जब शराब से तौबा कर गए गोपालदास नीरज
अगर हम पन्ने पलटकर देखें तो कवि गोपालदास नीरज से जुड़ी बहुत सारी कविताओं और गीतों में शराब का जिक्र मिल जाएगा.
अगर हम पन्ने पलटकर देखें तो कवि गोपालदास नीरज से जुड़ी बहुत सारी कविताओं और गीतों में शराब का जिक्र मिल जाएगा. प्रेम पुजारी फिल्म का ये गीत-

शोखियों में घोला जाये, फूलों का शबाब
उसमें फिर मिलायी जाये, थोड़ी सी शराब
होगा यूँ नशा जो तैयार, वो प्यार है... ।
खासा मशहूर हुआ था. लेकिन उस गुजरे दौर में ही नहीं आज भी ये गीत ताजातरीन बना हुआ है. इसी तरह से उनकी एक कविता जिसको सुनने की मांग हर मंच से त्रोता नीरज जी से करते थे-
इतने बदनाम हुए हम तो ज़माने में,
लगेंगी आपको सदियां हमें भुलाने में,
न पीने का सलीका, न पिलाने का शऊर,
ऐसे भी लोग चले आते हैं मयखाने में।
ये गीत और कविता की एक बानगीभर बताती है कि शराब और नीरज जी का क्या रिश्ता था. लेकिन हैरान करने वाली बात ये है कि अपने आखिरी दौर में नीरज जी ने शराब से तौबा कर ली थी. उनसे जुड़े लोग बताते हैं कि पिछले ढाई साल से नीरज जी ने शराब को हाथ तक नहीं लगाया था. यहां तक की कुछ खास मौकों पर भी लोगों के गुजारिश करने पर हाथ जोड़ दिया करते थे. लेकिन शराब को हाथ नहीं लगाते थे.
उनसे जुड़े लोग बताते हैं कि सेहत को देखते हुए डॉक्टर ने उन्हें शराब पीने से मना कर दिया था. लेकिन डॉक्टर से मिली इस नसीहत पर नीरज जी मिलने-जुलने वालों से एक ही बात कहते थे कि एक वो दौर था जब शराब हलक में उतरकर कई गीत लिखने का बहाने बनी, लेकिन कमबख्त अब तो डॉक्टर से दवाई लिखवाए जा रही है.
आखिरी वक्त में नीरज जी के खासे नजदीक रहने वाले अलीगढ़ निवासी दीपक शर्मा बताते हैं कि नीरज जी के अलीगढ़ में जनकपुरी वाले घर पर लगने वाले दरबार में मिलने वालों की संख्या अब सीमित हो गई थी. कवि अशोक सक्सेना और मधुप लहरी ही अक्सर मिलने वालों की फेहरिस्त में शामिल थे. अलीगढ़ में जो नीरज जी के मिलने वाले हुआ करते थे वो अब ज्यादार स्वर्गवासी हो चुके हैं. परिवार के ज्यादातर लोग भी दूसरे शहर में रहते हैं.