क्रोध करने वाले व्यक्ति को नहीं मिलता कर्मों का फल, भोगने पड़ते हैं कई कष्ट
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शास्त्रों में क्रोध को मनुष्य का सबसे बड़ा शत्रु माना गया है. भगवान श्री कृष्ण ने श्रीमद्भगवद्गीता में क्रोध को नरक का द्वार बताया है.

Bhagavad Gita: कहते हैं कि क्रोध में व्यक्ति खुद का भी नहीं रहता. क्रोध में व्यक्ति अर्थहीन बातें करने लगता हैं. शास्त्रों में क्रोध को मनुष्य का सबसे बड़ा शत्रु माना गया है. मनुष्य क्रोध में अपना आपा खोकर कुछ भी कर बैठता है. क्रोध और आंधी को एक समान बताया गया है, दोनों के शांत होने पर ही पता चलता है कि नुकसान कितना हुआ है, लेकिन, मनुष्य के क्रोध का कारण क्या है, भगवान श्री कृष्ण ने गीता में इस बारे में बताया है. तो आइए जानते हैं पंडित इंद्रमणि घनस्याल से मनुष्य को क्रोध क्यों नहीं करना चाहिए.
क्रोध करने के नुकसान
भगवान श्री कृष्ण ने श्रीमद्भगवद्गीता में क्रोध को नरक का द्वार बताया है. श्री कृष्ण ने कहा है कि जो मनुष्य बात बात पर क्रोधित हो उठते हैं, वो जीवन में कभी तरक्की नहीं करते हैं और जीवन में हमेशा दुखी रहते हैं. क्रोध करने से मनुष्य कभी भी सही निर्णय नहीं कर पाता है, जिसके फलस्वरूप मनुष्य का जीवन और भी कठिन हो जाता है. श्रीकृष्ण के अनुसार, बेवजह किये गये क्रोध से मनुष्य को कोई लाभ नहीं होता है, उसको अपने कर्मों का फल भी नहीं मिलता और उसे कष्ट भोगने पड़ते हैं.
भगवान श्री कृष्ण ने श्रीमद्भगवद्गीता में क्रोध को नरक का द्वार बताया है. श्री कृष्ण ने कहा है कि जो मनुष्य बात बात पर क्रोधित हो उठते हैं, वो जीवन में कभी तरक्की नहीं करते हैं और जीवन में हमेशा दुखी रहते हैं. क्रोध करने से मनुष्य कभी भी सही निर्णय नहीं कर पाता है, जिसके फलस्वरूप मनुष्य का जीवन और भी कठिन हो जाता है. श्रीकृष्ण के अनुसार, बेवजह किये गये क्रोध से मनुष्य को कोई लाभ नहीं होता है, उसको अपने कर्मों का फल भी नहीं मिलता और उसे कष्ट भोगने पड़ते हैं.
व्यक्ति के पतन की शुरुआत
भगवान श्री कृष्ण ने कहा है कि क्रोध सभी विपत्तियों का मूल कारण है, क्रोध सांसारिक बंधन का कारण है. भगवान श्री कृष्ण ने क्रोध को धर्म का नाश करने वाला बताया है, इसलिए मनुष्य को क्रोध का त्याग कर देना चाहिए. श्री कृष्ण ने बताया है कि क्रोध से भ्रम पैदा होता है, भ्रम से बुद्धि खराब होती है. जब बुद्धि व्यग्र होती है तो तर्क नष्ट हो जाता है. जब तर्क नष्ट होता है तब व्यक्ति का पतन शुरू हो जाता है. श्री कृष्ण ने भगवदगीता में क्रोध के कारण के साथ ही इसका निवारण भी बताया है.
भगवान श्री कृष्ण ने कहा है कि क्रोध सभी विपत्तियों का मूल कारण है, क्रोध सांसारिक बंधन का कारण है. भगवान श्री कृष्ण ने क्रोध को धर्म का नाश करने वाला बताया है, इसलिए मनुष्य को क्रोध का त्याग कर देना चाहिए. श्री कृष्ण ने बताया है कि क्रोध से भ्रम पैदा होता है, भ्रम से बुद्धि खराब होती है. जब बुद्धि व्यग्र होती है तो तर्क नष्ट हो जाता है. जब तर्क नष्ट होता है तब व्यक्ति का पतन शुरू हो जाता है. श्री कृष्ण ने भगवदगीता में क्रोध के कारण के साथ ही इसका निवारण भी बताया है.
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कर्म करते रहें
श्रीमद्भगवद्गीता गीता के अध्याय 2 में लिखा है कि मनुष्य को निरंतर कर्म करते रहना चाहिए तथा फल की इच्छा नहीं करनी चाहिए और किसी भी कार्य को करने से पहले उसके परिणाम को जान लेना चाहिए. मनुष्य को संयम के साथ कार्य करना चाहिए तथा नित्य नियम से भगवान की भक्ति करनी चाहिए और हमेशा धर्म के मार्ग पर चलना चाहिए.
श्रीमद्भगवद्गीता गीता के अध्याय 2 में लिखा है कि मनुष्य को निरंतर कर्म करते रहना चाहिए तथा फल की इच्छा नहीं करनी चाहिए और किसी भी कार्य को करने से पहले उसके परिणाम को जान लेना चाहिए. मनुष्य को संयम के साथ कार्य करना चाहिए तथा नित्य नियम से भगवान की भक्ति करनी चाहिए और हमेशा धर्म के मार्ग पर चलना चाहिए.
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अंशुमाला
अंशुमाला हिंदी पत्रकारिता में डिप्लोमा होल्डर हैं. इन्होंने YMCA दिल्ली से हिंदी जर्नलिज्म की पढ़ाई की है. पत्रकारिता के क्षेत्र में पिछले 13 वर्षों से काम कर रही हैं. न्यूज 18 हिंदी में फरवरी 2022 से लाइफस्टाइ...और पढ़ें
अंशुमाला हिंदी पत्रकारिता में डिप्लोमा होल्डर हैं. इन्होंने YMCA दिल्ली से हिंदी जर्नलिज्म की पढ़ाई की है. पत्रकारिता के क्षेत्र में पिछले 13 वर्षों से काम कर रही हैं. न्यूज 18 हिंदी में फरवरी 2022 से लाइफस्टाइ... और पढ़ें
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