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International Friendship Day : भारत की वो दोस्तियां, जो महान मिसाल बन गईं

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आज यानि 30 जुलाई को इंंटरनेशनल फ्रेंडशिप डे (International Friendship Day) है. इतिहास में फ्रेंडशिप की कई ऐसे उदाहरण हैं, जिनकी मिसाल आज भी दी जाती है. कहा जाता है जिसको सच्चा मित्र मिल गया, उसे जीवन का खजाना मिल गया.भारत में भी कुछ ऐसी दोस्तियां रही हैं, जिनके बारे में युगों युगों से चर्चा की जाती रही है और आगे भी की जाती रहेगी.

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सुदामा और कृष्ण की मैत्री भी अनूठी थी. इसके सरीखा उदाहरण शायद देखने को मिले. कृष्ण और सुदामा आचार्य संदीपन के आश्रम में साथ-साथ पढ़ते थे. सुदामा की सादगी और सहजता ने कृष्ण को प्रभावित किया. दोनों बहुत अच्छे दोस्त बन गए. शिक्षा के बाद दोनों अपनी जिंदगियों में व्यस्त हो गए. कृष्ण ने द्वारिका नगरी की स्थापना की. राजा बने. सुदामा की हालत खराब होती चली गई. पत्नी और बच्चों का पेट पालने के भी लाले पडऩे लगे. पत्नी को मालूम था कि वह कृष्ण के बालसखा हैं, लिहाजा वो हमेशा कृष्ण के पास जाकर सहायता मांगने का दबाव डालती थी.
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स्वाभिमानी सुदामा तिस पर भी नहीं मानते. जब हालत बहुत बुरी हो गई तो बेमन से वह कृष्ण से मिलने चले. जब उनके महल के द्वार पर पहुंचे तो द्वारपाल ने झिडक़ दिया. कृष्ण तक खबर पहुंची कि द्वार पर एक भिखारी सा व्यक्ति खड़ा है, नाम सुदामा बताता है और खुद को कृष्ण का सखा कह रहा है. कृष्ण ये बात सुनते ही नंगे पांव द्वार की ओर भागे. सब हैरान. भागते हुए सुदामा के पास पहुंचे. गले लग गए. आदर से अंदर तक लाए. हाथों से पैर धोया.
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कृष्ण की आंखों से खुशी में आंसू निकल रहे थे. सुदामा की खूब आवभगत की. लौटते समय सुदामा को ने प्यार से विदा किया बल्कि धन-धान्य से लादते हुए एक इलाके का अधिपति बना दिया.
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वैसे कृष्ण के चरित्र को देखा जाए तो लगेगा कि वो मैत्री के भी देवता थे. बचपन से लेकर आगे तक जिनके साथ समय गुजारा, उनके साथ मित्रता का एक अटूट बंधन बनाया. अर्जुन के साथ भी उनकी मैत्री उदाहरण के रूप में मानी जाती है. कहने को अर्जुन उनकी बुआ के बेटे थे. लेकिन दोनों मित्र ज्यादा थे. धनुर्धर अर्जुन को भी भाइयों से भी ज्यादा विश्वास कृष्ण की दोस्ती पर था. कृष्ण ने जीवनभर उसे निभाया. बाद में मित्रता को रिश्ते में भी बदला. बलराम के नहीं चाहने के बावजूद युक्तिपूर्ण तरीके से बहन सुभद्रा का विवाह अर्जुन से करा दिया. ये ऐसी मैत्री थी, जिसमें कृष्ण मार्गदर्शक, बुरे समय में सहयोगी, सलाहकार, सखा सभी कुछ थे.
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भारतीय इतिहास और पुराणों में कर्ण और दुर्योधन की मित्रता बेमिसाल है. इसमें कर्ण ने अपने दोस्त के लिए जीवन तक बलिदान कर दिया. कर्ण महान योद्धा थे. गजब के धनुर्धर. चूंकि कर्ण का पालन-पोषण एक सूत ने किया, लिहाजा उनकी पहचान सूतपुत्र के रूप में थी. उन पर ताना मारा जाता था. वह मन कचोट कर रह जाते थे. ऐसे में दुर्योधन ने कर्ण का हाथ थामा. दोस्त बनाया. एक राज्य देकर वहां का राजा घोषित किया.
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दुर्योधन ने कर्ण को बड़ा सम्मान और स्थिति दी. कर्ण भी ताजिंदगी इसे भूल नहीं पाए. कई बार कौरवों की बातें उन्हें नागवार गुजरतीं लेकिन विरोध जताने के बावजूद वह वही करते जो दुर्योधन चाहते. उन्होंने दुर्योधन के हर सही-गलत में साथ दिया. ये मालूम होने के बाद भी पांडवों के खिलाफ युद्ध किया कि वह कुंती के ही पुत्र हैं.
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कृष्ण ने जब उन्हें उनके जीवन की असलियत उजागर की तब भी कर्ण ने कौरवों का साथ छोडऩे से साफ इनकार कर दिया. उनका कहना था कि दुर्योधन की मित्रता से बड़ा उनके लिए कुछ नहीं. उन्हें मालूम था कि इस युद्ध में आखिरकार उन्हें जानों का बलिदान देना पड़ेगा, लेकिन वह कतई पीछे नहीं हटे. अंतिम सांस तक दुर्योधन का साथ देते रहे. चूंकि जनमानस में कौरव और दुर्योधन से बड़ा कोई खलनायक नहीं, अन्यथा कर्ण की मित्रता और बड़ी मिसाल बनकर पूज्यनीय बन चुकी होती.
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भारतीय पुराणों में एक और मैत्री को पवित्र रूप में देखा जाता है. वो है राम और सुग्रीव की मैत्री. सीता के हरण के बाद तलाश में भटक रहे राम और लक्ष्मण की ऋषिमुख पहाडिय़ों पर सुग्रीव से मुलाकात हुई. वो फिर मित्रता के ऐसे बंधन में बंधे कि निस्वार्थभाव से जीवनभर एक-दूसरे का साथ निभाते रहे.
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सुग्रीव को उसके भाई बाली ने गलतफहमी के चलते राज्य से बाहर ही नहीं खदेड़ दिया था बल्कि संपत्ति और पत्नी भी छीन ली थी. राम ने बाली की हत्या कर सुग्रीव को राजपाट दिलाया. सुग्रीव ने सीता की खोज के लिए वानर सेना और हनुमान को लगा दिया. रावण के खिलाफ युद्ध में राम के साथ सुग्रीव की सेना डटी रही.
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International Friendship Day : भारत की वो दोस्तियां, जो महान मिसाल बन गईं