राजनीतिज्ञों के लिए हम नारे और वोट हैं, बाकी के लिए हम गरीब, महामारी और बेकारी- हरिशंकर परसाई
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जहां दिल्ली में तापमान गिर रहा है और सर्दी बढ़ रही है, वहीं देश का राजनीतिक पारा लगातार चढ़ रहा है. पांच राज्यों में विधानसभा चुनाव हुए हैं. चुनावी नतीजे 3 दिसंबर, रविवार को खोले जाएंगे. कौन सिंहासन चढ़ेगा और किसकी कुर्सी छिनेगी ये तो चुनाव परिणाम वाले दिन स्पष्ट हो ही जाएगा. कोई खुशी के उछलेगा तो कोई मातम में डूबेगा, जल्द ही पता चल जाएगा. लेकिन इस खेल का मुख्य किरदार वोटर यानी जनता की स्थिति वही और वहीं है.

चुनाव हो गए हैं और जनता के वोट से नेता पहले कुर्सी और फिर मंत्रिपद पर विराजमान होंगे. पूरे पांच साल सत्ता का सुख भोगेंगे. हरिशंकर परसाई इस पर कहते हैं कि जनता की उपयोगिता कुल इतनी है कि उसके वोट से मंत्रिमंडल बनते हैं.

हरिशंकर परसाई कहते हैं कि राजनीति ऐसा बाजार है जहां खुलेआम नेता बिकते हैं. इस पर उन्होंने लिखा है- विधानसभा के बाहर एक बोर्ड पर 'आज का बाजार भाव' लिखा रहे. उन विधायकों की सूची चिपकी रहे जो बिकने को तैयार हैं.
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<br />जनता सोचती है कि उसके वोट से कोई विधायक बना है तो कोई मंत्री. लेकिन हकीकत कुछ और है. इस पर हरिशंकर परसाई लिखते हैं- प्रजातंत्र में सबसे बड़ा दोष तो यह है कि उसमें योग्यता को मान्यता नहीं मिलती.

राजनीति में आने से पहले मान-मर्यादा और शर्म का लवादा कहीं उतार कर रख देना चाहिए. व्यंग्यकार हरिशंकर परसाई इस बात को कुछ इस प्रकार कहते हैं- राजनीति में शर्म केवल मूर्खों को ही आती है.

राजनेताओं की नजर में आम आदमी की अहमियत कुछ भी नहीं है. हरिशंकर परसाई कहते हैं- राजनीतिज्ञों के लिए हम नारे और वोट हैं, बाकी के लिए हम महामारी और बेकारी हैं.
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