ये बिस्किट, साबुन और क्रीम, आजादी से पहले स्वदेशी आंदोलन में बने थे मशहूर ब्रांड, 100 साल पुराना इनका इतिहास
Written by:
Last Updated:
भारत में आजादी की लड़ाई के दौरान स्वदेशी आंदोलन छिड़ा था. इस समय में कई भारतीय व्यापारियों ने स्वदेशी उत्पादों को बढ़ावा देने के लिए नए प्रॉडक्ट तैयार किए, जो आज भी बाजार में उपलब्ध हैं. इनमें क्रीम, साबुन, शर्बत से लेकर बिस्किट शामिल हैं. जानिए कब और कैसे तैयार हुए ये मेड इन इंडिया प्रॉडक्ट

भारत को अंग्रेजों से आजादी दिलाने के लिए कई आंदोलन हुए और कई लोगों ने बलिदान दिया. इन आंदोलनों में स्वदेशी आंदोलन भी अहम रहा, जिसमें अंग्रेजी उत्पादों का बहिष्कार कर स्वदेशी सामानों के इस्तेमाल को बढ़ावा दिया गया. (Image: File Photo/News18)

आजादी की 76वीं वर्षगांठ के मौके पर हम आपको ऐसी कंज्यूमर प्रॉडक्ट्स के बारे में बताने जा रहे हैं, जिनका निर्माण अंग्रेजी सामानों को टक्कर देने के लिए किया गया. खास बात है कि आज भी ये प्रॉडक्ट हमारे बीच मौजूद हैं और बेहद लोकप्रिय है.
Advertisement

इन उत्पादों में से एक बोरोलीन (या हाथीवाला क्रीम, कई ग्रामीण इलाकों में इसके पैकेट पर हाथी लोगो के लिए जाना जाता है) है. हरे रंग के पैकेट में आने वाले यह लोकप्रिय क्रीम, जिसे आजादी से पहले भारत में ब्रिटिश उत्पादों का मुकाबला करने के लिए एक स्वदेशी व्यवसायी द्वारा लॉन्च किया गया था. amazon

1929 में देशवासियों के लिए बनाई गई स्वदेसी क्रीम बोरोलीन की लोकप्रियता आज 94 वर्ष बाद भी बरकरार है. कभी भारत में विदेशी सामानों का आयात करने वाले गौर मोहन दत्ता ने स्वदेशी आंदोलन में शामिल होने का फैसला किया और बोरोलीन का निर्माण किया. 15 अगस्त 1947 में भारत को आजादी मिलने की खुशी में 1 लाख बोरोलीन क्रीम मुफ्त में बांटी गई. (Image- Boroline)

इसी कड़ी में अगला नाम आता है 'रूह अफ़ज़ा' का, जो गर्मी से राहत पाने के लिए एक जड़ी बूटियों के शर्बत के तौर पर शुरू हुआ था. अफ़ज़ा की शुरुआत 1907 में हकीम हाफ़िज़ अब्दुल मजीद द्वारा की गई थी और इसे पुरानी दिल्ली से लॉन्च किया गया था. आज भी रूह अफजा घर-घर में मिलता है.
Advertisement

आजादी से पहले तैयार हुआ एक और प्रतिष्ठित ब्रांड मैसूर सैंडल शॉप है. अंडे के आकार का दिखने वाला और हरे व लाल रंग के बॉक्स आने वाला यह साबुन 1916 से अस्तित्व में है. मैसूर के राजा कृष्ण राजा वाडियार चतुर्थ ने बेंगलुरु में इस सरकारी साबुन फैक्ट्री की स्थापना की थी.

अंत में बात करते हैं एक और प्रतिष्ठित और लोगों के पसंदीदा ब्रांड 'पारले-जी' की. पीले पैकेट में छोटी-सी लड़की की तस्वीर वाली पैकेजिंग से मशहूर यह बिस्किट वर्षों से कई पीढ़ियों की पसंद और यादों में शुमार है. साल 1929 में स्वदेशी आंदोलन से प्रभावित होकर, मुंबई स्थित व्यापारी मोहनलाल दयाल ने कन्फेक्शनरी बनाने के लिए एक पुरानी फैक्ट्री खरीदी और बिस्किट व बेक सामानों का निर्माण शुरू किया. उन्होंने आम भारतीयों के बजट को ध्यान में रखते हुए पारले-जी बिस्किट बनाए, जो आज भी बिकते हैं. (Image- shutterstock)
न्यूज़18 को गूगल पर अपने पसंदीदा समाचार स्रोत के रूप में जोड़ने के लिए यहां क्लिक करें।