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शादीशुदा जिंदगी से बाहर गालिब के प्यार के किस्से, मेहबूबा की मौत पर लिखी थी ये गजल

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गालिब (Ghalib) की शादी बहुत कम उम्र में हो गई थी. उनकी बेगम का नाम उमराव जान था. हालांकि शादीशुदा जिंदगी के बाहर भी गालिब के प्यार के रिश्ते रहे...

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आज हिंदुस्तान के अजीमोशान शायर गालिब (Ghalib) की पुण्यतिथि है. गालिब- गजलों और शायरी की दुनिया का सबसे पाक नाम. गालिब की गजलों और उनकी शायरी पर न जाने कितना लिखा गया और न जाने कितना कहा गया. आज गालिब के प्यार की बात करते हैं. उनकी शादीशुदा जिंदगी और उस जिंदगी से बाहर प्यार की तलाश में गालिब. कहते हैं कि सभी प्यार करने वाले कवि या शायर नहीं होते लेकिन हर कवि या शायर किसी न किसी तरीके से प्यार करने वाला होता है. प्यार, इश्क, मोहब्ब्त पर गालिब ने जानें कितनी गजलें लिखी, शेर कहे. लेकिन क्या आप जानते हैं कि प्यार को लेकर उनके क्या अहसासात थे? कैसी थी उनकी शादीशुदा जिंदगी और क्या शादी के बाहर भी उन्होंने कभी इश्क फरमाया?

गालिब के प्यार के अनसुने किस्से, मेहबूबा की मौत पर लिखी थी ये गजल
मिर्जा गालिब की शादीशुदा जिंदगी के बाहर भी प्यार के किस्से मिलते हैं


गालिब को पढ़ना यानी प्यार और जिंदगी को पढ़ना है. किसी कवि या शायर की रचना से उसकी निजी जिंदगी का अंदाजा नहीं लगाया जा सकता. लेकिन इतना कहा जा सकता है कि जिस अहसास के साथ उस शायर या कवि ने रचना लिखी है, उसके अहसासात उन्होंने जरूर किए होंगे. इसी आधार पर कवि या शायर की निजी जिंदगी के बारे में लिखा और बोला जाता है.


कम उम्र में हो गई थी गालिब की शादी

13 साल की उमराव जान फिरोजपुर जिरका के नवाब इलाही बख्शी की भतीजी थीं. शादी के बाद गालिब आगरा छोड़कर अपने छोटे भाई यूसुफ खान के साथ दिल्ली आ गए. कहा जाता है कि गालिब अपनी शादी को लेकर खुश नहीं थे. इसको लेकर तमाम किस्से हैं.


अपने एक खत में मिर्जा गालिब ने अपनी शादी को दूसरी कैद बताया था. गालिब के सात बच्चे हुए. लेकिन उनका कोई बच्चा कुछ महीनों से ज्यादा जिंदा नहीं रह पाया. शायद इस दर्द की वजह से गालिब का अपनी बीवी से सामान्य रिश्ता नहीं रह पाया. हालांकि इस बात के सबूत भी मिलते हैं कि गालिब अपनी बीवी का ख्याल रखते थे. पहले कम उम्र में पिता को खो देना और उसके बाद एक के बाद एक अपने बेटों की मौत ने शायद गालिब को बेइंतिहा दर्द के अहसास से भर दिया.


गालिब की शायरियों में अक्सर अधूरे प्यार और जिंदगी के अनकहे दर्द की झलक मिलती है. उन्होंने अपने प्यार पर बहुत सी बातें लिखीं लेकिन कभी उस प्यार को जाहिर नहीं होने दिया. गालिब की गजलों और शायरी ने न जाने कितनों के दिल धड़काए लेकिन क्या उनकी धड़कने भी अपनी बीवी के अलावा किसी और के प्यार के लिए बेकाबू होती थीं? गालिब ने लिखा है- मोहब्बत में नहीं है फर्क जीने और मरने का, उसी को देख कर जीते हैं, जिस काफिर पे दम निकले. प्यार में डूबे इस अहसास के कई मानें हैं.




गालिब और मुगल जान की प्रेम कहानी

अपनी शादीशुदा जिंदगी से अलग गालिब के प्यार के कुछ किस्सों की चर्चा मिलती है. हालांकि इन रिश्तों में भी बखूबी पर्देदारी दिखती है. उनदिनों गाने और नाचने वाली लड़कियों के पास जाना बुरा नहीं माना जाता था. नृत्य और संगीत के शौकीनों की महफिल अक्सर जमा करती थी. बड़े और शौकीन लोग ऐसी सोहबत को पसंद करते थे. ऐसी ही एक लड़की मुगल जान से गालिब के संबंधों का जिक्र मिलता है. कहीं-कहीं उस लड़की का नाम नवाब जान भी कहा गया है. गालिब के ऊपर मुगल जान का खासा असर था. हालांकि कहते हैं कि उन्होंने कभी इसे जाहिर नहीं होने दिया. अपने खतों में वो किसी प्यार का जिक्र तो करते लेकिन नाम न कहते.


मुगल जान को उस वक्त के एक और बेहतरीन शायर हातिल अली मेहर पसंद करते थे. गालिब और मेहर दोनों ही मुगल जान की महफिलों में जाया करते. कहते हैं कि मुगल जान ने गालिब से कभी अपनी पसंद नहीं छिपाई और उसने माना कि वो उनके साथ हातिम अली मेहर को भी पसंद करती है. हालांकि इसके बाद भी गालिब ने हातिम अली मेहर के साथ किसी तरह की नफरत या प्रतिद्वंद्विता नहीं दिखाई. दुर्भाग्य से मुगल जान ज्यादा लंबी उम्र नहीं जी पाई. कम उम्र में ही उसका निधन हो गया.


मेहर, मुगल जान के दुनिया को छोड़कर जाने से बेहद दुखी थी और गालिब भी. गालिब ने ऐसे वक्त में भी बड़ा दिल दिखाया और मेहर को खत लिखकर उनसे दुख साझा किया. गालिब, मुगल जान को पसंद करते थे लेकिन वो इस बात से वाकिफ थे कि इस रिश्ते का कोई अंजाम न होगा.


गजलों और शेरों के अलावा उस दौर में प्यार को लेकर ज्यादा कुछ लिखा नहीं जाता था. चोरी-छिपे खत लिखे जाते थे. प्यार में लोग अक्सर ख्वाब बुनते ही रह जाते थे. गालिब की इस प्रेम कहानी को भी अंदाजे से बयां किया गया है. इसमें बहुत कुछ काल्पनिक भी है. 1954 में सोहराब मोदी ने गालिब की जिंदगी पर फिल्म भी बनाई थी. इस फिल्म में मुगल जान को चौदहवीं नाम दिया गया था.




मुगल जान के बाद भी रहीं गालिब की दूसरी प्रेमिकाएं

मुगल जान के जाने के बाद भी गालिब की प्रेम कहानी खत्म नहीं होती. मुगल जान की मौत के बाद गालिब को एक संभ्रात घराने की बेहद सम्मानीय महिला से प्यार हुआ. कहते हैं कि इस प्यार को हमेशा उन्होंने पोशीदा रखा. उस महिला का नाम कभी पता नहीं चला. हालांकि गालिब की ये प्रेम कहानी ज्यादा दिन नहीं चली.


इसके बाद भी गालिब को एक और खूबसूरत महिला से प्यार हुआ. वो महिला उनकी गजलों और शेरो-शायरी की दीवानी थी और खुद शेर कहा करती थीं. गालिब की सोहबत उसे पसंद थी. और इसी दरम्यान दोनों बेहद करीब आ गए. कहा जाता है कि दोनों के बीच जज्बाती से लेकर जिस्मानी सोहबत हासिल थी.


वो खूबसूरत महिला शेरो-शायरी लिखकर गालिब के पास उनकी रायशुमारी के लिए भेजा करती थीं. एक-दो जगह उस महिला का जिक्र गालिब 'तुर्क महिला' के नाम से करते हैं. दोनों के बीच रिश्ते गुपचुप तरीके से बढ़ते गए और एक वक्त ऐसा आया, जब इसपर बदनामी का बदनुमा दाग लग गया. ऐसे हालात में पहुंच जाने के बाद समाज के डर से उस महिला ने अपनी जिंदगी बलिदान करना ही ठीक समझा.


इस वाकये ने गालिब को बेहद पीड़ा में डाल दिया. हालांकि इसके बावजूद गालिब उस तुर्क महिला को भुला नहीं पाए. दुख और पीड़ा की गहराई में जाने की वजह से गालिब बीमार पड़ गए. कहते हैं कि उसी तुर्क महिला की याद में गालिब ने गजल लिखी-


दर्द से मेरे है तुझको बेक़रारी हाय-हाय

क्या हुई ज़ालिम तेरी ग़फ़लतशियारी हाय-हाय


तेरे दिल में गर न था आशूब-ए-ग़म का हौसला

तू ने फिर क्यूँ की थी मेरी ग़म-गुसारी हाय-हाय


उमर भर का तूने बेमान-ए-वफ़ा बाँधा तो क्या

उमर को भी तो नहीं है पाय दारी हाय-हाय


हाथ ही तेग़-आज़मा का काम से जाता रहा

दिल पे इक रग ने न पाया ज़ख़्म-कारी हाय-हाय


ख़ाक़ में न मुँह से पेमान-ए-महब्बत मिल गई

उठ गई दुनिया से राह-ओ-रस्म-ए-यारी हाय-हाय

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