High Court News: जज को गाली देने का अंजाम क्या होता है? इस केस से समझिए सबकुछ
High Court News:अगर आप कोर्ट के अंदर हैं चाहे वकील हों या आम आदमी तो जज का सम्मान करना आपकी कानूनी और नैतिक जिम्मेदारी है. एक महिला मजिस्ट्रेट को गाली देना सिर्फ कानून की अवहेलना नहीं बल्कि पूरे न्याय तंत्र को चुनौती देना है और इसका अंजाम बेहद गंभीर हो सकता है जैसा इस केस ने साबित कर दिया...
नई दिल्ली. अगर आपको लगता है कि कोर्ट में गुस्से में कुछ भी बोल देना चलता है, तो दिल्ली हाईकोर्ट का ये फैसला आपको जरूर चौंकाएगा. वकील संजय राठौर को एक महिला मजिस्ट्रेट को कोर्ट में गाली देने का खामियाजा दो साल की जेल के तौर पर भुगतना पड़ा है. उन्होंने 2015 में एक सुनवाई टलने पर महिला जज को भरी अदालत में जेंडर-स्पेसिफिक गालियां दी थीं. दिल्ली हाईकोर्ट ने सोमवार को साफ कहा कि ऐसे मामलों में किसी भी तरह की नरमी नहीं बरती जा सकती. जस्टिस स्वर्ण कांता शर्मा ने कहा कि जज को धमकाना या गाली देना सिर्फ एक व्यक्ति पर नहीं, बल्कि न्यायपालिका की आत्मा पर हमला है.

हालांकि, कोर्ट ने राठौर की सजा को आंशिक रूप से बदला और कहा कि अब अलग-अलग सजा एक साथ चलेगी, जिससे कुल सजा 2 साल की बजाय 1 साल 6 महीने की हो गई है लेकिन कोर्ट ने ये साफ कर दिया कि वकील होने के नाते आरोपी पर जिम्मेदारी और ज्यादा थी ना कि छूट. वकील संजय राठौर को ट्रायल कोर्ट ने दो साल की सजा सुनाई थी. इस सजा को वकील ने हाईकोर्ट में चैलेंज किया था और गुहार लगाई थी कि उसकी सजा को कम किया जाए. इस पर जस्टिस स्वर्ण कांत शर्मा ने कहा कि कोर्ट को सजा में किसी भी तरह की नरमी बरतने का कोई आधार नहीं मिला है.
क्या है मामला?
अक्टूबर 2015 में जब एक न्यायिक अधिकारी कड़कड़डूमा कोर्ट में मेट्रोपॉलिटन मजिस्ट्रेट के रूप में कार्य कर रही थीं, तब राठौर ने उनकी अनुपस्थिति में मामले की अगली तारीख लगाए जाने पर नाराज होकर उन्हें गाली दी थी, जिसमें लिंग-विशिष्ट गाली भी शामिल थी. इसके बाद फर्श बाजार पुलिस स्टेशन में एफआईआर दर्ज की गई थी. राठौर को भारतीय दंड संहिता की धारा 509 (महिला की गरिमा को ठेस पहुँचाने का इरादा) के तहत 18 महीने की सजा, धारा 189 (लोक सेवक को चोट पहुंचाने) के तहत तीन महीने की सजा और धारा 353 (लोक सेवक को कर्तव्य से रोकने के लिए हमला या आपराधिक बल) के तहत तीन महीने की अतिरिक्त सजा सुनाई गई थी. ट्रायल कोर्ट ने आदेश दिया था कि यह तीनों सजाएं एक के बाद एक चलेंगी जिसमें वकील को कुल 2 साल की सजा सुनाई गई थी.
जज ने फैसले में क्या कहा…
न्यायमूर्ति शर्मा ने फैसले में कहा कि यह घटना दर्शाती है कि सशक्त भूमिकाओं में महिलाएं भी अपमान या बेइज्जती से अछूती नहीं मानी जातीं. जस्टिस ने आगे कहा कि ऐसे मामलों को तुच्छ या अलग मानकर खारिज नहीं किया जाना चाहिए. इन्हें गंभीरता से लिया जाना चाहिए, क्योंकि ये न्यायपालिका की धारणाओं पर प्रभाव डालते हैं और महत्वपूर्ण रूप से महिलाएं न्यायपालिका में अपनी स्थिति को कैसे देखती हैं.
जस्टिस शर्मा ने आगे कहा कि कोई भी न्यायिक अधिकारी, विशेषकर जिला स्तर पर जो हमारे न्याय प्रणाली की रीढ़ हैं उन्हें कभी असुरक्षित या असमर्थित महसूस नहीं करना चाहिए. न्यायपालिका में महिला शक्ति को कभी भी असहाय या किसी और की कृपा पर महसूस नहीं करना चाहिए. अगर एक महिला न्यायिक अधिकारी को यह महसूस कराया जाता है कि उसकी अधिकारिता अन्य लोगों की सभ्यता या संयम पर निर्भर है, तो न्यायिक स्वतंत्रता की नींव हिल जाएगी.