बार-बार टूट जाती थी गांव की सड़क, बारिश होते ही हो जाता था गायब, ग्रामीणों ने यूं बदल दी तस्वीर!
करौली में रहने वाले एक गांव के लोग जब सड़क ना होने की वजह से परेशान हुए तो इसका अनोखा समाधान निकाला. सरकार को कोसने और शिकायत करने की जगह उन्होंने खुद ही तीन किलोमीटर लंबी सड़क बनाने का फैसला किया.
राजस्थान के करौली जिले के श्रीमहावीरजी, हिण्डौन उपखंड के नीमकापुरा और बदनपुरा गांवों के ग्रामीणों ने एक ऐसी मिसाल कायम की है, जो न केवल प्रेरणादायक है बल्कि प्रशासनिक उदासीनता पर करारा तमाचा भी है. कोटरा ढहर से नीमकापुरा तक करीब 3 किलोमीटर लंबी सड़क की बदहाल स्थिति से तंग आकर ग्रामीणों ने स्वयं निर्माण का बीड़ा उठाया. कई बार अधिकारियों और जनप्रतिनिधियों से गुहार लगाने के बावजूद कोई सुनवाई न होने पर करीब 150 परिवारों ने मिलकर 5 लाख रुपये का चंदा जुटाया और JCB, ट्रैक्टर-ट्रॉली जैसे अपने संसाधनों से सड़क को समतल करने का काम शुरू किया. यह पहल ग्रामीण एकता और आत्मनिर्भरता की जीवंत कहानी है, जो देश के अन्य गांवों के लिए प्रेरणा बन सकती है.

ग्रामीणों ने बताया कि कोटरा ढहर से नीमकापुरा तक की सड़क वर्षों से जर्जर थी. बारिश में कीचड़ और गड्ढों के कारण आवागमन लगभग असंभव हो जाता था. बच्चों को स्कूल, मरीजों को अस्पताल और किसानों को बाजार तक पहुंचने में भारी परेशानी होती थी. स्थानीय निवासी परमाल पटेल ने कहा, “हमने कई बार अधिकारियों और जनप्रतिनिधियों से सड़क निर्माण की मांग की लेकिन हर बार आश्वासन के सिवा कुछ नहीं मिला. आखिरकार, हमने खुद ही सड़क बनाने का फैसला किया.” ग्रामीणों ने एकजुट होकर चंदा इकट्ठा किया, जिसमें हर परिवार ने अपनी सामर्थ्य के अनुसार योगदान दिया. इस राशि से JCB और ट्रैक्टर-ट्रॉली किराए पर लिए गए और ग्रामीणों ने स्वयं श्रमदान कर सड़क को समतल करने का काम शुरू किया.
सड़कें थी बेहाल
यह पहल इसलिए भी खास है क्योंकि यह ग्रामीण भारत में बुनियादी सुविधाओं की कमी और प्रशासनिक लापरवाही को उजागर करती है. उत्तराखंड की “मेरा गांव मेरी सड़क” योजना जैसे सरकारी प्रयासों के बावजूद, कई गांवों में सड़क जैसी मूलभूत सुविधाएं अभी भी सपना है. नीमकापुरा और बदनपुरा के ग्रामीणों ने न केवल अपनी समस्या का समाधान निकाला बल्कि सामुदायिक सहयोग की ताकत को भी प्रदर्शित किया. सड़क निर्माण में शामिल एक ग्रामीण, रामलाल ने बताया, “हमने दिन-रात मेहनत की. बच्चे, बुजुर्ग और युवा सभी ने साथ दिया. अब सड़क बनने से स्कूल और बाजार जाना आसान हो जाएगा.”
ग्रामीणों ने बदली सूरत
इस पहल ने स्थानीय समुदाय में नई उम्मीद जगाई है. सड़क के समतल होने से न केवल आवागमन सुगम होगा बल्कि किसानों को अपनी उपज बाजार तक ले जाने में भी आसानी होगी. एक अन्य ग्रामीण, लक्ष्मी देवी ने कहा, “पहले बारिश में रास्ता इतना खराब हो जाता था कि मरीजों को चारपाई पर उठाकर अस्पताल ले जाना पड़ता था. अब यह सड़क हमारी जिंदगी बदल देगी.” हालांकि, ग्रामीणों ने यह भी मांग की है कि प्रशासन अब इस सड़क को पक्का करने और रखरखाव के लिए कदम उठाए ताकि उनका प्रयास लंबे समय तक टिकाऊ रहे.
कई जगहों पर होती है परेशानी
यह घटना राजस्थान और देश के अन्य हिस्सों में ग्रामीण विकास की चुनौतियों को रेखांकित करती है. हाल के वर्षों में कई गांवों में ग्रामीणों ने स्वयं सड़क, पुल, या स्कूल जैसी सुविधाएं बनाई हैं, जब सरकार ने उनकी मांगों को अनसुना किया. उदाहरण के लिए, मध्य प्रदेश के कुछ गांवों में ग्रामीणों ने चंदा जुटाकर स्कूल बनाए और उत्तराखंड में समुदायों ने सड़क निर्माण के लिए श्रमदान किया. ये प्रयास सरकार की ग्रामीण विकास योजनाओं, जैसे मनरेगा की कमियों को उजागर करते हैं, जहां निधि आवंटन के बावजूद कार्यान्वयन में देरी होती है.