चीन बॉर्डर पर मौजूद लिपुलेख का सफर: छियालेख से गुंजी की राह भी है कठिन
Author:
Agency:News18Hindi
Last Updated:
लिपुलेख के सफर में न्यूज़ 18 छियालेख की खतरनाक चढ़ाई पार करने के बाद गुंजी की ओर निकलता है. छियालेख से गुंजी का रास्ता निचले इलाके को निकलता है
छियालेख से गुंजी की एक तस्वीर (फाइल फोटो)पिथौरागढ़. भारत-नेपाल के बीच सीमा विवाद (Indo-Nepal Border Dispute) के दौरान लिपुलेख (Lipulekh) लगातार चर्चा में हैं. लद्दाख में चीन (China) एक बार फिर अपनी चालबाजियां दिखा रहा है. लेकिन इधर भारत ने चीन के सीने पर चढ़ाई कर दी है. कैलाश-मानसरोवर रूट में भारत ने चीन की दहलीज पर सीधी दस्तक देकर उसके आंगन तक सड़क पहुंचा दी है. जिसके बाद न सिर्फ ड्रैगन बल्कि उसके साथी नेपाल में भी कोहराम मचा है. लिपुलेख रोड का काम बीते 12 वर्षों से चल रहा था और जब यह पूरा हुआ तो भारत की चीन बॉर्डर पर सीधी पहुंच हो गई है. बड़ी बात यह है कि न्यूज़ 18 सबसे पहले भारत के उस अंतिम छोर पर पहुंचा, जहां तक पहुंच पाना तो दूर, सोचना भी नामुमकिन था. इस सड़क को निर्माण क्षेत्र में भारतीय सेना का बेजोड़ नमूना कहा जा रहा है. लिपुलेख के सफर में न्यूज़ 18 छियालेख की खतरनाक चढ़ाई पार करने के बाद गुंजी की ओर निकलता है. छियालेख से गुंजी का रास्ता निचले इलाके को निकलता है.
मात्र पांच किलोमीटर की दूरी तय करने के बाद गर्ब्यांग गांव आता है. यदि आप भारतीय नक्शे को देखेंगे तो चीन सीमा के करीब सबसे बड़ा भारतीय गांव गर्ब्यांग साफ दिखाई देता है. काली नदी के ऊपर बसा ये बड़ा गांव वर्ष 1976 से ही धीमे-धीमे धंस रहा है. 1976 में इस गांव में भारी भूस्खलन हुआ था जिसके बाद गर्ब्यांग के अधिकांश परिवार ऊधमसिंह नगर के तराई वाले हिस्सों में आकर बस गए. हालांकि कई परिवार अब भी गर्ब्यांग में ही प्रकृति से लड़ते हुए निवास कर रहे हैं.
बिजली सुविधा से वंचित है यह गांव
इस गांव में आजादी के 70 दशक बाद भी बिजली नहीं पहुंची है. सोलर लाइट से गर्ब्यांग के लोग काली रातों को रोशन करते हैं. भारी बारिश के बीच जब हम इस गांव से गुजर रहे थे तो तीन युवा हमें भीगते हुए ऊपर को जाते दिखे. उनसे बात करने पर पता चला कि वो पांच किलोमीटर की चढ़ाई पर बसे छियालेख के लिए निकले हैं. भूपेंद्र गर्ब्याल ने बताया कि घर में कोई बीमार हुआ है, जिसकी सूचना धारचूला तक पहुंचानी है. गांव में संचार का कोई जरिया नहीं है. कोई भी सूचना शेष दुनिया तक पहुंचाने के लिए छियालेख जाना जरूरी है.
नेपाल का सिम करना पड़ता है इस्तेमाल
छियालेख में नेपाली मोबाइल के सिग्नल आते हैं. इन्हीं नेपाली सिग्नलों के जरिए गर्ब्यांग गांव के लोग शेष दुनिया को आज भी अपना सुख-दुख बताते हैं. गांव के युवा शैलेंद्र गर्ब्याल कहते हैं कि उन्हें दुख होता है जब वो संचार के लिए नेपाल के सिग्नल का इस्तेमाल करते हैं, लेकिन उनकी यह मजबूरी है. नेपाल का सिम यूज करने के कारण उन्हें अपने ही मुल्क में आईएसडी से बात करनी पड़ती है, जिसके लिए उन्हें एक मिनट की कॉल के लिए 12 रुपये देने पड़ते हैं.
नहीं है कोई स्वास्थ्य सुविधा
गर्ब्यांग गांव में स्वास्थ्य की भी कोई सुविधा नहीं है. यह बात अलग है कि इस इलाके में रोड कटने से अब यहां लोग जल्द ही शेष दुनिया से जुड़ सकते हैं. नेपाल बॉर्डर से सटे इस गांव में एसएसबी की चौकी है जहां एसएसबी के जवान हर आने जाने वाले पर कड़ी निगाह रखते हैं. यही नहीं, बाहरी लोगों का नाम और पता भी नोट किया जाता है. गर्ब्यांग से काली नदी के किनारे 10 किलोमीटर का सफर तय कर गुंजी पहुंचा जा सकता है. गुंजी चीन के करीब सबसे बड़ी भारतीय व्यापारिक मंडी है. गुंजी के बाद ही विवादों में आए कालापानी और लिपुलेख तक पहुंचा जा सकता है.
ये भी पढ़ें: लिपुलेख का खतरनाक सफर: गगनचुंबी पहाड़ियां, नाले और हर पल बदलता मौसम का मिजाज
मात्र पांच किलोमीटर की दूरी तय करने के बाद गर्ब्यांग गांव आता है. यदि आप भारतीय नक्शे को देखेंगे तो चीन सीमा के करीब सबसे बड़ा भारतीय गांव गर्ब्यांग साफ दिखाई देता है. काली नदी के ऊपर बसा ये बड़ा गांव वर्ष 1976 से ही धीमे-धीमे धंस रहा है. 1976 में इस गांव में भारी भूस्खलन हुआ था जिसके बाद गर्ब्यांग के अधिकांश परिवार ऊधमसिंह नगर के तराई वाले हिस्सों में आकर बस गए. हालांकि कई परिवार अब भी गर्ब्यांग में ही प्रकृति से लड़ते हुए निवास कर रहे हैं.
बिजली सुविधा से वंचित है यह गांव
इस गांव में आजादी के 70 दशक बाद भी बिजली नहीं पहुंची है. सोलर लाइट से गर्ब्यांग के लोग काली रातों को रोशन करते हैं. भारी बारिश के बीच जब हम इस गांव से गुजर रहे थे तो तीन युवा हमें भीगते हुए ऊपर को जाते दिखे. उनसे बात करने पर पता चला कि वो पांच किलोमीटर की चढ़ाई पर बसे छियालेख के लिए निकले हैं. भूपेंद्र गर्ब्याल ने बताया कि घर में कोई बीमार हुआ है, जिसकी सूचना धारचूला तक पहुंचानी है. गांव में संचार का कोई जरिया नहीं है. कोई भी सूचना शेष दुनिया तक पहुंचाने के लिए छियालेख जाना जरूरी है.
नेपाल का सिम करना पड़ता है इस्तेमाल
छियालेख में नेपाली मोबाइल के सिग्नल आते हैं. इन्हीं नेपाली सिग्नलों के जरिए गर्ब्यांग गांव के लोग शेष दुनिया को आज भी अपना सुख-दुख बताते हैं. गांव के युवा शैलेंद्र गर्ब्याल कहते हैं कि उन्हें दुख होता है जब वो संचार के लिए नेपाल के सिग्नल का इस्तेमाल करते हैं, लेकिन उनकी यह मजबूरी है. नेपाल का सिम यूज करने के कारण उन्हें अपने ही मुल्क में आईएसडी से बात करनी पड़ती है, जिसके लिए उन्हें एक मिनट की कॉल के लिए 12 रुपये देने पड़ते हैं.
नहीं है कोई स्वास्थ्य सुविधा
गर्ब्यांग गांव में स्वास्थ्य की भी कोई सुविधा नहीं है. यह बात अलग है कि इस इलाके में रोड कटने से अब यहां लोग जल्द ही शेष दुनिया से जुड़ सकते हैं. नेपाल बॉर्डर से सटे इस गांव में एसएसबी की चौकी है जहां एसएसबी के जवान हर आने जाने वाले पर कड़ी निगाह रखते हैं. यही नहीं, बाहरी लोगों का नाम और पता भी नोट किया जाता है. गर्ब्यांग से काली नदी के किनारे 10 किलोमीटर का सफर तय कर गुंजी पहुंचा जा सकता है. गुंजी चीन के करीब सबसे बड़ी भारतीय व्यापारिक मंडी है. गुंजी के बाद ही विवादों में आए कालापानी और लिपुलेख तक पहुंचा जा सकता है.
ये भी पढ़ें: लिपुलेख का खतरनाक सफर: गगनचुंबी पहाड़ियां, नाले और हर पल बदलता मौसम का मिजाज
और पढ़ें