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पशुओं को बीमारियों से बचने के लिए अभी करें ये काम, बाद में खर्च करने पड़ेंगे हजारों रुपए, ये रोग बना खतरा

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पशु चिकित्सक रामनिवास चौधरी ने बताया कि मानसून से पहले मई-जून में पशुओं का टीकाकरण जरूरी है. इससे गलघोटू, लंगड़ा बुखार और फड़किया जैसी बीमारियों से बचाव होता है.

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जयपुर. मौसम में बदलाव के कारण आने वाले समय में पशुओं में मौसम बीमारियों का खतरा बढ़ जाता है. ऐसे पशुपालक अपने पशुओं को बीमारी से बचाने के लिए टीकाकरण कराए. पशु चिकित्सक रामनिवास चौधरी ने बताया कि टीकाकरण का सबसे अच्छा समय मई-जून होता है. इसका कारण है कि पशुओं में टीकाकरण करवाने के बाद रोगों के प्रति प्रतिरक्षा उत्पन्न होने में लगभग 2-3 सप्ताह तक का समय लगता है. इसलिए मानसून आने से 2-3 सप्ताह पहले पशुपालक अपने पशुओं के टीके लगवाए.

पशु चिकित्सक ने बताया कि मानसून आते ही गाय-भैंस में गलघोटू और लंगड़ा बुखार रोग का प्रकोप ज्यादा देखा जाता है. भेड़ बकरियों में फड़किया रोग का प्रकोप अधिक होता है. इसलिए सभी पशुओं का मानसून से पूर्व ही टीकाकरण आवश्यक रूप से करवा लेने में ही समझदारी है. उन्होंने बताया कि अभी पशुओं को कृमिनाशक दवाई दें और स्वस्थ पशु का ही टीकाकरण कराएं. बार-बार टीकाकरण करवाने की बजाय एक साथ मिश्रित मुंह-खुरपका, गलघोटू टीकाकरण सही रहेगा.

इन रोगों से पशुओं को बचाए
पशु चिकित्सक रामनिवास चौधरी ने बताया कि गलघोटू रोग हर साल हजारों पशुओं को अपनी चपेट में लेता है. इस रोग का फैलाव हवा या बीमार पशु के झूठे पशु आहार, पानी और दूषित पदार्थों के संपर्क में आने से पशुओं में हो सकता है. यह रोग लम्बी दूरी की यात्रा से थके पशुओं में भी हो जाता है. इसके लक्षण हैं तेज बुखार, सूजी हुई लाल आंखें, मुंह से अधिक लार और आंख-नाक से साव, पशु खाना पीना और जुगाली बंद कर देता है. इससे बचने के लिए पशुपालक पशुओं का टीकाकरण जरूर करवाएं. पशुओं को लम्बी यात्राओं पर ले जाने से पूर्व भी टीका अवश्य लगवाएं और बीमार पशु को अन्य स्वस्थ पशुओं से दूर रखें. मृत पशु का निस्तारण गहरा गड्ढा खोदकर उसमें चूना या नमक डालकर करें.

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लंगड़ा बुखार से पशुओं को बचाए
रामनिवास चौधरी ने बताया लंगड़ा-बुखार रोग क्लोस्ट्रीडियम चौवाई जीवाणु से होता है. यह एक संक्रामक रोग है. जो बीमार पशु से दूषित पशु आहार के सेवन से हो सकता है. यह रोग खुले घाव द्वारा भी पशुओं में फैल जाता है. इस रोग में बीमार पशु के शरीर से मांस पेशियों की मोटी परत वाले भागों जैसे कंधे, पुढे और गर्दन पर सूजन आ जाती है. इस रोग के लक्षण हैं, तेज बुखार, पशु खाना पीना और जुगाली बंद कर देता है. श्वास-दर बढ़ जाती है और लाल आंखें, शरीर में जकड़न हो जाती है. इससे बचने के लिए भी पशुपालक पशु का टीकाकरण कराएं और बीमार पशु को स्वस्थ पशुओं से दूर रखें.

फड़किया भी पशुओं के लिए खतरा
उन्होंने बताया कि इस रोग को ‘पल्पी किडनी रोग’ भी कहते हैं. इस रोग के लक्षण की बात करें तो भेड़-बकरी का चक्कर काटना, शरीर में ऐंठन आना, कंपकंपी होना, सांस लेने में दिक्कत, पेट में दर्द के कारण पिछले पैर पेडल की तरह मारना और दस्त लगना सहित अन्य हैं. इससे बचाव के लिए 4 माह से बड़ी भेड़-बकरी का हर सला मानसून से पूर्व टीकाकरण करना चाहिए और रोग होने पर तुरंत पशु चिकित्सक को दिखाएं.

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with more than 4 years of experience in journalism. It has been 1 year to associated with Network 18 Since 2023. Currently Working as a Senior content Editor at Network 18. Here, I am covering hyperlocal news for local 18. I have also worked at ETV BHARAT (Hyderabad) as a content writer and Researcher. I Graduated in Journalism from Jamia Millia Islamia. I have mainly covered social, political, crime, motivational and innovative stories Along with business, entertainment and lifestyle. I am also interested in data journalism.
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