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प्यास सिर्फ इंसानों को नहीं लगती... खंडवा में एक परिवार 15 साल से पिला रहा बेजुबानों को पानी

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Khandwa News: खंडवा के दीपू अग्रवाल और उनका परिवार 15 साल से गर्मियों में बेजुबान पक्षियों के लिए फ्री सकोरे बांट रहे हैं. यह परंपरा उनके पिता ने शुरू की थी.

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खंडवा. हम अक्सर गर्मियों में प्यास से बेहाल इंसानों की चिंता करते हैं, लेकिन क्या आपने कभी उन बेजुबान पक्षियों के बारे में सोचा है, जो तपती दोपहरों में एक बूंद पानी के लिए तरसते हैं? मध्यप्रदेश के खंडवा शहर में एक ऐसा परिवार है, जो दो पीढ़ियों से इन बेजुबान पक्षियों की प्यास बुझाने का काम कर रहा है. यह कहानी है खंडवा के स्टेशन रोड पर मिठाई की दुकान चलाने वाले दीपू अग्रवाल और उनके परिवार की, जो पिछले करीब 15 साल से गर्मियों में फ्री सकोरे बांट रहे हैं.

दीपू अग्रवाल बताते हैं कि यह परंपरा उनके पिता जी ने शुरू की थी. तब न गर्मियों में इतने कूलर होते थे, न जल संरक्षण पर बात होती थी, लेकिन उनके पिताजी ने महसूस किया कि गर्मी में जब इंसानों को प्यास लगती है, तो पक्षियों का क्या हाल होता होगा? उसी दिन से उन्होंने मिट्टी के सकोरे बांटने शुरू किए, जिनमें लोग अपने घरों की छतों या बगीचों में पानी भरकर रखते हैं ताकि पक्षी प्यास बुझा सकें. अब यह काम दीपू और उनके बेटे पुलकित अग्रवाल और अटल नेहुल अग्रवाल मिलकर कर रहे हैं. यह उनका दूसरी पीढ़ी द्वारा निभाया जा रहा “प्रकृति प्रेम” है. दीपू अग्रवाल कहते हैं, “हमारे लिए यह कोई बड़ा काम नहीं है, लेकिन इन पक्षियों के लिए यह जीवनदान है.”

कोई मांगे या न मांगे, हम दे देते हैं
पुलकित अग्रवाल बताते हैं कि गर्मियों की शुरुआत होते ही वे सकोरे स्टोर में सजा देते हैं, जो भी पशु-प्रेमी आता है, वह खुद ही पूछ लेता है – “भैया सकोरे हैं?” और वे बिना किसी पैसे लिए, मुस्कुराकर उन्हें दे देते हैं. कई बार खुद ही आसपास के मोहल्लों में जाकर सकोरे बांट आते हैं.

आज भी कई घरों में हैं इनके दिए हुए सकोरे
खंडवा के कई घरों में आज भी उनके द्वारा दिए गए सकोरे रखे हैं. हर साल जैसे ही गर्मी आती है, लोग उन सकोरों को साफ कर दोबारा इस्तेमाल में लाते हैं. यह केवल एक बर्तन नहीं, बल्कि इस परिवार के सेवा भाव का प्रतीक बन चुके हैं.

चिड़िया को बचाना भी उद्देश्य
दीपू कहते हैं कि आज के समय में खासकर चिड़ियों की संख्या तेजी से घट रही है. पहले जो चहचहाहट सुनाई देती थी, अब वह शहरों से गायब होती जा रही है. हम चाहते हैं कि कम से कम एक छोटी कोशिश हो, ताकि ये सुंदर पक्षी लौटें और जिंदा रहें. पुलकित अग्रवाल, जो इस सेवा का भविष्य संभाल रहे हैं, कहते हैं कि वे चाहते हैं यह परंपरा आगे भी जारी रहे. यह केवल परंपरा नहीं है, यह जिम्मेदारी है. जब हम प्रकृति से इतना कुछ लेते हैं, तो कुछ लौटाना भी चाहिए.

About the Author

Seasoned journalist Dallu Slathia brings over 5 years of expertise in digital media, leading coverage across 4 states for Local18- MP, Jharkhand, Himachal Pradesh and Haryana. Her experience in digital journalism includes crafting impactful stories across diverse topics - Politics, Health, Astro, Local stories, Agri and Food. Stay informed with Dallu Slathia's insightful journalism at Local18. Reach her at Dallu.Slathia@nw18.com or @dalluslathia1 on X.
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खंडवा: यह परिवार 15 साल से पिला रहा बेजुबानों को पानी, गर्मी में बांटता सकोरे
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