जिन्ना और गांधी नहीं, भगत सिंह हैं भारत-पाकिस्तान के साझा हीरो!
Agency:News18Hindi
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भगत ऐसे शख्स थे जिन्हें दोनों देशों में प्यार मिलता है. वो एक ऐसे क्रांतिकारी थे जिनके जितने मुरीद सरहद के इस पार मौजूद हैं उतने ही सरहद के उस पार भी.
शहीद भगत सिंह मोहम्मद अली जिन्ना पाकिस्तान के प्यारे हैं और महात्मा गांधी हिंदुस्तान के. जिन्ना से जितनी नफरत भारत में है, गांधी से उतनी ही पाकिस्तान में. लेकिन भगत ऐसे शख्स थे जिन्हें दोनों देशों में प्यार मिलता है. वो एक ऐसे क्रांतिकारी थे जिनके जितने मुरीद सरहद के इस पार मौजूद हैं उतने ही सरहद के उस पार भी. आज पाकिस्तान का स्वतंत्रता दिवस है, कल भारत का. दोनों की अवाम शहीद-ए-आजम की कुर्बानी को याद कर रही है.
अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी में मोहम्मद अली जिन्ना की एक तस्वीर को लेकर भारत में विवाद चल रहा है. भारत में जिन्ना को भारत के दो टुकड़े कराने का गुनहगार माना जाता है. दूसरी ओर पाकिस्तान में भारत के नायक महात्मा गांधी ‘खलनायक’ हैं. पाकिस्तानी चैनल 'अब तक' टीवी के वरिष्ठ पत्रकार माजिद सिद्दिकी कहते हैं " जैसे हिंदुस्तान की किताबों में मोहम्मद अली जिन्ना की नकारात्मक तस्वीर है वैसे ही पाकिस्तान में महात्मा गांधी की पेश की जाती है. यहां कोई गांधी-नेहरू के बारे में पॉजिटिव नहीं सोच सकता."
पाकिस्तान में गांधी और भारत में जिन्ना के प्रति नफरत
लेकिन शहीद-ए-आजम भगत सिंह को लेकर दोनों देशों की अवाम को यह एहसास है कि जितने वे भारत के हैं उतने ही पाकिस्तान के भी. दोनों देशों की अवाम को जोड़ने के लिए भगत सिंह एक बहाना भी हैं और कड़ी भी. भगत सिंह का जन्म 28 सितंबर 1907 को फैसलाबाद, लायलपुर (वर्तमान में पाकिस्तान) के गांव बंगा में हुआ था. दोनों देशों में इतनी कटुता के बाद भी लोग इन्हें दिल से चाहते हैं. इसलिए वे भारत-पाकिस्तान दोनों के साझा हीरो हैं.
भगत सिंह ने तब अंग्रेजों से लोहा लिया और देश के लिए फांसी पर चढ़ गए जब देश का बंटवारा नहीं हुआ था. इसलिए दोनों देशों में तनाव के बाद भी वह कई जगह भारत-पाकिस्तान की अवाम को जोड़ते नजर आते हैं.
भगत सिंह को 23 मार्च 1931 को उनके साथी राजगुरु व सुखदेव के साथ लाहौर जेल में अंग्रेजों ने फांसी दे दी थी. दुनिया में यह पहला मामला था जब किसी को शाम को फांसी दी गई. वह भी मुकर्रर तारीख से एक दिन पहले.
तब भगत सिंह के उम्र सिर्फ 23 साल थी. उन्हें सेंट्रल असेंबली में बम फेंकने और अंग्रेज अफसर जॉन सैंडर्स की हत्या के आरोप में यह सजा दी गई थी. उनका जन्म और शहादत दोनों आज के पाकिस्तान में हुआ था. इसलिए वहां के लोग उन्हें नायक मानते हैं.
भगत सिंह ने जो डायरी लाहौर जेल लिखी वो अब भारत में है
भगत सिंह मेमोरियल फाउंडेशन पाकिस्तान के प्रमुख इम्तियाज रशीद कुरैशी ने hindi.news18.com से बातचीत में कहा "भारत-पाकिस्तान दोनों भगत सिंह को दोस्ती की बुनियाद बनाएं. वे दोनों देशों के साझा हीरो हैं. जब उन्होंने आजादी के लिए लड़ाई लड़ी तब दोनों मुल्क एक ही थे. हम पाकिस्तान में उन्हें सर्वोच्च सम्मान दिलाने के लिए प्रयासरत हैं."
कुरैशी ने कहा “भगत सिंह आजादी के सिपाही थे और उन्होंने अविभाजित भारत की आजादी के लिए लड़ाई लड़ी थी. इसलिए भगत सिंह की पाकिस्तान में बहुत इज्जत है. हर साल 23 मार्च को भगत सिंह, राजगुरु और सुखदेव की शहीदी दिवस मनाया जाता है."
हालांकि पाकिस्तान में आतंकी और कट्टरपंथी संगठन भगत सिंह के पक्ष में आवाज उठाने का विरोध करते रहे हैं. लेकिन वहां बड़ा तबका भगत सिंह को अपना हीरो मानता है. पाकिस्तान के लोगों ने आखिर लाहौर के शादमन चौक का नाम बदलकर भगत सिंह चौक करवा लिया है. इसके लिए वहां की सिविल सोसायटी ने लड़ाई लड़ी है. हालांकि पाकिस्तान का कट्टरपंथी संगठन जमात-उद-दावा इसके विरोध में था.
ऐसा था भगत सिंह का जीवन
भगत सिंह के प्रपौत्र यादवेंद्र सिंह संधू का कहना है कि वह इस वक्त भारत-पाकिस्तान दोनों की साझी विरासत हैं. हम लोग यहां उन्हें शहीद का दर्जा देने के लिए लड़ रहे हैं तो पाकिस्तान में भी वहां के लोग उन्हें मान-सम्मान दिलाने के लिए लड़ रहे हैं.
अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी में मोहम्मद अली जिन्ना की एक तस्वीर को लेकर भारत में विवाद चल रहा है. भारत में जिन्ना को भारत के दो टुकड़े कराने का गुनहगार माना जाता है. दूसरी ओर पाकिस्तान में भारत के नायक महात्मा गांधी ‘खलनायक’ हैं. पाकिस्तानी चैनल 'अब तक' टीवी के वरिष्ठ पत्रकार माजिद सिद्दिकी कहते हैं " जैसे हिंदुस्तान की किताबों में मोहम्मद अली जिन्ना की नकारात्मक तस्वीर है वैसे ही पाकिस्तान में महात्मा गांधी की पेश की जाती है. यहां कोई गांधी-नेहरू के बारे में पॉजिटिव नहीं सोच सकता."
पाकिस्तान में गांधी और भारत में जिन्ना के प्रति नफरत
लेकिन शहीद-ए-आजम भगत सिंह को लेकर दोनों देशों की अवाम को यह एहसास है कि जितने वे भारत के हैं उतने ही पाकिस्तान के भी. दोनों देशों की अवाम को जोड़ने के लिए भगत सिंह एक बहाना भी हैं और कड़ी भी. भगत सिंह का जन्म 28 सितंबर 1907 को फैसलाबाद, लायलपुर (वर्तमान में पाकिस्तान) के गांव बंगा में हुआ था. दोनों देशों में इतनी कटुता के बाद भी लोग इन्हें दिल से चाहते हैं. इसलिए वे भारत-पाकिस्तान दोनों के साझा हीरो हैं.
भगत सिंह ने तब अंग्रेजों से लोहा लिया और देश के लिए फांसी पर चढ़ गए जब देश का बंटवारा नहीं हुआ था. इसलिए दोनों देशों में तनाव के बाद भी वह कई जगह भारत-पाकिस्तान की अवाम को जोड़ते नजर आते हैं.
भगत सिंह को 23 मार्च 1931 को उनके साथी राजगुरु व सुखदेव के साथ लाहौर जेल में अंग्रेजों ने फांसी दे दी थी. दुनिया में यह पहला मामला था जब किसी को शाम को फांसी दी गई. वह भी मुकर्रर तारीख से एक दिन पहले.
तब भगत सिंह के उम्र सिर्फ 23 साल थी. उन्हें सेंट्रल असेंबली में बम फेंकने और अंग्रेज अफसर जॉन सैंडर्स की हत्या के आरोप में यह सजा दी गई थी. उनका जन्म और शहादत दोनों आज के पाकिस्तान में हुआ था. इसलिए वहां के लोग उन्हें नायक मानते हैं.
भगत सिंह ने जो डायरी लाहौर जेल लिखी वो अब भारत में है
भगत सिंह मेमोरियल फाउंडेशन पाकिस्तान के प्रमुख इम्तियाज रशीद कुरैशी ने hindi.news18.com से बातचीत में कहा "भारत-पाकिस्तान दोनों भगत सिंह को दोस्ती की बुनियाद बनाएं. वे दोनों देशों के साझा हीरो हैं. जब उन्होंने आजादी के लिए लड़ाई लड़ी तब दोनों मुल्क एक ही थे. हम पाकिस्तान में उन्हें सर्वोच्च सम्मान दिलाने के लिए प्रयासरत हैं."
कुरैशी ने कहा “भगत सिंह आजादी के सिपाही थे और उन्होंने अविभाजित भारत की आजादी के लिए लड़ाई लड़ी थी. इसलिए भगत सिंह की पाकिस्तान में बहुत इज्जत है. हर साल 23 मार्च को भगत सिंह, राजगुरु और सुखदेव की शहीदी दिवस मनाया जाता है."
हालांकि पाकिस्तान में आतंकी और कट्टरपंथी संगठन भगत सिंह के पक्ष में आवाज उठाने का विरोध करते रहे हैं. लेकिन वहां बड़ा तबका भगत सिंह को अपना हीरो मानता है. पाकिस्तान के लोगों ने आखिर लाहौर के शादमन चौक का नाम बदलकर भगत सिंह चौक करवा लिया है. इसके लिए वहां की सिविल सोसायटी ने लड़ाई लड़ी है. हालांकि पाकिस्तान का कट्टरपंथी संगठन जमात-उद-दावा इसके विरोध में था.
ऐसा था भगत सिंह का जीवन
भगत सिंह के प्रपौत्र यादवेंद्र सिंह संधू का कहना है कि वह इस वक्त भारत-पाकिस्तान दोनों की साझी विरासत हैं. हम लोग यहां उन्हें शहीद का दर्जा देने के लिए लड़ रहे हैं तो पाकिस्तान में भी वहां के लोग उन्हें मान-सम्मान दिलाने के लिए लड़ रहे हैं.
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