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खेत की राख से लग्जरी कुर्सी तैयार कर रहे ये बच्चे, स्टूडेंट्स की खोज ने उड़ा दिए टेक्नोलॉजी के होश!

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Furniture From Scratch: मध्य प्रदेश के बालाघाट के स्टूडेंट्स ने पराली से टेबल, सोफा, प्लेटें और गमले बनाकर अनोखा नवाचार किया है. इससे न केवल प्रदूषण घटेगा, बल्कि जंगल भी बचेंगे. जानें कैसे यह प्रोजेक्ट अगले साल बाजार में आ सकता है.

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Unique Furniture for Home: जहां एक ओर देश पराली जलाने की समस्या से जूझ रहा है, वहीं मध्य प्रदेश के बालाघाट ज़िले के छात्रों ने ऐसा समाधान खोजा है जो आने वाले समय में पर्यावरण के लिए वरदान साबित हो सकता है. प्रधानमंत्री कॉलेज ऑफ एक्सीलेंस के छात्रों ने पराली का इस्तेमाल कर टेबल, कुर्सी, सोफा, डिस्पोजेबल प्लेटें, कटोरी और गमले तैयार करना शुरू कर दिया है.

इस अभिनव प्रोजेक्ट का नेतृत्व प्रोफेसर डॉ. दुर्गेश अगासे कर रहे हैं, जिनकी निगरानी में स्टूडेंट्स ने पराली और जंगल में मिलने वाले बेल, मधुमक्खियों के वैक्स और प्राकृतिक गोंद से यह इको-फ्रेंडली फर्नीचर और बायोडिग्रेडेबल प्रोडक्ट तैयार किए हैं.

पराली से बने उत्पाद
जहां आज जंगलों की अंधाधुंध कटाई फर्नीचर उद्योग के लिए आम हो चली है, वहीं ये छात्र अपने नवाचार से न केवल पेड़ों को बचा रहे हैं, बल्कि पराली जैसी समस्या को भी मूल्यवान संसाधन में बदल रहे हैं. पराली को मशीन से बारीक चूरा बनाकर बेल से तैयार गोंद और वैक्स के साथ मिश्रण किया जाता है, जिससे ये उत्पाद बनाए जाते हैं.

फायदे:

ये फर्नीचर मजबूत होते हैं और लंबे समय तक टिकते हैं.

बनाए गए डिस्पोजल प्रोडक्ट वॉटर रेजिस्टेंट हैं – यानी पानी में गलेंगे नहीं.

गर्म भोजन रखने पर भी ये खराब नहीं होते.

प्राकृतिक रूप से तैयार – पर्यावरण को कोई नुकसान नहीं.

राज्य स्तरीय सृजन प्रतियोगिता में मिला तीसरा स्थान
भोपाल स्थित राजीव गांधी प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय में आयोजित सृजन प्रतियोगिता में इस प्रोजेक्ट को तीसरा स्थान मिला है. यह उपलब्धि न केवल कॉलेज बल्कि पूरे बालाघाट जिले के लिए गर्व की बात है. छात्रों की सोच ने साबित कर दिया कि समाधान तकनीक से ही नहीं, संकल्प से भी निकाले जा सकते हैं.

अगले साल बाजार में आ सकते हैं ये प्रोडक्ट
प्रोफेसर अगासे बताते हैं कि अब इस नवाचार को कमर्शियल स्केल पर लाने की तैयारी हो रही है. आने वाले साल में इन उत्पादों का बड़े स्तर पर उत्पादन शुरू किया जाएगा, जिससे ग्रामीण क्षेत्रों में रोजगार भी पैदा होगा और पर्यावरण को भी राहत मिलेगी.

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