दशकों तक अनजान रही ब्लैक होल के तारे को ‘फाड़ देने की घटना’
Agency:News18Hindi
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भारतीय मूल के वैज्ञानिक (Scientist of Indian Origin) की एक टीम ने ब्लैक होल (Black Hole) संबंधी एक बड़ी घटना का पता लगाया है जो दशकों तक खगोलविदों को दिखाई नहीं दी थी. इस घटना में एक ब्लैक होल तारे को निगल रहा है जिसे टाइडल डिसरप्शन इवेंट (TDE) कहा जाता है. यह घटना दशकों से हो रही थी लेकिन अब तक इसे सही तरह से अवलोकित कर पहचाना नहीं जा सका था.

ब्लैक होल (Black Hole) के बारे में हमें पहले से बहुत सी ऐसी जानकारियां और प्रणालियां भी हैं जिनकी साक्षात पुष्टि नहीं हुई है. नए अध्ययन में शोधकर्ताओं ने गैलेक्सी के मध्य में स्थित रहने वाले ब्लैक होल की ऐसी ही घटना को अवलोकित किया है जो दशकों से पहचानी नहीं जा सकी थी. भारतीय मूल के शोधकर्ता (Scientist of Indian Origin) की अगुआई में हुए अध्ययन में उन्होंने ब्लैक होल के द्वारा तारे के तोड़ कर निगल जाने की प्रक्रिया के अवलोकन की पुष्टि की है जिसे टाइडल डिसरप्शन इवेंट (tidal disruption events) कहा जाता है.
तारों के निगलने की प्रक्रिया
आमतौर पर गैलेक्सी के केंद्र में स्थिति सुपरमासिव ब्लैक होल के आसपास तारे उसका चक्कर लगाते रहते हैं. लेकिन कई बार जब ये तारे ब्लैक होल के ज्यादा नजदीक पहुंच जाते हैं तो ब्लैक होल इन तारों को निगल जाता है. इस प्रक्रिया को स्पेगैटिफिकेशन कहते हैं. लेकिन यह पूरी प्रक्रिया सरल नहीं होती है.
आमतौर पर गैलेक्सी के केंद्र में स्थिति सुपरमासिव ब्लैक होल के आसपास तारे उसका चक्कर लगाते रहते हैं. लेकिन कई बार जब ये तारे ब्लैक होल के ज्यादा नजदीक पहुंच जाते हैं तो ब्लैक होल इन तारों को निगल जाता है. इस प्रक्रिया को स्पेगैटिफिकेशन कहते हैं. लेकिन यह पूरी प्रक्रिया सरल नहीं होती है.
ब्लैक होल में गिर जाते हैं तारे
इस अध्ययन की अगुआई करने वाले और कैल्टेक में एस्ट्रोनॉमी के असिसटेंट प्रोफेसर विक्रम राय बताते हैं इन बदकिस्मत तारों क ब्लैक होल के आसपास के गुरुत्व का असर होता है जिससे यह पतली धारा में बदल जाते हैं और ब्लैक होल में गिर जाते हैं. यह सीधी सरल नहीं बल्कि बहुत ही जटिल प्रक्रिया होती है.
इस अध्ययन की अगुआई करने वाले और कैल्टेक में एस्ट्रोनॉमी के असिसटेंट प्रोफेसर विक्रम राय बताते हैं इन बदकिस्मत तारों क ब्लैक होल के आसपास के गुरुत्व का असर होता है जिससे यह पतली धारा में बदल जाते हैं और ब्लैक होल में गिर जाते हैं. यह सीधी सरल नहीं बल्कि बहुत ही जटिल प्रक्रिया होती है.
शक्तिशाली जेट का भी निर्माण
जैसे तारे के निगलने की प्रक्रिया पूरी होती है उनके अवशेष ब्लैक होल के आसपास घूमते रहे हैं और प्रकाश की अलग अलग तरगों के साथ चमकते हैं जिसे टेलीस्कोप पहचान सकते हैं. कई मामलों में तारों के अवशेष एक शक्तिशाली जेट के रूप में फेंक दिए जाते हैं जो रेडियो फ्रीक्वेंसी प्रकाश तरंगों के रूप में चमकती हैं.
जैसे तारे के निगलने की प्रक्रिया पूरी होती है उनके अवशेष ब्लैक होल के आसपास घूमते रहे हैं और प्रकाश की अलग अलग तरगों के साथ चमकते हैं जिसे टेलीस्कोप पहचान सकते हैं. कई मामलों में तारों के अवशेष एक शक्तिशाली जेट के रूप में फेंक दिए जाते हैं जो रेडियो फ्रीक्वेंसी प्रकाश तरंगों के रूप में चमकती हैं.
ब्लैक होल (Black Hole) के पास होने वाली ऐसी घटनाएं प्राकशकीय या एक्स रे टेलीस्कोप से खोजी जाती रही हैं. (प्रतीकात्मक तस्वीर: ESO)
भारतीय मूल के वैज्ञानिक की टीम
रवि और उनकी टीम में, जिसमें दो स्नातक छात्र भी शामिल थे, ऐसी घटना की खोज की है जिसमें ब्लैक होल तारे को निगल रहा है. इसे टाइडल डिसरप्शन इवेंट या टीडीई भी कहते हैं. इसके लिए शोधकर्ताओं ने पुराने रेडियो टेलीस्कोप के आंकड़ों की मदद ली थी. अभी तक खोजे गए 100 टीडीई में से यह केवल दूसरा ऐसा है जो रेडिया तरंगों के जरिए खोजा गया है.
रवि और उनकी टीम में, जिसमें दो स्नातक छात्र भी शामिल थे, ऐसी घटना की खोज की है जिसमें ब्लैक होल तारे को निगल रहा है. इसे टाइडल डिसरप्शन इवेंट या टीडीई भी कहते हैं. इसके लिए शोधकर्ताओं ने पुराने रेडियो टेलीस्कोप के आंकड़ों की मदद ली थी. अभी तक खोजे गए 100 टीडीई में से यह केवल दूसरा ऐसा है जो रेडिया तरंगों के जरिए खोजा गया है.
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ऐसे खोजे जाती हैं ये घटनाएं
इससे पहले रेडियो तरंगों के अवलोकन से 2020 में मारिन एंडरनसन ने खोजा था. रवि का कहना है कि टीडीई मूलतः ऑप्टिकल या फिर एक्स रे प्रकाश में खोजे जाते हैं. लेकिन इन प्रक्रिया से कुछ टीडीई धूल के कारण दिखाई नहीं देते हैं. रवि की टीम का यह शोध एस्ट्रोफिजिकल जर्नल में प्रकाशन के लिए स्वीकार हो गया है.
इससे पहले रेडियो तरंगों के अवलोकन से 2020 में मारिन एंडरनसन ने खोजा था. रवि का कहना है कि टीडीई मूलतः ऑप्टिकल या फिर एक्स रे प्रकाश में खोजे जाते हैं. लेकिन इन प्रक्रिया से कुछ टीडीई धूल के कारण दिखाई नहीं देते हैं. रवि की टीम का यह शोध एस्ट्रोफिजिकल जर्नल में प्रकाशन के लिए स्वीकार हो गया है.
अभी तक रेडियो टेलीस्कोप (Radio Telescope) से कुछ ही ऐसी घटनाएं खोजी जा सकी थीं.
(प्रतीकात्मक तस्वीर: Pixabay)
रेडियो सर्वे की शक्ति
लेकिन इस अध्ययन ने दर्शाया है कि टीडीई को रेडियो सर्वे से भी खोजा जा सकता है. टोरेंटो यूनिवर्सिटी की कुछ खगोलविदों ने भी कुछ नई टीडीई की खोज की है. वैज्ञानिकों ने अपनी पड़ताल संयुक्त रूप से इस शोध में प्रकाशित की है. अभी तक रेडियो तरंगों से खोजी गईं टीडीई घटनाएं किसी बड़ी जानी मानी गैलेक्सी में नहीं दिखी है.
लेकिन इस अध्ययन ने दर्शाया है कि टीडीई को रेडियो सर्वे से भी खोजा जा सकता है. टोरेंटो यूनिवर्सिटी की कुछ खगोलविदों ने भी कुछ नई टीडीई की खोज की है. वैज्ञानिकों ने अपनी पड़ताल संयुक्त रूप से इस शोध में प्रकाशित की है. अभी तक रेडियो तरंगों से खोजी गईं टीडीई घटनाएं किसी बड़ी जानी मानी गैलेक्सी में नहीं दिखी है.
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शोधकर्ताओं को उम्मीद है कि और ज्यादा टीडीई घटनाओं की खोज से यह पता चल सकेगा कि ये किसी तरह की गैलेक्सी में होती हैं और ब्रह्माण्ड में ऐसी कितनी घटनाएं हो रही हैं. शोधकर्ताओं ने न्यू मैक्सिको के नेशनल रेडियो एस्ट्रोनॉमी ऑबजर्वेटरी की कार्ल जदीजैनेस्की वेरी लार्ज ऐरे के दशकों के लिए गए आंकड़ों को स्कैन किया. उन्होंने पाया कि J1533+2727 नाम की घटना 1990 के दशक से शुरू हुई थी और 2017 में धुंधली हो गई.
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