SC में धारा 377 का समर्थन कर सकती है केंद्र सरकार, एटॉर्नी जनरल ने दिए संकेत
एटॉर्नी जनरल ने कहा, 'उस वक़्त सरकार ने समलैंगिकता का समर्थन किया था. लेकिन अब मुझे बताया गया है कि सरकार की राय अलग है.'
समलैंगिक संबंधों को अपराध की श्रेणी में रखने वाली धारा 377 पर सुप्रीम कोर्ट में मंगलवार से बहस शुरू हो चुकी है. इस बहस से एटॉर्नी जनरल केके वेणुगोपाल ने खुद को अलग कर लिया है. इतना ही नहीं उन्होंने संकेत दिए हैं कि केंद्र सरकार समलैंगिता को मान्यता देने का विरोध कर सकती है.

समाचार एजेंसी एएनआई के दिए बयान में वेणुगोपाल ने कहा कि वह इस मामले में केंद्र सरकार का पक्ष नही रखेंगेय. उन्होंने इसकी वजह बताते हुए कहा कि इससे पहले वह इसी मामले में दाखिल क्यूरेटिव पिटीशन में केंद्र सरकार की तरफ से बहस कर चुके हैं.
एटॉर्नी जनरल ने कहा, 'उस वक़्त सरकार ने समलैंगिकता का समर्थन किया था. लेकिन अब मुझे बताया गया है कि सरकार की राय अलग है. ऐसे में मैं इस केस में बहस नहीं कर सकता हूं.'
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वेणुगोपाल के इस बयान से यही संकेत मिल रहे हैं कि केंद्र सरकार धारा 377 का समर्थन कर सकती है. यानी वह समलैंगिक संबंधों को अपराध की श्रेणी में बनाए रखने का समर्थन कर सकती है. केंद्र सरकार ने 9 जुलाई को सुनवाई आगे बढ़ाने की अपील की थी, सरकार ने कहा था कि अपनी राय रखने के लिए उसे अधिक वक्त की आवश्यकता है. हालांकि सुप्रीम कोर्ट ने यह अपील खारिज कर दी थी.
सुनवाई के पहले दिन नरेंद्र मोदी सरकार का रुख कोर्ट में पेश नहीं किया गया है. एडिशनल सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कोर्ट में अपना पक्ष रखने के लिए थोड़ा और समय मांगा है. इस मामले में वरिष्ठ अधिवक्ता और पूर्व एटॉर्नी जनरल मुकुल रोहतगी धारा 377 के खिलाफ अपील करने वाले याचिकाकर्ताओं की तरफ से बहस कर रहे हैं.