जब पूर्वोत्तर से घुसकर आजाद हिंद फौज ने पहली बार देश में किया था प्रवेश
नेताजी के नाम से मशहूर सुभाष चंद्र बोस के नेतृत्व वाली आजाद हिंद फौज ने 19 मार्च 1994 को पहली बार पूर्वोत्तर से अंग्रेजी सेना को हराते हुए भारत की धरती पर प्रवेश किया और वहां तिरंगा लहराने का गौरव हासिल किया था. इस घटना को औपचारिक तौर पर तिरंगा फहराने की पहली घटना कादर्जा नहीं मिल सका था, लेकिन इसका ऐतिहासिक महत्व कम नहीं है.
भारत की आजादी दिलाने के लिए देश के सपूतों ने कई तरह के रास्ते अपनाए किसी ने गांधी जी के अहिंसावादी आंदोलनों को अपनाया तो कोई क्रांतिकारी बन गया. लेकिन सुभाषचंद्र बोस ने एक अलग राह पकड़ी और देश के लिए एक सेना का नेतृत्व करते हुए द्वितीय विश्व युद्ध में अंग्रजों के दुश्मनों से हाथ मिला कर अंग्रेजों पर हमला कर देश को आजादी दिलाने की सार्थक कोशिश भी की. इस दिशा में एक बड़ी उपलब्धि 19 मार्च 1944 में अंग्रेजों से युद्ध लड़ते हुए पहली बार उत्र पूर्व से भारत की जमीन में प्रवेश कर वहां झडा गाड़ने में सफलता हासिल कर इतिहास रच दिया था. 200 साल की अंग्रेजी हूकमत के दौरान यह इस तरह का पहला मौका था.

द्वितीय विश्व युद्ध एक अवसर
1939 में ही में नेताजी सुभाषचंद्र बोस ने जब सुना के द्वितीय विश्व युद्ध शुरू हो गया है उन्होंने पहले तो कोशिश की कि कांग्रेस अंग्रेजों से आजादी हासिल करने के लिए लिए इसका फायदा उठाए, लेकिन बात नहीं बनते देख उन्होंने कांग्रेस तो छोड़ी ही देश तक छोड़ यूरोप हिटलर से मदद मांगने पहुंच गए. वहां जब उन्हें अधिक सफलता नहीं मिली.
पूर्व की ओर से प्रवेश के प्रयास
द्वितीय विश्व युद्ध में नेताजी को जर्मनी से खास मदद मिलती नहीं दिखी तो वे पूर्वी एशिया यानि सिंगापुर चले आए जहां उन्हें आजाद हिंद फौज की कमान संभाली और जापनियों से हाथ मिलाया. और फिर सिंगापुर से शुरुआत कर आजाद हिंद फौज जापानी सेना के साथ रंगून तक पहुंची. इसके बाद फौज ने उत्तरपूर्व के जरिए भारत में प्रवेश किया था.
युद्ध में जापानी सेना की मदद से
1994 में पूर्वी एशिया की ओर से जापानी सेना के साथ आजाद हिंद फौज एक के बाद एक देशों को फतह कर बर्मा (आज का म्यांमार) को पार कर लिया था और 19 मार्च ही वह ऐतिहासिक दिन था जब कर्नल शौकत मलिक ने कुछ मणिपुरी और आजाद हिंद के साथियों की मदद से पूर्वोत्तर में देश की जमीन में प्रवेश किया और इतिहासिक कारनामा देश के लिए कर दिखाया.
यह दिन भारत और आजाद हिंद फौज के इतिहास के लिहाज से एक अलग ही महत्व रखता है. (प्रतीकात्मक तस्वीर: Wikimedia Commons)
देश की मुख्य धरती पर पहला कदम
वास्तव में यह आजाद हिंद फौज का भारत की प्रमुख धरती, जिसे मेनलैंड कहा जाता है) में भारतीय सेना का पहला प्रवेश था और उसी दिन यहां फौज का तय किया गया भारतीय झंडा भी फहराया गया था. लेकिन औपचारिक तौर पर झंडा भारत की मुख्य भूमि पर इस दिन के 20 दिन के बाद मोइरंग में 14 अप्रैल को कर्नल मलिक ने ही फहराया था.
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सबसे पहले सुभाष चंद्र बोस!
कर्नल शौकत अली मलिक ने इस लड़ाई में आजाद हिंद फौज की बहादुर रेजिमेंट के नेतृत्व किया था. लेकिन सच यह है कि कर्नल मलिक और उनकी रेजिमेंट की उत्तरपूर्व में देश में पहली बार झंड़ा फहराने की उपलब्धि भारत में पहली बार स्वतंत्र रूप से तिरंगा फहराने की उपलब्धि नहीं थी बल्कि इससे पहले खुद सुभाष चंद्र बोस यह काम कर चुके थे.
इस युद्ध में सुभाष चंद्र बोस की सेना को जापानी सेना का अच्छे से साथ नहीं मिला था. (प्रतीकात्मक तस्वीर: Wikimedia Commons)
तो फिर 19 मार्च का क्या महत्व
आजाद भारत की सरजमीं पर यह पहला तिरंगा नेताजी सुभाष चंद्र बोस ने 30 दिसंबर पर 1943 को अंडमान और निकोबार द्वीप समूह में खुद अपनी सरकार के तले फहराया था. इसके बाद मोइरंग को 14 अप्रैल वाले दिन कर्नल शौकत मलिक के ध्वजारोहण को दूसरी घटना माना जाता है. फिर भी 19 मार्च वह दिन है जब भारत की किसी सेना ने भारत की मुख्य भूमि में प्रवेश किया और वहां झंडा फहराया यानि कुछ जमीन आजाद करवाई. इसी घटना पर विमलराय ने पहला आदमी नाम की फिल्म भी बनाई थी.
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लेकिन यह केवल शुरुआत थी. घटना के दो दिन बाद ही सुभाष चंद्र बोस ने दिल्ली चलो का नारा दिया था. इसके बाद तो इंम्फाल की भीषण लड़ाई हुई जिसमें पहले तो आजाद हिंद फौज को आगे बढ़ने को मौका मिला. अंततः 14 अप्रैल को मोइरंग को ही आजाद हिंद फौज का मुख्यालय बनाया गया जहां कर्नल मलिक ने औपचारिक तौर पर झंडावंदन किया. लेकिन जल्दी ही इस युद्ध में अंग्रोजों का पलड़ा भारी पड़ने लगा और जापानी सेना ने बाकी जगह हारने के कारण पीछे हटने का भी फैसला कर लिया. इससे आजाद हिंद फौज संभलने से पहले ही कमजोर हो गई और जल्दी ही सबकुछ अंग्रेजों के हाथों वापस चला गया.