ब्लास्ट से ठीक पहले राजीव गांधी ने सुरक्षा में तैनात अधिकारी से कही थी यह बात
अनुसुया ने कहा, 'पूर्व प्रधानमंत्री की हत्या के बाद भी दोषी जेल में खुशहाल तरीके से जी रहे हैं. क्या किसी ने इस घटना में अपने परिजनों को खोने वाले लोगों के बारे में कुछ सोचा है? अगर वह जेल से छूट गए और यदि इस मामले में चश्मदीदों का कत्ल कर दिया तो? वह अपराधी हैं.'
पूर्णिमा मुरली

सब इंस्पेक्टर अनुसुया डेजी के लिए 21 मई 1991 की सुबह बाकी दिनों की तरह ही था. उन्हें पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी के कार्यक्रम में भीड़ को नियंत्रित करने के लिए तैनात किया गया था. राजीव, तमिलनाडु स्थित श्रीपेरम्बदूर में एक चुनावी रैली के लिए पहुंचने वाले थे. पूर्व प्रधानमंत्री की दाईं और खड़ी रही अनुसुया ब्लास्ट के कुछ सेकेंड्स के पहले यह नहीं जानती थीं अगले कुछ मिनटों में क्या होने वाला है. LTTE की महिला सुसाइड बॉम्बर ने जैसे बटन दबाया उसके तुरंत बाद एक आवाज हुई जो अनुसुया के कानों में तेजी से पहुंची.
विस्फोट में डेजी की जान तो बच गई लेकिन वह गंभीर रूप से घायल हो गई थीं. उन्होंने बाएं हाथ की दो उंगलियों को खो दिया. अब रिटायर हो चुकी पुलिस अधिकारी डेजी अभी भी इस घटना से उबर नहीं पाई हैं.
डेजी को उस दिन की हर एक छोटी से छोटी डिटेल याद है. डेजी ने CNN News18 को बताया कि प्रधानमंत्री की सुरक्षा में तैनाती के दौरान बतौर पुलिस अधिकारी उन्होंने देखा कि लोग किस तरह से पूर्व प्रधानमंत्री के करीब जाना चाहते थे. मैंने उनके करीब एक रिंग फेंस बनाने की कोशिश की थी.
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डेजी याद करती हैं, 'एक जगह राजीव सर ने मुझे इशारा दिया कि मैं उन्हें पीछे न ढकेलूं. मैं उनकी दाईं ओर पहुंची और मैंने अपना संतुलन खो दिया जिसके चलते मेरी पुलिस की कैप गिर गई. उन्होंने मेरे कंधे पर थपकी दी और कहा- निश्चिंत रहें. मैं इस बात से खुश थी कि राजीव गांधी ने मुझसे बात की. फिर मैं मुस्कुराई. इसके तुरंत बाद एक लड़की जिसने खुद को कोकिला बताया वह बात करने लगी. वह कोकिला को सुन रहे थे. अचानक एक बड़ा ब्लास्ट हुआ.'
डेजी ने कहा, 'इसके बाद मुझे लगा जैसे मेरे पूरे शरीर में आग लग गई है. मुझे नहीं पता था कि क्या हुआ है लेकिन मैंने सोचा कि मैं मर जाउंगी. मुझे लगता है कि कुछ सेकंड बाद मैंने अपना सिर उठाया और मुझे आश्चर्य हुआ कि क्या मैं जिंदा थी. मुझे एहसास हुआ कि मैं वास्तव में जिंदा थी, मैं दर्द से चिल्लाई और मदद मांगी. मुझे नहीं पता था कि क्या हो रहा था.'
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डेजी की जिन्दगी की जंग कुछ समय बाद शुरू हुई. उन्होंने बताया, 'मैं उठने की कोशिश कर रही थी लेकिन पैर नहीं हिला पा रही थी. मुझे लग रहा था कि मैं धीमे-धीमे मर रही हूं. मैं पानी के लिए चिल्लाई. मुझे लगता है कि एक सब इंस्पेक्टर मेरे पास आया और मुझे पानी दिया. मैं बुरी तरह से घायल थी और पानी नहीं पी सकती थी. मेरा शरीर सुन्न हो गया था, मेरी वर्दी जल गई थी. मेरा काफी खून बह गया था. मैं नहीं जानती थी कि मेरे आस-पास मौजूद लोगों को क्या हुआ.'
दर्द इतना असहनीय था कि अनुसुया अपने जीवन को खत्म करने के लिए चिल्लाने लगी. उन्होंने बताया, 'मैं चिल्लाई, मुझे मार दो, मैं दर्द बर्दाश्त नहीं कर सकती. जब लोग मुझे उठाने की कोशिश करने लगे, तो मुझे लगा कि मैंने अपना बायां हाथ खो दिया है. पुलिस अधिकारी मुझे एक वैन में ले गए और लेकिन मैं बैठने में सक्षम नहीं थी. बहुत से और भी घायल उसी वैन में लाए गए जहां मुझे लिटाया गया था. हमें श्रीपेरम्बदूर के एक सरकारी अस्पताल ले जाया गया. मैं आधी बेहोशी की हालत में थी. मुझे याद है मैंने वार्ड में टीके राजेंद्रन (तब पुलिस अधीक्षक) को देखा. मैंने उनकी बेल्ट पकड़ी और उन्हें मेरे साथ ही रहने के लिए कहा.'
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इसके बाद किसी ने कहा, 'ब्लेड ले लो. फिर मुझे नहीं याद कि मेरे साथ क्या हुआ. इसके बाद मुझे चेन्नई स्थित सरकारी अस्पताल में शिफ्ट किया गया. मुझे याद है कि डॉक्टर कह रहे थे कि मेरे बाएं हाथ को काट देना चाहिए. डॉक्टर ने मुझे बाद में बताया कि मेरी दो उंगलिया काट दी गई हैं. रिंग फिंगर लटक रही थी उसे निकालने के लिए डॉक्टर ने प्लास्टिक सर्जरी की. अगले दिन मैंने देखा कि मेरे पूरे शरीर में छाले निकल आए हैं. मुझे नहीं याद है कि मैंने अपने पति को देखे बिना कितने दिन अस्पताल में बिताए. कई CBI के अधिकारी केस की जांच करने आए. मैंने उन्हें वह सब बता दिया जो मैंने 21 मई 1991 को देखा.'
अनुसुया को कुछ समय बाद छुट्टी दी गई लेकिन दर्द कई महीनों तक नहीं गया क्योंकि बम से छर्रों ने उनका शरीर पूरी तरह से छिल गया था. उन्होंने बताया, 'मैं पार्ट टाइम पर ड्यूटी करने लगी लेकिन फिर से छाती का दर्द शुरू हो गया. मैंने सोचा कि मुझे कैंसर हो गया जिसके बाद हम एक निजी अस्पताल गए. डॉक्टर ने मुझे बताया कि मेरी बाएं छाती में पांच-छः छर्रे थे. शरीर के विभिन्न हिस्सों से छर्रों को हटाने के लिए मेरे कई ऑपरेशन किए गए.'
उन्होंने कहा है कि छाती के बाएं हिस्से में चोटों का असर इतना गंभीर था कि अभी भी कई बार दर्द उठता है. अनुसुया ने कहा, 'चूंकि मेरी बाएं हाथ की दो उंगलियां कट चुकी है मैंने दायें हाथ का उपयोग ज्यादा करना शुरू कर दिया जिसके चलते वहां भी दर्द होने लगा. अब मेरे पास दर्द को सहने के अलावा कोई और चारा नहीं है.'
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उस दिन के 27 साल बीत जाने के बाद विस्फोट में अपने प्रियजनों को खोने वाले अन्य परिजन का कहना है कि राजीव गांधी हत्याकांड में सातों दोषियों को सख्त सजा दी जाए. अनुसुया ने कहा, 'जिन लोगों ने इस हत्या की साजिश रची उन्हें फांसी दी जानी चाहिए. पूर्व प्रधानमंत्री की हत्या के बाद भी दोषी जेल में खुशहाल तरीके से जी रहे हैं. क्या किसी ने इस घटना में अपने परिजनों को खोने वाले लोगों के बारे में कुछ सोचा है? यह एक योजनाबद्ध हत्या थी और हत्या के पहले रेकी की गई थी. अगर वह जेल से छूट गए और यदि इस मामले में चश्मदीदों का कत्ल कर दिया तो? वह अपराधी हैं.'
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