जीडीपी के शोर में क्यों प्रति व्यक्ति आय की बात करना जरूरी, जहां से पता चलती है असली तरक्की!
भारत ने 2025 में जापान को पीछे छोड़ते हुए दुनिया की चौथी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बनने का गौरव हासिल किया है, लेकिन प्रति व्यक्ति आय में अब भी पीछे है.
नई दिल्ली. भारत ने 2025 में जापान को पीछे छोड़ते हुए दुनिया की चौथी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बनने का गौरव हासिल कर लिया है. अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (IMF) के अनुसार, भारत की कुल जीडीपी $4.19 ट्रिलियन तक पहुंच गई है, जबकि जापान इस सूची में $4.18 ट्रिलियन के साथ अब पांचवें स्थान पर है. यह उपलब्धि निश्चित रूप से देश के वैश्विक प्रभाव, निवेश क्षमता और रणनीतिक ताकत को दर्शाती है, लेकिन अगर इस उपलब्धि को आम आदमी की दृष्टि से देखा जाए, तो तस्वीर उतनी चमकदार नहीं है. आर्थिक समृद्धि के इस आंकड़े के पीछे छिपी हकीकत को समझने के लिए हमें प्रति व्यक्ति आय (Per Capita Income) पर नज़र डालनी होगी.

कुल जीडीपी किसी देश की आर्थिक ताकत को बताती है, लेकिन वह लोगों की वास्तविक जीवन गुणवत्ता का आकलन नहीं कर सकती. इसके लिए प्रति व्यक्ति आय, यानी देश की कुल आय को उसकी जनसंख्या से विभाजित कर जो औसत आता है, वही अधिक सटीक संकेत देता है कि आम लोग कितने संपन्न हैं. उदाहरण के लिए, भारत की जीडीपी जापान से ज़्यादा हो गई है, लेकिन भारत की प्रति व्यक्ति आय सिर्फ $2,880 (करीब ₹2.4 लाख) है, जबकि जापान की यह आय $33,900 है. इसका सीधा सा अर्थ है कि भारत की समृद्धि कुछ चुनिंदा क्षेत्रों और व्यक्तियों तक ही सीमित है, जबकि आम नागरिक की आर्थिक स्थिति अब भी चुनौतीपूर्ण बनी हुई है.
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भारत बनाम छोटे लेकिन समृद्ध देश
भारत की प्रति व्यक्ति आय सिर्फ बड़ी अर्थव्यवस्थाओं से ही नहीं, बल्कि कई छोटे देशों से भी कम है. जैसे कि सिंगापुर ($91,700), कतर ($92,400) और लक्ज़मबर्ग ($140,300) जैसे देश, जिनकी कुल जीडीपी भारत से बहुत कम है, लेकिन उनकी आबादी भी कम होने के कारण नागरिकों को मिलने वाली औसत आय काफी ज्यादा है. यह अंतर सिर्फ आबादी की वजह से नहीं है, बल्कि उन देशों की अर्थव्यवस्था में उच्च उत्पादकता, विकसित अवसंरचना, और बेहतर आय वितरण जैसी नीतियों का योगदान भी होता है.
भारत की बड़ी चुनौती
भारत की कुल जीडीपी जितनी तेजी से बढ़ रही है, उतनी ही धीमी रफ्तार से आम नागरिक की आय में इजाफा हो रहा है. जहां कुछ चुनिंदा लोग अरबों की संपत्ति के मालिक बन चुके हैं, वहीं देश की टॉप 0.1% आबादी के पास 29% से ज्यादा संपत्ति है, जो 1961 में सिर्फ 3.2% थी. यही वजह है कि भारत की प्रति व्यक्ति आय केन्या ($2,950), मोरक्को ($4,200) और मॉरीशस ($11,900) जैसे छोटे और विकासशील देशों से भी कम है. भारत की मौजूदा प्रति व्यक्ति आय को जापान के 1950 के दशक के स्तर से तुलना किया जा सकता है. विशेषज्ञ मानते हैं कि अगर भारत की अर्थव्यवस्था सालाना 8% की दर से बढ़े, तो भी जापान के मौजूदा स्तर पर पहुंचने में 20 साल लग सकते हैं.
नीति निर्माण में प्रति व्यक्ति आय का महत्व
नीति-निर्माताओं के लिए प्रति व्यक्ति आय एक अहम संकेतक है, क्योंकि यह बताता है कि विकास सिर्फ आंकड़ों तक सीमित है या उसका लाभ जमीनी स्तर तक पहुंच रहा है. यदि यह आंकड़ा कम है, तो यह शिक्षा, स्वास्थ्य, रोज़गार और बुनियादी सेवाओं में सुधार की आवश्यकता को उजागर करता है. भारत को जीडीपी के साथ-साथ ऐसे विकास मॉडल पर काम करना होगा जो विस्तार से ज्यादा गहराई लाए—यानी विकास सिर्फ बड़े शहरों और अमीर तबकों तक सीमित न रह जाए, बल्कि गांव, छोटे कस्बों और कम आय वर्ग तक भी पहुंचे.
कुल आय बनाम प्रति व्यक्ति आय
कुछ अर्थशास्त्रियों का मानना है कि भारत की बड़ी आबादी ही उसकी ताकत है, जिससे वह वैश्विक निवेश और बाजार के लिए आकर्षण बना हुआ है. उनके मुताबिक, भारत “पकड़ नहीं रहा है, बल्कि ओवरटेक कर रहा है”—यानी वह सिर्फ विकसित देशों की बराबरी नहीं कर रहा, बल्कि उन्हें नए मायनों में चुनौती दे रहा है. लेकिन इसके बावजूद, यह समझना जरूरी है कि जब बात आम नागरिक की आर्थिक स्थिति की होती है, तो प्रति व्यक्ति आय ही असली कसौटी होती है. यह स्वास्थ्य सेवाओं की गुणवत्ता, शिक्षा की पहुंच, आवास की स्थिरता और जीवन स्तर का सबसे वास्तविक मापदंड है.