इन रंगों से मनती है सेफ होली, झट से उतरते हैं स्किन से, नहीं पहुंचाते नुकसान! 57 साल से बना रहा ये शख्स
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Dehradun: 85 साल के ये शख्स पिछले 57 सालों से हर होली पर हर्बल रंग तैयार करते और बेचते हैं. ये यूपी में रहते हैं पर होली के समय देहरादून आ जाते हैं और लोग किलो की मात्रा में इनसे रंग खरीदकर फुटकर बेचते हैं.
देहरादून. होली का त्योहार खुशियों का त्योहार होता है, जिसमें हम अपनों को प्रेम का रंग लगाकर सेलिब्रेट करते हैं. यह रंग स्किन और सेहत के लिए नुकसानदायक न हो, इसके लिए आपको केमिकल फ्री रंगों का इस्तेमाल करना चाहिए. उत्तर प्रदेश के प्रतापगढ़ के रहने वाले बैजनाथ जायसवाल पिछले 35 सालों से हर साल होली से पहले उत्तराखंड की राजधानी देहरादून आते हैं और यहां वे अपने परिवार के साथ मिलकर ऑर्गेनिक रंग बनाते हैं.
57 सालों से बना रहे हैं हर्बल रंग
देहरादून के दर्शनी गेट के नजदीक अपनी टीम के साथ रंग तैयार करने वाले बैजनाथ जायसवाल ने लोकल 18 को जानकारी देते हुए कहा है कि वे लगभग 57 सालों से हर्बल रंगों का काम कर रहे हैं. ये रंग दिखने में तो बेहद खूबसूरत होते ही हैं, इसके साथ ही ये स्किन के लिए भी ठीक होते हैं. ये रंग अरारोट और फूड कलर्स से लगभग 4-6 घंटे में तैयार होते हैं, जिसमें बहुत मेहनत लगती है.
देहरादून के दर्शनी गेट के नजदीक अपनी टीम के साथ रंग तैयार करने वाले बैजनाथ जायसवाल ने लोकल 18 को जानकारी देते हुए कहा है कि वे लगभग 57 सालों से हर्बल रंगों का काम कर रहे हैं. ये रंग दिखने में तो बेहद खूबसूरत होते ही हैं, इसके साथ ही ये स्किन के लिए भी ठीक होते हैं. ये रंग अरारोट और फूड कलर्स से लगभग 4-6 घंटे में तैयार होते हैं, जिसमें बहुत मेहनत लगती है.
परिवार भी करता है यही काम
उन्होंने बताया कि रोजी-रोटी कमाने के लिए उन्होंने उत्तर प्रदेश के प्रतापगढ़ जिले में ही रंग बनाने का काम शुरू किया था. वे हर साल होली पर ऑर्गेनिक कलर बनाते थे और बेचते थे. इस तरह उन्हें इस काम से जुड़े हुए 57 साल हो गए हैं और उनका परिवार भी इस काम में लगा हुआ है. बैजनाथ बताते हैं कि वह लाल, पीला, हरा, नीला समेत 11 रंग तैयार कर देते हैं. 85 साल की उम्र में वह अकेले इस काम को नहीं कर सकते हैं, इसलिए वह दूसरों की मदद से यह काम करते हैं.
उन्होंने बताया कि रोजी-रोटी कमाने के लिए उन्होंने उत्तर प्रदेश के प्रतापगढ़ जिले में ही रंग बनाने का काम शुरू किया था. वे हर साल होली पर ऑर्गेनिक कलर बनाते थे और बेचते थे. इस तरह उन्हें इस काम से जुड़े हुए 57 साल हो गए हैं और उनका परिवार भी इस काम में लगा हुआ है. बैजनाथ बताते हैं कि वह लाल, पीला, हरा, नीला समेत 11 रंग तैयार कर देते हैं. 85 साल की उम्र में वह अकेले इस काम को नहीं कर सकते हैं, इसलिए वह दूसरों की मदद से यह काम करते हैं.
ऐसे तैयार होता है रंग
उन्होंने कहा कि यहां से काफी लोग थोक में रंग खरीदकर ले जाते हैं. बैजनाथ के बेटे पवन ने बताया कि वे 10 साल की उम्र से इस काम को कर रहे हैं. वे भी पिता के साथ हर साल देहरादून आते हैं. मक्के के अरारोट को पहले पैरों से घंटों मसला जाता है, इसके बाद इसे कपड़े से छाना जाता है. इसमें सब्जियों के रंग या फूड कलर्स मिलाए जाते हैं. उन रंगों को इनमें मिलाते हुए ऑर्गेनिक रंग को तैयार किया जाता है. ये हैंडमेड कलर्स होते हैं, जिनमें सारी प्रक्रिया मशीन से नहीं, बल्कि हाथ से ही होती है. ये रंग स्किन से आसानी से उतर जाते हैं.
उन्होंने कहा कि यहां से काफी लोग थोक में रंग खरीदकर ले जाते हैं. बैजनाथ के बेटे पवन ने बताया कि वे 10 साल की उम्र से इस काम को कर रहे हैं. वे भी पिता के साथ हर साल देहरादून आते हैं. मक्के के अरारोट को पहले पैरों से घंटों मसला जाता है, इसके बाद इसे कपड़े से छाना जाता है. इसमें सब्जियों के रंग या फूड कलर्स मिलाए जाते हैं. उन रंगों को इनमें मिलाते हुए ऑर्गेनिक रंग को तैयार किया जाता है. ये हैंडमेड कलर्स होते हैं, जिनमें सारी प्रक्रिया मशीन से नहीं, बल्कि हाथ से ही होती है. ये रंग स्किन से आसानी से उतर जाते हैं.
अगर आप भी अरारोट से बने ऑर्गेनिक रंगों की खरीदारी करना चाहते हैं, तो आप राजधानी देहरादून के सहारनपुर चौक से होते हुए झंडा मोहल्ला दर्शनी गेट पहुंच जाइए, जहां आपको ये प्राकृतिक रंग 120 रुपये प्रति किलो के हिसाब से मिल जाएंगे.
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