Bhojpuri में पढ़ें: ठेकेदार से उपन्यासकार कइसे बनलन बाबू देवकीनंदन खत्री? जानीं
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Agency:News18Hindi
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न परिवार क पृष्ठभूमि न लेखन क कवनो अनुभव. अचानक खेल खेल में कलम चलल त ठेकेदार साहब महान उपन्यासकार बनि गइलन. ’चंद्रकांत’ जइसन किताब छपि के बजारी में आइल त पूरा हिंदी साहित्य जगत हिलि उठल. केहूं के मर्चा लगल, त केहूं के आह निकलल. लेकिन पाठकन के मुंहे से खाली वाह वाह. बनारस क बाबू देवकीनंदन खत्री रातों रात लेखन के दुनिया क सितारा बनि गइलन.

देवकीनंदन खत्री क जनम 29 जून, 1961 के मुजफ्फरपुर में अपने नन्ना के इहां भयल रहल. खत्री क पूर्वज पंजाब के लाहौर क मूल निवासी रहलन. लेकिन महाराजा रणजीत सिंह क लड़िका शेरसिंह के शासनकाल में देवकीनंदन क पिता लाला ईश्वरदास काशी आइ के लाहौरी टोला में बसि गयल रहलन. लाहौरी टोला वाला देवकीनंदन क पैत्रिक हवेली अब इतिहास बनि चुकल हौ. विश्वनाथ धाम के निर्माण में पूरा लाहौरी टोला ध्वस्त कइ देहल गयल. पंजाब के लाहौर से तमाम लोग काशी में गंगा किनारे आइ के बसि गयल रहलन. एही के नाते महल्ला का नाव लाहौरी टोला पड़ि गयल रहल.
देवकीनंदन क शुरुआती पढ़ाई-लिखाई अपने नन्ना के ही इहां उर्दू, फारसी माध्यम में भइल रहल. नन्ना क गया जिला के टिकारी स्टेट में बड़ा व्यवसाय रहल. देवकीनंदन भी बड़ा भइले पर नन्ना के व्यवसाय में हाथ बंटावय लगलन. टिकारी में ही काशी नरेश ईश्वरी नारायण सिंह क बहिन बियहल रहलिन. एही नाते ईश्वरी नारायण सिंह से देवकीनंदन क बढ़िया संबंध बनि गयल रहल. टिकारी स्टेट पर जब सरकार क कब्जा होइ गयल तब देवकीनंदन उहां क कारोबार छोड़ि के स्थायीरूप से काशी लउटि अइलन. काशी नरेश ओन्हय चकिया अउर नौगढ़ के जंगलन क ठेका देइ देहलन.
देवकीनंदन जंगल के ठेका से खूब पइसा कमइलन. अपने कमाई से रामापुरा महल्ला में नई हवेली बनवइलन, जवने के देवकीनंदन क हवेली कहल जाला. इ विशाल हवेली आज भी मौजूद हौ. जंगल के ठेकेदारी के दौरान देवकीनंदन के जंगल अउर बीहड़ में घूमय क मौका मिलल. स्वभाव से भी उ घुमक्कड़ अउर मस्तमौला रहलन. एही दौरान चकिया, नौगढ़ में मौजूद तमाम ऐतिहासिक इमारतन के खंडहरन के रहस्य-रोमांच से भी ओनकर परिचय भयल. इलाका के लोगन से तमाम किस्सा-कहानी सुनय के मिलल. देवकीनंदन के ठेकेदारी से ज्यादा मजा इ कुल किस्सा-कहानी में आवय लगल. एही बीच जंगल क ठेका हाथे से निकलि गयल. जनम से व्यापारी संस्कार क देवकीनंदन कमाई बदे एक प्रिंटिंग प्रेस खोललन. लहरी प्रिंटिंग प्रेस आज भी बनारस के रामकटोरा महल्ला में मौजूद हौ. प्रेस क नाव लहरी रखय के पीछे भी ओनकर मौजमस्ती वाला स्वभाव रहल. एही प्रेस से देवकीनंदन 1883 में ’सुदर्शन’ पत्रिका क प्रकाशन भी शुरू कइले रहलन.
प्रिंटिंग प्रेस क कारोबार बढ़िया चलि निकलल. देवकीनंदन क जादा समय खलिहरे में बीतय लगल रहल. बनारसी दोस्तन के साथे पूरा दिन मौजमस्ती, किस्सा-कहानी अउर गप्पबाजी में बीति जाय. एही खलिहरेपन में देवकीनंदन के कुछ लिखय क सूझल. ओन्हय खुद भी पता नाहीं कि उ का लिखत हउअन. बस लिखय लगलन. जवन किस्सा-कहानी चकिया-नौगढ़ में सुनले रहलन, ओही में मिर्च-मसाला लगाइ के अपने कल्पना क संसार रचय लगलन. दिन भर जेतना लिखय, अगले दिना छपय बदे प्रेस में चलि जाय. कई दइयां प्रेस क कर्मचारी आइ के बोलय कि सामग्री कम पड़त हौ. देवकीनंदन तुरंतय एक-दुइ पन्ना लिखि के थमाइ देयं. पहिले क छपाई टेªडिल मशीन पर होय. छपाई से पहिले पूरा सामग्री सांचा पर कंपोज कयल जाय. कंपोज करय वाली इ प्रक्रिया में बहुत समय लगय.
रोज-रोज क लिखाई जब छपि के पूरा तइयार भयल त मोट क किताब बनि गयल. देवकीनंदन किताबी क नाव रखलन ’चंद्रकांता’. एह तरे 1888 में ’चंद्रकांता’ चार भाग में छपि के बजारी में आयल. ’चंद्रकांता’ तिलिस्म अउर अय्यारी क अइसन कथा रहल, जवन पाठक के मन पर एक कथा-चित्र तइयार करय. जे भी किताब पढ़य शुरू करय, उ कथा-चित्र में एह तरे भुलाइ जाय कि ओहके आपन तक सुध न रहय. खाना-पीना, नींद सब गायब होइ जाय. कई लोग त लगातार दिन-रात बिना खइले-पियले, बिना नींद लेहले ’चंद्रकाता’ पढ़त रहि गइलन. एकर अंदाजा पदुमलाल पुन्नालाल बख्शी के टिप्पणी से लगयला -’’वह चंद्रकांता का युग था. वर्तमाल युग के पाठक उस युग की कल्पना नहीं कर सकते जब देवकीनंदन खत्री के मोहजाल में पड़कर हम लोग सचमुच निद्रा और क्षुधा छोड़ बैठे थे.’’
ओह जमाने में उर्दू-फारसी पढ़य-लिखय क चलन रहल. हिंदी क ज्ञान बहुत कम लोगन के रहल. लेकिन ’चद्रकांता’ के लेइके जिज्ञासा एतना रहल कि हर कोई पढ़य-सुनय चाहत रहल. एह से उपन्यास क जगह-जगह पाठ होवय लगल. हर जगह सुनवइयन क भीड़ उमड़ि पड़य. ’चंद्रकांता’ बोलचाल वाली सरल हिंदी में लिखल किताब रहल. लोगन के आसानी से समझि में आइ जाय. ’चंद्रकांता’ क जादू सबसे कपारे पर चढ़ि के बोलय लगल. तमाम लोग खाली ’चंद्रकांता’ पढ़य बदे हिंदी सीखलन. ’चंद्रकांता’ हिंदी उपन्यास लेखन में तिलिस्म अउर अय्यारी क एक नया शिल्प लेइ के आयल, एक विशाल पाठक संसार खड़ा कइलस. बड़ा-बड़ा साहित्यकार दंग रहलन. कई साहित्यकारन के देवकीनंदन अउर ’चंद्रकांता’ के सफलता से जलन भी होवय लगल. उ देवकीनंदन क कड़ी आलोचना करय लगलन. इहां तक कि हिंदी क हत्या करय तक क ओनकरे उप्पर आरोप लगल. लेकिन आरोप-प्रत्यारोप से बेखबर देवकीनंदन ’चंद्रकांता’ के सफलता के बाद ’चंद्रकांता संतति’ लिखलन. ’चंद्रकांता संतति’ अउर लोकप्रिय भयल. दूनों उपन्यास मिलाइ के कुल 2000 पृष्ठ क रहल. ’चंद्रकांता संतति’ क 24 भाग प्रकाशित भयल. एकरे बाद भी देवकीनंदन ’नरेंद्र मोहनी’, ’कुसुम कुमारी’, ’वीरेंद्र वीर’, ’कटोरा भर खून’, ’काजर की कोठरी’, ’लैला-मजनू’, ’गुप्त गोदना भाग-1’, ’नौलखा हार’, ’अनूठी बेगम’, अउर ’भूतनाथ’ जइसन उपन्यास लिखलन. ’भूतनाथ’ क छह भाग ही लिखि पइले रहलन कि एक अगस्त, 1913 के देवकीनंदन क कमय उमर में अकस्मात निधन होइ गयल. उपन्यास क बाकी 15 भाग ओनकर लड़िका दुर्गाप्रसाद खत्री लिखि के पूरा कइलन.
देवकीनंदन खत्री क पूरा रचना संसार आम पाठक बदे रहल. साहित्यिक परंपरा अउर पैमाना से ओनकर कवनो लेना-देना नाहीं रहल. उ अपने लेखन के माध्यम से हिंदुस्तानी के जन-जन तक पहुंचावय क काम कइलन. इहय कारण रहल कि उपन्यासकार वृंदावनलाल वर्मा ओन्हय हिंदी क ’शिराजी’ कहले रहलन.
(सरोज कुमार स्वतंत्र पत्रकार हैं, आलेख में लिखे विचार उनके निजी हैं.)
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सरोज कुमार पिछले पच्चीस वर्षों से लेखन और पत्रकारिता से जुड़े हुए हैं.
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