GK: कौन सी है सीरिया की वह मस्जिद, जिसके बारे में कहा जाता है कि वहां आएंगे ईसा मसीह
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सीरिया के दमिश्क शहर में दुनिया का सबसे पुरानी कही जाने वाली मस्जिद उमय्यद मस्जिद है जिसे ग्रेट मॉस्क ऑफ डेमास्कस भी कहा जाता है. इस मस्जिद को मस्लिमों के साथ साथ ईसाईयों की भी गहरा कनेक्शन है और यह स्थान याद दिलाता है कि कैसे दोनों धर्म जुड़े हुए हैं.
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सीरिया की राजधानी दमिश्क में इन दिनों देश के भविष्य की नींव रखी जा रही है. हाल ही में हुए तख्तापलट के बाद ये हालात पैदा हुए हैं. वैसे तो सीरिया और दमिश्क भी काफी हद तक गृहयुद्ध के कारण पैदा हुई मानवीय समस्याओं के लिए जाना जाता है. लेकिन दमिश्क शहर कई अनूठी बातों के लिए भी जाना जाता है इनमें से शहर का एक आकर्षक पहलू है यहां की उमय्यद मस्जिद. यह दुनिया की सबसे पुरानी और सबसे बड़ी मस्जिदों में से एक बताई जाती है. लेकिन इसके अलावा भी यह मस्जिद कई कारणों से खास है. (प्रतीकात्मक तस्वीर: Wikimedia Commons)
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दमिश्क की तरह उमय्यद मस्जिद का भी लंबा इतिहास रहा है. जी हां, इस्लाम से पहले ही यह जगह एक पूजा स्थल थी और इस्लाम के आने पर यहां मस्जिद बनाई गई जो समय समय पर नए निर्माण और मरम्मत के कारण और ज्यादा निखरती गई. 20 वीं और 21वीं सदी में भी इसके कुछ हिस्से बनाए गए या उनकी मरम्मत की गई थी. इसकी दीवार एक समय रोमन मंदिर का हिस्सा थीं. (प्रतीकात्मक तस्वीर: Wikimedia Commons)
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उमय्यद मस्जिद दमिश्क की शान है. इसे ग्रेट मॉस्क ऑफ डेमास्कस यूं ही नहीं कहा जाता है. यह पुराने दमिश्क शहर में मौजूद दुनिया की सबसे बड़ी मस्जिदों में से एक भी है. यह एक खूबसूरत जगह भी है जिसे देखने भी लोग आते हैं और दिन में यहां खूब भीड़ भी होती है. इसे दमिश्क की खास जगह भी माना जाता है. पुरातन पूजा स्थल होने के कारण भी इसका महत्व है. हजरत याह्या या जॉन द बैप्टिस्ट से भी संबंधित होने के कारण ईसाई भी यहां आते हैं. (प्रतीकात्मक तस्वीर: Wikimedia Commons)
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एक पूरी तरह से इस्लामिक मस्जिद होने के बाद भी यहां एक मीनार ऐसी है जिसे ईसा की मीनार कहा जाता है. यह मस्जिद के पूर्व हिस्से में बनी है. इसे 9वीं सदी में अब्बासिदों ने बनावाया था लेकिन इसका ऊपरी हिस्सा ओटोमन शासकों ने बनवाया था. इस्लामिक मान्यता है कि ईसा मसीह दुनिया के आखिरी दिन पृथ्वी पर जन्नत से इसी मीनार के जरिए आएंगे. (प्रतीकात्मक तस्वीर: Wikimedia Commons)
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कम लोग जानते हैं कि उम्मयद मस्जिद जहां बनी है वह पहले भी एक धार्मिक स्थल ही था. लौह युग से यह एक पूजाघर माना जाता था. बाद में इसे अर्मेनियन ने बारिश के भगवान का मंदिर बनाया और 64 ईस्वी में इसे रोमन शासन के दौरान बृहस्पति देवता का पूजा स्थल बना दिया गया जो रोमन मिथकों में बारिश के देवता थे. फिर चौथी सदी में इसे एक बड़ा गिरजा बना दिया गया था.जो 8वीं सदी में मस्जिद बन गया. (प्रतीकात्मक तस्वीर: Wikimedia Commons)
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एक पूरी तरह से इस्लामिक मस्जिद होने के बाद भी यहां एक मीनार ऐसी है जिसे ईसा की मीनार कहा जाता है. यह मस्जिद के पूर्व हिस्से में बनी है. इसे 9वीं सदी में अब्बासिदों ने बनावाया था लेकिन इसका ऊपरी हिस्सा ओटोमन शासकों ने बनवाया था. इस्लामिक मान्यता है कि ईसा मसीह दुनिया के आखिरी दिन पृथ्वी पर जन्नत से इसी मीनार के जरिए आएंगे. (प्रतीकात्मक तस्वीर: Wikimedia Commons)
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8वीं सदी में 705 से 715 ईस्वी के बीच उमय्यद खलीफा अल वालिद 1 ने 9 साल में ही बनवा दिया था. इस पर काफी खर्चा कर बहुत ही आलीशान मस्जिद के तौर पर बनाया गया था जो कि इसके प्रवेश द्वार पर बने मेहराब से साफ झलकता है. यह मस्जिद भी मदीना के एक मदीना पर हजरत मोहम्मद को समर्पित मस्जिद पर आधारित थी. लेकिन उमय्यद युग के बाद भी इसमें अलग अलग हिस्से जुड़ते रहे या उनमें मरम्मत होती रही. (प्रतीकात्मक तस्वीर: Wikimedia Commons)
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First Published :
December 09, 2024, 12:21 IST