महंगे-महंगे कीटनाशक भी फेल! फसलों की सुरक्षा के लिए किसान इन चीजों का करें छिड़काव, घर भी कर सकते हैं तैयार
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Agency:Local18
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कृषि के क्षेत्र में हर किसान की यही कोशिश रहती है, कि खेती के दौरान जो मेहनत करते हैं, उससे फसल अच्छी कैसे हो और अलग-अलग तरह के कीटों से फसल कैसे बचाया जा सके. इसको लेकर बात करें तो पाली जिले के किसान अपने खेतों या फिर आस-पास के घरों में मिलने वाली सामग्री से एक तरह से ब्रह्मास्त्र और अग्निस्त्र तैयार कर रहे हैं, जिनका उपयोग वह अपनी फसलो में कीटरक्षक से लेकर उर्वरक के रूप में करने लगे हैं. (रिपोर्टः हेमन्त/ पाली)

कृषि विज्ञान केन्द्र की ओर से भी ब्रह्मास्त्र, अग्निस्त्र, नीमास्त्र के साथ बीजामृत, जीवामृत आदि बनाने की तकनीक सिखाई जा रही है. जिससे रसायनिक उर्वरकों व कीटनाशकों का उपयोग नहीं करना पड़े और फसल भी बेहतर उत्पादन दें.

ब्रह्मास्त्र और अग्निस्त्र का उपयोग अब किसान अपने खेतों में करने लगे है. इनके प्रभाव से स्वास्थ्य ठीक रहने के साथ फसल भी बेहतर होती है. ये अस्त्र किसी बाजार में नहीं मिलते बल्कि किसान अपने खेतों या उनके आस-पास व घरों में मिलने वाली सामग्री से तैयार करते हैं. इसके बाद इसका उपयोग कीटरक्षक व उर्वरक के रूप में करने लगे है.
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बीजामृत, से बीज का उपचार किया जाता है. इसे गोमूत्र, गोबर, पानी, जीवाणु युक्त मिट्टी व चूने से तैयार करते हैं. इन सभी चीजों के घोल से तैयार मिश्रण का बीजों पर छिड़काव किया जाता है. इस तरह तैयार बीज से बेहतर उत्पादन होता है.

अग्निस्त्र का उपयोग तना कीट, सूंडी, इल्ली, फली में रहने वाली सूंडी इल्ली पर नियंत्रण पाने के लिए किया जाता है. इसे नीम के पत्ते, गोमूत्र, हल्दी, तम्बाकू, लहसून, हरी मिर्च से तैयार किया जाता है. इसे बनाकर तीन माह तक रखा जा सकता है.

नीमास्त्र का उपयोग रस चूसने वाले कीटों व छोटी सूंडी इल्ली आदि पर नियंत्रण के लिए किया जा सकता है. इसमें कूटे हुए नीम के पत्ते, गोबर का घोल, गोमूत्र को एक ड्रम में डालकर तैयार करते है. इसका उपयोग 6 माह तक किया जा सकता है.
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पाली के कृषि विज्ञान केन्द्र के वैज्ञानिक अरविंद सिंह तैतरवाल ने Local18 को बताया कि ब्रह्मास्त्र व अग्निस्त्र सहित अन्य सामग्री का उपयोग प्राकृतिक खेती में आता है. इसमें गोमूत्र, गाय का गोबर, नीम के पत्ते आदि का उपयोग कर तैयार किए जाते है. इसमें ऐसे वनस्पति का उपयोग करते हैं, जिनको पशु या मवेशी नहीं खाते है. इनका उपयोग करने से फसल की लागत भी कम आती है और उत्पादन बेहतर होता है. इसकी दुर्गंध से कीट भाग जाता है. साथ ही पौधों की बात करे तो उनको पोषण भी मिलता है.