकिन उस रूढ़िवादी सोंच को तोड़कर इन दोनों युवतियों ने जेसीबी चलाना सीखा साथ ही इस काम से पैसा कमा कर अपने परिजनों की मदद भी कर रही है.
मुश्लिम परिवार में इस दायरे को तोड़ना काफी कठिन था
समीरा मुश्लिम परिवार से आती है वो 12वी तक पढ़ी लेकिन परिजनों के आर्थिक स्थिति को देखते हुए उसे पढ़ाई बीच में ही छोड़नी पड़ी.समीरा बताती है कि जब मुझे पहली बार पता चला कि जेसीबी चलाने की ट्रेनिंग दे रहे हैं तो मुझे लगा मेरा सपना पूरा हो सकता है. मैंने अपने घर में इस बारे में बात की लेकिन परिवार के लोग नहीं मान रहे थे,पापा ने तो साफ मना कर दिया था लेकिन मैं भी जिद्दी थी,जिद करके मैंने जेसीबी ट्रेनिंग के फॉर्म डाले और आज मैं उसी परिवार को हर महीने पैसे भेजती हूं,जिसने मेरे पैर काटने की कोशिश की थी.वो बताती है कि मुश्लिम परिवार में लड़कियों के लिए ऐसे लीक कर हटकर काम करना बेहद मुश्किल होता है लेकिन कहते हैं न जहां चाह होती है वही राह होती है.
समीरा मुश्लिम परिवार से आती है वो 12वी तक पढ़ी लेकिन परिजनों के आर्थिक स्थिति को देखते हुए उसे पढ़ाई बीच में ही छोड़नी पड़ी.समीरा बताती है कि जब मुझे पहली बार पता चला कि जेसीबी चलाने की ट्रेनिंग दे रहे हैं तो मुझे लगा मेरा सपना पूरा हो सकता है. मैंने अपने घर में इस बारे में बात की लेकिन परिवार के लोग नहीं मान रहे थे,पापा ने तो साफ मना कर दिया था लेकिन मैं भी जिद्दी थी,जिद करके मैंने जेसीबी ट्रेनिंग के फॉर्म डाले और आज मैं उसी परिवार को हर महीने पैसे भेजती हूं,जिसने मेरे पैर काटने की कोशिश की थी.वो बताती है कि मुश्लिम परिवार में लड़कियों के लिए ऐसे लीक कर हटकर काम करना बेहद मुश्किल होता है लेकिन कहते हैं न जहां चाह होती है वही राह होती है.
शादी उसी से करूंगी जो काम करने दे
मूलतः बुलंदशहर की रहने वाली काजल जो कि अभी ग्रेटर नोएडा में रहती है वो कहती है कि पापा कहते थे कि ये काम लड़को का है लड़कियों के लिए ठीक नहीं होता घर छोड़कर जाना पड़ता है,लेकिन मेरी मां ने खूब मदद की और आज मैं हर महीने घर पर पैसे भेजती हूं तो मुझे भी अच्छा लगता है.शादी के बाद भी मैं ये काम नहीं छोड़ने वाली, मैं तो शादी भी उसी लड़के से ही करूंगी जो मुझे नौकरी करने दे,जेसीबी मशीन चलाने दे.
मूलतः बुलंदशहर की रहने वाली काजल जो कि अभी ग्रेटर नोएडा में रहती है वो कहती है कि पापा कहते थे कि ये काम लड़को का है लड़कियों के लिए ठीक नहीं होता घर छोड़कर जाना पड़ता है,लेकिन मेरी मां ने खूब मदद की और आज मैं हर महीने घर पर पैसे भेजती हूं तो मुझे भी अच्छा लगता है.शादी के बाद भी मैं ये काम नहीं छोड़ने वाली, मैं तो शादी भी उसी लड़के से ही करूंगी जो मुझे नौकरी करने दे,जेसीबी मशीन चलाने दे.
कई बार लोग लड़ने को उतारू हो जाते थे
डॉ राहुल वर्मा महिला उन्नति संस्था नाम से एनजीओ चलाते हैं जो देश में महिलाओं को सशक्त बनाने के लिए काम करती है, वो बताते हैं कि जब हमने यह योजना बनाई कि देश की बेटियों को जेसीबी मशीन चलाने की ट्रेनिंग दी जानी चाहिए तो हमने ऐसे बेटियों को खोजा जो आर्थिक रूप से कमजोर हो.
अनिल भाटी कहते हैं कि हमने 40 से ऊपर लड़कियों को ट्रेनिंग दी थी लेकिन सब बीच में ही छोड़कर चली गई.लेकिन 20 बच्चियों को मन लगा और वो आज जेसीबी के देश भर के प्लांट में काम कर रही है और अच्छा कमा रही हैं.
डॉ राहुल वर्मा महिला उन्नति संस्था नाम से एनजीओ चलाते हैं जो देश में महिलाओं को सशक्त बनाने के लिए काम करती है, वो बताते हैं कि जब हमने यह योजना बनाई कि देश की बेटियों को जेसीबी मशीन चलाने की ट्रेनिंग दी जानी चाहिए तो हमने ऐसे बेटियों को खोजा जो आर्थिक रूप से कमजोर हो.
अनिल भाटी कहते हैं कि हमने 40 से ऊपर लड़कियों को ट्रेनिंग दी थी लेकिन सब बीच में ही छोड़कर चली गई.लेकिन 20 बच्चियों को मन लगा और वो आज जेसीबी के देश भर के प्लांट में काम कर रही है और अच्छा कमा रही हैं.
(रिपोर्ट-आदित्य कुमार)
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