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Navratri 2022: नवरात्रि में देवी भागवत पुराण सुनने का है विशेष महत्व, जानें कौनसा समय व विधि है सही

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देवी भागवत कथा धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष की प्राप्ति के लिए यह सर्वोत्तम साधन है. नवरात्रि में देवी भागवत कथा सुनने का विशेष महत्व है.चलिए जानते हैें इसे सुनने का सही समय और विधि

नवरात्रि में देवी भागवत पुराण सुनने का है विशेष महत्व, जानें विधिनवरात्रि में श्रीमद देवीभागवत कथा सुनने से पाप कट जाते हैं
Navratri 2022: नवरात्रि में श्रीमद्देवी भागवत कथा सुनने का विशेष महत्व है. नवरात्रि में 9 दिन तक इसका श्रवण- अनुष्ठान करने पर मनुष्य सभी पुण्य कर्मों से अधिक फल पा लेते हैं, इसलिए इसे नवाह यज्ञ भी कहा गया है, जिसका उल्लेख देवी भागवत पुराण में खुद भगवान शंकर व सूतजी ने किया है. जिन्होंने कहा है कि जो दूषित विचार वाले पापी, मूर्ख, मित्र द्रोही, वेद व पर निंदा करने वाले, हिंसक और नास्तिक हैं, वे भी इस नवाह यज्ञ से भुक्ति और मुक्ति को प्राप्त कर लेते हैं. आज हम आपको उसी देवी भागवत के कथा श्रवण की विधि और महत्व बताने जा रहे हैं.

श्रीमद देवी भागवत कथा के लाभ
पंडित रामचंद्र जोशी के अनुसार श्रीमद्देवी भागवत कथा धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष की प्राप्ति के लिए यह सर्वोत्तम साधन है. देवी भागवत पुराण के अनुसार जो पुरुष देवी भागवत के 1 श्लोक का भी भक्ति भाव से नित्य पाठ करता है, उस पर देवी प्रसन्न होती हैं. महामारी व भूत प्रेत बाधा मिट जाती है. पुत्र हीन पुत्रवान, गरीब धनवान और रोगी आरोग्य वान हो जाता है. इसका पाठ करने वाला यदि ब्राह्मण हो तो प्रकांड विद्वान, क्षत्रिय हो तो महान शूरवीर, वैश्य हो तो प्रचुर धनाढ्य और शूद्र हो तो अपने कुल में सर्वोत्तम हो जाता है.
श्रीमद्देवी भागवत सुनने का समय
पंडित जोशी के अनुसार देवी भागवत नवरात्रि में सुननी चाहिए. भागवत में खुद सूतजी ने कहा कि है कि चार नवरात्रि में इस पुराण का श्रवण करना चाहिए. जेष्ठ मास से लेकर 6 महीने पुराण सुनने के लिए उत्तम है. इसमें हस्त, अश्विनी, मूल, पुष्य, रोहिणी, श्रवण एवं मृगशिरा तथा अनुराधा नक्षत्र पुण्यतिथि और शुभ ग्रह व वार देखकर कथा सुनना उत्तम है. हालांकि अन्य महीनों में भी इसे सुना जा सकता है. पर उसमें भी तिथि, नक्षत्र और दिन का विचार जरूर कर लेना चाहिए.

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इस विधि से करें देवी भागवत कथा
पंडित जोशी कहते हैं कि देवी भागवत पुराण के अनुसार भागवत सुनने के लिए कथा स्थान को गोबर से लीपना चाहिए. सुंदर मंडप बनाकर केले के खंभे लगाकर ऊपर चांदनी लगा दें. फिर भगवान में आस्था रखने वाला श्रेष्ठ वक्ता पूर्व अथवा उत्तर की ओर मुख करके कथावाचन करें. कथा सूर्योदय से सूर्यास्त के कुछ पहले तक ही हो, जिसमें बीच में दो घड़ी का विश्राम लिया जा सकता है.
कथा में सभी वर्णों के लोगों को आमंत्रित किया जाए. नवाह यज्ञ भी विवाह जैसी यज्ञ सामग्री से करें. कथा वाचन होने तक श्रोता क्षोर कर्म यानी शेविंग नहीं करवाएं. जमीन पर सोने व ब्रह्मचर्य का पालन करते हुए सुबह अरुणोदय वेला में ही स्नान करें. कम बोलना व कम खाना तथा 9 दिन तक कन्या पूजन व भोजन इसमें श्रेष्ठ माना गया है. अंत में पुरुष महा अष्टमी व्रत के समान इसका भी उद्यापन करें.

कथा समाप्ति के दिन गायत्री सहस्रनाम या विष्णु सहस्त्रनाम का पाठ करें. दुर्गा सप्तशती मंत्रों से या देवी भागवत के मूल पाठ से या नवार्ण मंत्र से हवन करें या गायत्री मंत्र का उच्चारण करके व्रत सहित खीर का हवन करें. वस्त्र और धन से कथावाचक और ब्राह्मणों को संतुष्ट करें. देवी भागवत पुराण पुस्तक का भी दान करें.
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