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प्रकृति की गोद में विराजे हैं मोटेश्वर महादेव

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रामनगर से करीब तीस किलोमीटर दूर मोटेश्वर महादेव का एक प्राचीन अलौकिक मंदिर है. यहां पाषाण की मूर्तियां हैं.यहां मंदिर में बजने वाली घंटियों के साथ ही वन्यजीवों की आवाजें भक्त को प्रकृति से जोड़ती हैं.

प्रकृति की गोद में विराजे हैं मोटेश्वर महादेव
सावन से महीने में हर ओर हर-हर महादेव की गूंज है. रामनगर से करीब तीस किलोमीटर दूर मोटेश्वर महादेव का एक प्राचीन अलौकिक मंदिर है. यहां पाषाण की मूर्तियां हैं.यहां मंदिर में बजने वाली घंटियों के साथ ही वन्यजीवों की आवाजें भक्त को प्रकृति से जोड़ती हैं.

प्राचीन मान्यताओं के अनुसार बियावन जंगल में स्थित इस मंदिर में कभी स्वयं महादेव आए थे. कहते ये भी हैं कि द्वापर युग के अंतिम चरण में यहां महादेव ने तपस्या की थी. तब से ही यहां यह मंदिर स्थापित है. इस मंदिर की स्थापना रामचन्द्र जी के जन्म से भी पहले हुई थी. पुराने लोग बताते हैं कि यहां का शिवलिंग और कई पाषाण मूर्तियां तब से ही यहां स्थापित  हैं.

घने जंगल के बीच स्थित इस मंदिर की जानकारी आस-पास के ग्रामीणों को ही है. सीतावनी से चहल नदी के किनारे-किनारे जंगल के रास्ते जाने के बाद  मोटेश्वर महादेव मंदिर के दर्शन होते हैं. कहते हैं  माता सीता ने यहां महादेव की तपस्या की थी.

घने वनों के बीच स्थित मोटेश्वर महाददेव के दर्शन और प्रकृति  मन को सुकून देते हैं. मंदिर के रास्ते में दोनों ओर फैले जंगल में वन्य जीवों को भी देखा जा सकता है. माहौल में गूंजती वन्यजीवों की आवाज़ें भी भक्तों के मन को रोमांच से भर देती हैं. लेकिन प्रकृति की गोद में स्थित इस मंदिर को संरक्षण की दरकार है.

 
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