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पुस्तक समीक्षा: क्षमा शर्मा के ‘पराँठा ब्रेकअप’ को पढ़ना सहजता से जीवन को ही पढ़ना है

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बेहद सरल और सादगी संपन्न क्षमा शर्मा का कहानी संग्रह ‘पराँठा ब्रेकअप’ पढ़ने के बाद इस बात का अहसास हुआ कि उनकी कहाननियों में भी वही सादगी है, जो उनके व्यक्तित्व में है.

क्षमा शर्मा के ‘पराँठा ब्रेकअप’ को पढ़ना सहजता से जीवन को ही पढ़ना हैक्षमा शर्मा की कहानियों में किसी तरह का पाखण्ड नहीं है, यही इन कहानियों की ताकत भी है.
– सुधांशु गुप्त

Parantha Breakup Book Review: कथाकार क्षमा शर्मा के दस कहानी संग्रह, चार उपन्यास, अनेक बाल उपन्यास और बाल कहानियों के कई संग्रह प्रकाशित हो चुके हैं. स्त्री विषयों पर भी उन्होंने बेपनाह लेखन किया है. पत्रकारिता का उनके पास लंबा अनुभव है. ज़ाहिर है इस अनुभव ने उन्हें जीवन को समझने का विचार दिया होगा.
बेहद सरल और सादगी संपन्न क्षमा शर्मा का कहानी संग्रह ‘पराँठा ब्रेकअप’ पढ़ने के बाद इस बात का अहसास हुआ कि उनकी कहाननियों में भी वही सादगी है, जो उनके व्यक्तित्व में है. इसका अर्थ यह कतई नहीं है कि वह बदल रही दुनिया, आधुनिक पीढ़ी के मैनरिज्म, उसकी भाषा और उसके विचारों से वाकिफ नहीं हैं. बल्कि उनकी कहानियों की खासियत यही है कि वह मध्यवर्ग की चोहद्दी पर रहकर इस बदलती पीढ़ी को न सिर्फ देख रही हैं, बल्कि उसके साथ समन्वय भी बिठाने की कोशिश कर रही हैं.

संग्रह की शीर्षक कहानी ‘पराँठा ब्रेकअप’ को पढ़कर यह अहसास हुआ कि वह युवा पीढ़ी से भी सकारात्मक संवाद बनाए रखती हैं. कहानी में मां-बाप हैं और उनकी आधुनिक विचारों वाली बेटी अन्नू है. अन्नू की दुनिया अलग है, उसके विचार और भाषा अलग है. विवाह उसकी प्राथमिकता में नहीं है. वह कमाती है, दुनिया घूमती है, उसके बहुत से पुरुष दोस्त हैं. उसका व्यवहार भी युवाओं जैसा ही है. रोहित उसका दोस्त है. वह अपनी मां के हाथ के बने पराँठे खिलाकर उससे ब्रेकअप कर लेती है. पुराने मूल्य टूटते और नये मूल्य बनते दिखाई दे रहे हैं. किसी भी तरह के रिश्तों को ढोना युवा पीढ़ी को पसंद नहीं है.
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स्त्रियों को लेकर कई बार क्षमा जी से बातचीत हुई. उनका हमेशा यही मानना रहा कि हमेशा पुरुष ही गलत नहीं होते, स्त्रियां भी पुरुषों के साथ कई बार बहुत गलत करती हैं. संग्रह की कई कहानियां ऐसी हैं जो स्त्री की बेवफाई को चित्रित करती हैं. ‘ज़िन्दगी तेरे कितने नाम’, ‘एक छोटी सी छलांग’ ऐसी ही कहानियां हैं, जिनमें स्त्री अपने पति और बच्चों को छोड़कर चली गई.
‘ज़िन्दगी तेरे कितने नाम’ में नायिका अपनी बेटी नंदी को छोड़कर दूसरे आदमी के साथ चली जाती है. पति नितांत अकेला रह जाता है. ‘एक छोटी सी छलांग’ में भी नायिका अपनी बेटी को छोड़कर दूसरे आदमी से शादी कर लेती है. बाद में पति भी दूसरी शादी कर लेता है और अंत में बेटी आत्महत्या कर लेती है.

क्षमा शर्मा की कहानियों में रिश्तों को नया रूप दिखाई देता है. आज अकारण नहीं है कि लड़कियां अकेली रहना चाहती हैं, वे अपने फैसले खुद लेती हैं. शादी जैसे बंधन में बंधना उन्हें रास नहीं आता. ‘फेसबुक पोस्ट’ ऐसी ही कहानी है. ‘सेकेंड चांस’ में नायिका नायक को छोड़कर किसी दूसरे पुरुष से शादी कर लेती है. वक्त बीतता है. वह फिर पहले पति के पास लौटना चाहती है. वह कहती है कि काश कि जिन्दगी सेकेंड चांस दे सकती. पति का अहम शायद आड़े आता है लेकिन नायक की मां उसे सेकेंड चांस देना मंजूर कर लेती हैं. लेकिन क्षमा शर्मा की कहानी के किरदार स्त्रियों के लिए लगातार बदलते ‘ड्रीम मैन’ को भी चित्रित करती हैं.
क्षमा शर्मा की कहानियां किसी और ग्रह से नहीं आतीं. वे बाकायदा इसी दुनिया की कहानियां हैं. उनका कथ्य और परिवेश हमारा देखाभाला है, उनके किरदारों से भी हम परिचित हैं. इसलिए वे हमें हमारी-सी कहानियां लगती हैं. लेकिन वे कहानियों में एक विचार की धारा भी जगह तलाश लेती हैं और साथ ही मौजूदा विषय भी उनकी कहानियों में सहजता से आते हैं. स्त्रियों का अजनबियों से बात करना कब खतरनाक हो सकता है. ‘मत पूछ तू औरत है’ में वह स्त्रियों के प्रति पुरुषों के नज़िरये की बात करती हैं.

पर्यावरण और प्रकृति भी क्षमा जी की कहानियों में आता है. ‘कोई बताएगा सपनों का पता’ कहानी की शुरुआत धुन्ध और धुएं से होती है. कोई इसके लिए पराली जलाने वालों यानी किसानों को दोष देता है, कोई बेपनाह चलने वाली गाड़ियों को. इस पूरे माहौल में कोई पानी को शुद्ध कराने, हवा को शुद्ध कराने के उपाय बेच रहा है. लेकिन नायिका अपनी रसोई के बाहर पेड़, प्रकृति, फूल और कौआ और बुलबुल देख रही है. ऐसा लग रहा था कि यह कहानी पर्यावरण बचाने रखने की पैरवी करेगी. लेकिन अचानक कहानी शिफ्ट होती है- नायिका के एक सपने में. नायिका को सपना दिखाई देता है कि उसका पहला पुरुष मित्र निशांत और उसका पति अंकुर आमने सामने बैठे हैं. स्मृतियों की पोटली खुलती है. अंत में निशांत सपने को नायिका के साथ कोमल खुशबू की तरह छोड़ गया था. क्या स्मृतियों की खुशबू ही प्रकृति है? क्या प्रकृति तभी बचेगी जब स्मृतियां बचेंगी?

संग्रह की तेरह कहानियों में सबसे विचारणीय कहानी है ‘एक सदी की आहट-आहट’. कहानी का पहला वाक्य है- ये तीन हजार पचास की सदी के दिन थे. यानी कहानी अगली सदी के तीसरे दशक में हैं. कहानी इस सदी की तस्वीर दिखाती है. ग्लोबल वार्मिंग और ग्लेशियर्स पिघलने के बावजूद मुंबई और चेन्नई अभी तक सही-सलीमत थे. लेकिन दुनिया बदल गई थी. कागज उद्योग बंद हो चुका था. अखबार अब म्यूजिम्स की शोभा बढ़ाते थे. अमेरिका लुट पिट गया था. यूएन की अब कोई नहीं सुनता था. इन सारे बदलावों के साथ जो सबसे अहम बदलाव आया वह था- लड़कों की वही स्थिति हो गई थी, जो आज लड़कियों की है. गर्भ में उनकी हत्याएं हो रही थीं, सड़कों पर उनके साथ छेड़छाड़ और बलात्कार की घटनाएं हो रही थीं. लड़कों के जन्म पर घरों में रोहा-राटा मच जाता था. पुरुषों को एम्पॉवर करने के लिए सरकारी अभियान चलाए जा रहे थे. बदलाव की दस्तक आते-आते पुरुषों के दरवाजे से लौट जाती थी और सोशल साइट्स पर यह लाइन बड़ी लोकप्रिय थी-अगले जन्म मोहे लरिका न कीजो.
वास्तव में यह कहानी आज के उस सद्विचार से जन्मी है जो लड़कियों की बदली हुई दुनिया को देखना चाहता है. लेकिन अगर क्षमा जी इस कहानी में सिर्फ इतना भर कर देतीं कि वह एक सपना देख रही हैं और सामने तीन हजार पचास का कैलेण्डर लगा है, तो कहानी अधिक तार्किक लगती. लेकिन इसके बावजूद स्त्री समाज को लेकर उनकी सद्इच्छाएं कहानी में दिखाई पड़ती हैं.

‘पराँठा ब्रेकअप’ की कहानियों को पढ़ना सहजता से जीवन को ही पढ़ना है. क्षमा जी की कहानियों में किसी तरह का पाखण्ड नहीं है, यही इन कहानियों की ताकत भी है.
पुस्तकः पराँठा ब्रेकअप
लेखकः क्षमा शर्मा
प्रकाशकः वाणी प्रकाशन
मूल्यः 399 रुपए

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क्षमा शर्मा के ‘पराँठा ब्रेकअप’ को पढ़ना सहजता से जीवन को ही पढ़ना है
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