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उत्तराखंड में यहां आपका इंतजार कर रहे हैं महाभारत काल के दर्जनों पौधे

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Eco Tourism : अगर आपको महाभारत काल के पेड़-पौधों के दीदार करने हैं, तो तीन दर्जन से ज़्यादा प्रजातियां (Ancient Plants) एक जगह पर संजो ली गई हैं. एक अनोखी महाभारत वाटिका (Mahabharat Garden) बनाई गई है, जहां न केवल प्राचीन पेड़ पौधे हैं बल्कि महाभारत के पन्नों में पेड़, पौधों, जंगलों और जंगलों के कल्चर (Forest Culture) के बारे में जो कुछ महत्वपूर्ण है, वो सब भी आपको जानने को मिलेगा. भीष्म भी यहां हैं, भीष्म के संदेश भी... आइए शैलेंद्र सिंह नेगी के शब्दों के साथ इस वाटिका को निहारें.

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अगर हम कहें कि आज हम आपको महाभारत काल के पौधों के दीदार कराएंगे तो आप यकीन करेंगे? ये सच है. भीष्म पितामह को बाणों की सेज-शैया पर लेटे देखना है तो चले आइए हल्द्वानी. जहां भीष्म की ये काया महाभारत काल के पेड़ पौधों के बीच पर्यावरण की शिक्षा दे रही है. हल्द्वानी फॉरेस्ट रिसर्च सेंटर ने ऐसी अनोखी वाटिका तैयार की है, जहां आप महाभारत काल के एक-दो नहीं बल्कि 30 से ज्यादा प्रजाति के पौधों के दीदार कर सकते हैं.
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वन अनुसंधान केंद्र के प्रभारी मदन सिंह बिष्ट के मुताबिक महाभारत काल के विभिन्न पौधे देश के विभिन्न हिस्सों में फैले हुए हैं. इन्हें फॉरेस्ट रिसर्च सेंटर ने एक जगह लाकर ये खूबसूरत वाटिका तैयार की गई है. क्या आपको पता है कि 30 से ज़्यादा ये पौधे कौन से हैं, जो महाभारत काल के माने जाते हैं?
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आम्रातक, अरिमेद, आष्टापदिक, अशोक, अश्वत्थ, अतिमुक्तक, बदरी, भव्या, बिल्व, चंपक, धावा, इड्गुद, करीर, कर्णिकार, काश्मर्य, केतक, कादिर, कोविदार, न्यग्रोध, पलाश, पलस, पारिजात, पीलू, प्लाक्ष, रौहीतक, सहकारस, शमी, शिरीष, शयाम, तिलक, उद्दालक, वमसा, वारणपुष्प, वेणू, वेतस, विभीतक ये 37 प्रकार के ऐसे पेड़-पौधें हैं, जिन्हें फॉरेस्ट रिसर्च सेंटर की इस महाभारत कालीन वाटिका में लगाया गया है. लेकिन क्यों? महाभारत में पर्यावरण का संदेश कैसे मिलते हैं, जानिए.
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माना जाता है कि पांडवों ने अज्ञातवास के दौरान अपने अस्त्र-शस्त्र एक श्मशान के पास शमी के वृक्ष के नीचे सफेद कपड़े में ऐसे लपेटकर छिपाए थे, मानो वो कोई मृत शरीर हों. महाभारत में जिक्र मिलता है कि विराटनगर में यमुना के दक्षिण तट पर अर्जुन ने शमी के वृक्ष के नीचे अपना धनुष गांडीव छिपाकर रखा था. कहा जाता है कि विजयादशी के दिन पांडवों ने शमी के वृक्ष के नीचे से पांडवों ने अपने हथियार पुनः प्राप्त किए थे. इस दौरान पांडवों ने देवी दुर्गा और शमी के वृक्ष की पूजा की थी. इसीलिए भी विजयादशमी के दिन लोग शमी के पत्तों को एक-दूसरे को देकर मंगलकामना करते हैं. क्या आप जानते हैं कि भीष्म ने भी पर्यावरण पर संदेश दिए थे.
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महाभारत में भीष्म पितामह पर्यावरण को लेकर एक गहरा संदेश देते हैं. महाभारत के 58वें अध्याय में भीष्म युधिष्ठिर को पौधारोपण के महत्व के बारे में उपदेश देते हैं. वह कहते हैं कि पौधे रोपने वाला मनुष्य अतीत में जन्मे पूर्वजों, भविष्य में जन्मने वाली संतानों और अपने पितृवंश का कारण करता है इसलिए उसे चाहिए कि पेड़-पौंधे लगाए. मनुष्य द्वारा लगाए गए वृक्ष वास्तव में उसके पुत्र होते हैं. भीष्म कहते हैं कि जब ऐसे व्यक्ति का देहावसान होता है तो उसे स्वर्ग एवं अन्य अक्षय लोक प्राप्त होते हैं. महाभारत में बाघों को लेकर भी संदेश दिया गया है.
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महाभारत में लिखा गया है कि यदि वन नहीं हों तो बाघ मारा जाता है. यदि बाघ नहीं हो तो वन नष्ट हो जाते हैं. अतः बाघ, वन की रक्षा करता है और वन बाग की रक्षा. इन तमाम संदेशों के साथ ही उस काल के पौधों की एक खूबसूरत वाटिका हल्द्वानी में आपका इंतज़ार कर रही है.
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