क्या 2020 के बिहार विधानसभा चुनाव में विकास पर हावी होगा जातिवाद का मुद्दा ?
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Agency:News18 Bihar
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बिहार में राष्ट्रीय जनता दल को यादवों की पार्टी कहा जाता है और इसका समर्थन मुसलमान भी करते हैं वहीं सत्तारूढ़ दल जनता दल यूनाइटेड की बात करें तो इसे कुर्मी-कोइरी जाति की पार्टी कहा जाता है.

पटना. क्या दिल्ली चुनाव के बाद दो हजार बीस में होने वाले बिहार विधानसभा चुनाव (Bihar Assembly Election) में भी विकास का मुद्दा हावी रहेगा या फिर बिहार में इस बार भी ट्रेडीशनल तरीके से ही यानी जात-पात के आधार पर ही मतदान होगा. हम ऐसा इसलिए कह रहे है क्योंकि बिहार के प्रमुख राजनीतिक दलों की तैयारी अभी भी ट्रेडीशनल ही है.
"क्यों है बिहार में जाति का महत्व"
पहले आपको बताते हैं कि बिहार की राजनीति में जाति का महत्व क्यों है. दरअसल बिहार में अगर भाजपा और कांग्रेस जैसी राष्ट्रीय पार्टी को छोड़ अन्य क्षेत्रीय राजनीतिक दलों की बात करें तो राष्ट्रीय जनता दल को यादवों की पार्टी कहा जाता है और इसका समर्थन मुसलमान भी करते हैं. इसका वोट बैंक भी एमवाई समीकरण यानी मुस्लिम-यादव का ही माना जाता है वहीं सत्तारूढ़ दल जनता दल यूनाइटेड की बात करें तो इसे कुर्मी-कोइरी जाति की पार्टी कहा जाता है. इसकी आबादी बिहार में लगभग आठ से नौ फीसदी है वहीं 17 फीसदी दलितों की आबादी पर रामविलास पासवान की लोक जनशक्ति पार्टी और पूर्व मुख्यमंत्री जीतन राम मांझी की हिन्दुस्तानी अवाम मोर्चा ने नजरें गड़ा रखी हैं. इसके अलावा पूर्व केन्द्रीय मंत्री उपेन्द्र कुशवाहा भी कुशवाहा जाति की राजनीति कर रहे हैं. इसकी आबादी बिहार में करीब चार फीसदी है यानी हम कह सकते है कि बिहार में विकास के साथ-साथ जात को साधना भी राजनीतिक महत्व रखता है,ऐसा सभी राजनीतिक दल भी मानते है.
"भाजपा ने कहा - नरेन्द्र मोदी के विकास ने तोड़ दी जातिवाद की कमर"
अब अगर बात करें इन पार्टियों की तो चुनावी वर्ष में भी बिहार के राजनीतिक दल के सांगठनिक चुनाव तक पूरे नही हुए हैं. भाजपा जैसी राष्ट्रीय पार्टी की प्रदेश कमिटी तक नहीं बनी है. बताया गया है कि कुछ दिन में ही प्रदेश भाजपा कमिटी बन कर तैयार हो जायेगी. चुकि चुनावी वर्ष है इसलिए कमिटी में भी जातियों का ध्यान रखा जा सकता है. भाजपा प्रवक्ता प्रेम रंजन पटेल ने कहा कि बिहार में पिछले पन्द्र वर्षों से चुनाव विकास के मुद्दे पर ही हो रहे हैं. बिहार में भाजपा-जदयू की सरकार नीतीश कुमार के नेतृत्व में विकास की नहीं गाथा लिखी है. उन्होंने कहा कि बिहार में विकास की वजह से जातपात का मिथक तोड़ चुकी है.
2015 के विधानसभा चुनाव में किस पार्टी को मिला कितना वोट
1.NDA-कुल वोट 33 प्रतिशत था जिसमें भाजपा को 24.4, लोक जनशक्ति पार्टी को 4.8, राष्ट्रीय लोक समता पार्टी को 2.4 और हिन्दुस्तानी आवाम मोर्चा को 2.2 प्रतिशत वोट मिल थे. UPA की बात करें तो यूपीए का कुल वोट 43 प्रतिशत था जिसमें राष्ट्रीय जनता दल को 18.4, जदयू को 16.8 और कांग्रेस को 6.7 प्रतिशत वोट मिले थे.
2015 में लालू के साथ रहे नीतीश इस बार भाजपा के साथ
पिछली बार यानी 2015 में लालू प्रसाद के साथ मिलकर विधानसभा चुनाव लड़ने वाले नीतीश कुमार इस बार भाजपा के साथ यानी एनडीए के साथ हैं और 2015 में ही एनडीए में शामिल हिन्दुस्तानी अवाम मोर्चा और उपेन्द्र कुशवाहा की राष्ट्रीय लोक समता पार्टी अब महागठबंधन यानी कांग्रेस और राजद के साथ खड़े हैं. कांग्रेस का भी कहना है कि कांग्रेस की जो प्रदेश कमिटी बनेगी उसमें सभी वर्ग का ध्यान रखा जाएगा. कांग्रेस के नेता राजेश राठौर ने कहा कि वैसे तो कांग्रेस जाति की नहीं बल्कि जमात की राजनीति करती है लेकिन जब कांग्रेस प्रदेश कमिटी का गठन होगा तो उसमें सभी वर्गों को शामिल किया जाएगा.
राजद बनी संगठन में आरक्षण लागू करने वाली पहली पार्टी
दरअसल पिछले चौदह साल से सत्ता पर काबिज नीतीश कुमार को पता है कि सत्ता जातीय गोलबंदी से ही मिलती है. चुकि जदयू के पास यह आंकड़ा नहीं है इसलिये भाजपा से अलग होने के बाद उन्हें लालू प्रसाद से हाथ मिलाना पड़ा था क्योंकि लालू प्रसाद के पास एमवाई यानि यादव मुस्लिम के मिलाकर तीस(30) प्रतिशत वोट है लेकिन 2015 सत्ता में आने के डेढ़ साल बाद ही नीतीश कुमार को लालू प्रसाद और राजद से मोह भंग हो गया था. राजद नेता मृत्युंजय तिवारी ने कहा कि राजद देश की पहली पार्टी होगी जिसने संगठन में आरक्षण लागू किया है. राजद नेता ने कहा कि राजद को बाकि के राजनीतिक दल मुस्लिम-यादव की पार्टी बताते थे लेकिन सच्चाई यह है कि हमारी पार्टी में सभी वर्ग के लोग शामिल हैं.
जदयू बोला
जदयू का कहना है कि बिहार में जातपात की राजनीति को इगनोर नहीं किया जा सकता लेकिन पिछले पन्द्रह वर्षों में नीतीश कुमार ने बिहार में विकास की जो बयार बहाई है इसके अलावा केन्द्र की मोदी सरकार ने विकास के जो काम किये हैं इसी वजह से 2019 के लोकसभा चुनाव में जात-पातसे उपर उठकर लोगों ने विकास के नाम पर वोट किया था. जदयू नेता राजीव रंजन प्रसाद ने कहा कि बिहार अब जात-पात की राजनीति से उपर उठ चुका है.
जातपात का गुना-भाग या विकास का जोड़ घटाव
बिहार विधानसभा के चुनाव में अभी आठ महीने का वक्त है. आने वाले वक्त में बिहार की राजनीति और परिस्थितियां और भी बदल सकती हैं तो यह देखना भी दिलचस्प होगा कि बिहार के चुनाव में जात-पात का गुणा-भाग चलता है या फिर जैसे जैसे चुनाव के दिन नजदीक आयेगें वैसे एनडीए की ओर से विकास का जोड़ घटाव जनता के सामने पेश किया जाएगा.
ये भी पढ़ें- राजपूत वोटों पर है नीतीश की नजर, चुनावी साल में होगी आनंद मोहन की रिहाई !
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"क्यों है बिहार में जाति का महत्व"
पहले आपको बताते हैं कि बिहार की राजनीति में जाति का महत्व क्यों है. दरअसल बिहार में अगर भाजपा और कांग्रेस जैसी राष्ट्रीय पार्टी को छोड़ अन्य क्षेत्रीय राजनीतिक दलों की बात करें तो राष्ट्रीय जनता दल को यादवों की पार्टी कहा जाता है और इसका समर्थन मुसलमान भी करते हैं. इसका वोट बैंक भी एमवाई समीकरण यानी मुस्लिम-यादव का ही माना जाता है वहीं सत्तारूढ़ दल जनता दल यूनाइटेड की बात करें तो इसे कुर्मी-कोइरी जाति की पार्टी कहा जाता है. इसकी आबादी बिहार में लगभग आठ से नौ फीसदी है वहीं 17 फीसदी दलितों की आबादी पर रामविलास पासवान की लोक जनशक्ति पार्टी और पूर्व मुख्यमंत्री जीतन राम मांझी की हिन्दुस्तानी अवाम मोर्चा ने नजरें गड़ा रखी हैं. इसके अलावा पूर्व केन्द्रीय मंत्री उपेन्द्र कुशवाहा भी कुशवाहा जाति की राजनीति कर रहे हैं. इसकी आबादी बिहार में करीब चार फीसदी है यानी हम कह सकते है कि बिहार में विकास के साथ-साथ जात को साधना भी राजनीतिक महत्व रखता है,ऐसा सभी राजनीतिक दल भी मानते है.
"भाजपा ने कहा - नरेन्द्र मोदी के विकास ने तोड़ दी जातिवाद की कमर"
अब अगर बात करें इन पार्टियों की तो चुनावी वर्ष में भी बिहार के राजनीतिक दल के सांगठनिक चुनाव तक पूरे नही हुए हैं. भाजपा जैसी राष्ट्रीय पार्टी की प्रदेश कमिटी तक नहीं बनी है. बताया गया है कि कुछ दिन में ही प्रदेश भाजपा कमिटी बन कर तैयार हो जायेगी. चुकि चुनावी वर्ष है इसलिए कमिटी में भी जातियों का ध्यान रखा जा सकता है. भाजपा प्रवक्ता प्रेम रंजन पटेल ने कहा कि बिहार में पिछले पन्द्र वर्षों से चुनाव विकास के मुद्दे पर ही हो रहे हैं. बिहार में भाजपा-जदयू की सरकार नीतीश कुमार के नेतृत्व में विकास की नहीं गाथा लिखी है. उन्होंने कहा कि बिहार में विकास की वजह से जातपात का मिथक तोड़ चुकी है.
2015 के विधानसभा चुनाव में किस पार्टी को मिला कितना वोट
1.NDA-कुल वोट 33 प्रतिशत था जिसमें भाजपा को 24.4, लोक जनशक्ति पार्टी को 4.8, राष्ट्रीय लोक समता पार्टी को 2.4 और हिन्दुस्तानी आवाम मोर्चा को 2.2 प्रतिशत वोट मिल थे. UPA की बात करें तो यूपीए का कुल वोट 43 प्रतिशत था जिसमें राष्ट्रीय जनता दल को 18.4, जदयू को 16.8 और कांग्रेस को 6.7 प्रतिशत वोट मिले थे.
2015 में लालू के साथ रहे नीतीश इस बार भाजपा के साथ
पिछली बार यानी 2015 में लालू प्रसाद के साथ मिलकर विधानसभा चुनाव लड़ने वाले नीतीश कुमार इस बार भाजपा के साथ यानी एनडीए के साथ हैं और 2015 में ही एनडीए में शामिल हिन्दुस्तानी अवाम मोर्चा और उपेन्द्र कुशवाहा की राष्ट्रीय लोक समता पार्टी अब महागठबंधन यानी कांग्रेस और राजद के साथ खड़े हैं. कांग्रेस का भी कहना है कि कांग्रेस की जो प्रदेश कमिटी बनेगी उसमें सभी वर्ग का ध्यान रखा जाएगा. कांग्रेस के नेता राजेश राठौर ने कहा कि वैसे तो कांग्रेस जाति की नहीं बल्कि जमात की राजनीति करती है लेकिन जब कांग्रेस प्रदेश कमिटी का गठन होगा तो उसमें सभी वर्गों को शामिल किया जाएगा.
राजद बनी संगठन में आरक्षण लागू करने वाली पहली पार्टी
दरअसल पिछले चौदह साल से सत्ता पर काबिज नीतीश कुमार को पता है कि सत्ता जातीय गोलबंदी से ही मिलती है. चुकि जदयू के पास यह आंकड़ा नहीं है इसलिये भाजपा से अलग होने के बाद उन्हें लालू प्रसाद से हाथ मिलाना पड़ा था क्योंकि लालू प्रसाद के पास एमवाई यानि यादव मुस्लिम के मिलाकर तीस(30) प्रतिशत वोट है लेकिन 2015 सत्ता में आने के डेढ़ साल बाद ही नीतीश कुमार को लालू प्रसाद और राजद से मोह भंग हो गया था. राजद नेता मृत्युंजय तिवारी ने कहा कि राजद देश की पहली पार्टी होगी जिसने संगठन में आरक्षण लागू किया है. राजद नेता ने कहा कि राजद को बाकि के राजनीतिक दल मुस्लिम-यादव की पार्टी बताते थे लेकिन सच्चाई यह है कि हमारी पार्टी में सभी वर्ग के लोग शामिल हैं.
जदयू बोला
जदयू का कहना है कि बिहार में जातपात की राजनीति को इगनोर नहीं किया जा सकता लेकिन पिछले पन्द्रह वर्षों में नीतीश कुमार ने बिहार में विकास की जो बयार बहाई है इसके अलावा केन्द्र की मोदी सरकार ने विकास के जो काम किये हैं इसी वजह से 2019 के लोकसभा चुनाव में जात-पातसे उपर उठकर लोगों ने विकास के नाम पर वोट किया था. जदयू नेता राजीव रंजन प्रसाद ने कहा कि बिहार अब जात-पात की राजनीति से उपर उठ चुका है.
जातपात का गुना-भाग या विकास का जोड़ घटाव
बिहार विधानसभा के चुनाव में अभी आठ महीने का वक्त है. आने वाले वक्त में बिहार की राजनीति और परिस्थितियां और भी बदल सकती हैं तो यह देखना भी दिलचस्प होगा कि बिहार के चुनाव में जात-पात का गुणा-भाग चलता है या फिर जैसे जैसे चुनाव के दिन नजदीक आयेगें वैसे एनडीए की ओर से विकास का जोड़ घटाव जनता के सामने पेश किया जाएगा.
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