देहरादून. नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे ने अपनी 2019-21 की रिपोर्ट जारी कर दी है और इसके मुताबिक स्वास्थ्य से लेकर शिक्षा से जुड़े कई मामलों में उत्तराखंड की स्थिति काफी पिछड़ी हुई है. कई मोर्चों पर सुधार की ज़रूरत इस सर्वे से साफ दिखती है. नशे की लत को लेकर आंकड़े हों या तम्बाकू सेवन के, उत्तराखंड में 15 साल से ऊपर के 30 से 40 प्रतिशत तक युवा शिकार हैं. कुछ और गंभीर मामलों में भी राज्य का ग्राफ काफी नीचे पायदान पर है.
पिछले सर्वे और इस पांचवे सर्वे के दरमियान घरेलू हिंसा के मामलों के आंकड़े देखे गए. छत्तीसगढ़ में काफी कमी आई जबकि पंजाब और हरियाणा में लैंगिक हिंसा के मामलों में कमी दिखी. झारखंड और राजस्थान में इसके उलट हाल रहा. गर्भधारण के दौरान हिंसा के मामले राजस्थान में पिछले सर्वे में 2.8 से 3.1% हो गए. उत्तराखंड में इस मोर्चे पर भी चौंकाने वाले फैक्ट्स सामने आए. गर्भधारण के समय और दांपत्य हिंसा दोनों के ही मामलों में उछाल दर्ज किया गया.
ये है उत्तराखंड का रिपोर्ट कार्ड
— 78.7% जगहों पर मूल सैनिटाइज़ेशन फैसिलिटी, 93.8% जगहों पर शौचालय
— 15 साल से 49 साल की उम्र के 32.5% लोग ही नियमित तौर पर टीवी या अख़बार पढ़ते हैं
— स्कूल में हाजिरी के मामले में उत्तरी राज्यों में उत्तराखण्ड सबसे पिछड़ा है
— 89.6% बच्चे ही स्कूल में हाजिर होते हैं
— 40.7% लोग अपने बच्चों को प्री-स्कूल भेजते हैं
— 91.9% लोग अपने 5 साल से कम उम्र के बच्चों का जन्म रजिस्ट्रेशन करवाते हैं
— 73.6% लोग मृत्यु प्रमाण पत्र बनवाते हैं
— 17.8% लोग शारीरिक, मानसिक और सामाजिक प्रताड़ना के शिकार
इन फैक्ट्स से साफ है कि उत्तराखंड में स्वास्थ्य से लेकर शिक्षा के स्तर में गुणवत्ता लाने की ज़रूरत महसूस की जा रही है. पिछले 2 साल में कोविड-19 चलते लोगों को काफी दिक्कतों का सामना करना पड़ा. प्रदेश के कई ज़िलों में स्कूलों में पानी से लेकर स्वास्थ्य की बेहतर सुविधाओं की मांग बनी हुई है. ऐसे में चौंकाने वाली बात यह भी है कि ज्यादातर बच्चे अब भी सही तरीके से स्वास्थ्य लाभ से वंचित हैं.
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Tags: National Family Health Survey, Uttarakhand news