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अंबेडकर बनने के लिए मूंछ मुड़वाने को राजी नहीं था 73 साल का हीरो, बाद में निभाया ऐसे रोल कि अमर कर दिया किरदार

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नई दिल्लीः भारतीय सिनेमा में ऐसे कई अभिनेता हैं जिन्होंने रोल की परवाह किए बगैर ही पर्दे पर अपनी एक अलग पहचान रखी है. जैसे अनिल कपूर और जैकी श्रॉफ हमेशा ही फिल्मों में क्लीनशेव नहीं बल्कि मूछों के साथ ही नजर आते हैं. वहीं साउथ में भी कई ऐसे अभिनेता हैं और उन्हीं में से एक मामूटी हैं जिन्हें अपनी मूछों से बड़ा प्यार है. वे करोड़ों की फिल्म छोड़ सकते लेकिन मूछें नहीं मुड़वाते. लेकिन क्या आप जानते हैं कि एक फिल्म में मामूटी ने भी अपनी मूछों का बलिदान कर दिया था. इस आर्टिकल में हम उसी फिल्म के बारे में आपको बता रहें हैं जिसे पहले तो मामूटी ने रिजेक्ट कर दिया था लेकिन बाद में वे किसी तरह क्लीनशेव लुक के लिए मान गए और ऐसा रोल प्ले किया कि हमेशा के लिए उनका किरदार यादगार बन गया.

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<br />मलयालम मेगास्टार ममूटी के सबसे शानदार प्रदर्शनों में से एक हैं. हिंदी सिनेमा में उनकी एकमात्र शुरुआत 2000 में डॉ. बाबासाहेब अंबेडकर की फिल्म थी, जिसका निर्देशन जब्बार पटेल ने किया था, जिन्होंने मराठी में सामना, सिंहासन, उंबरथा और जैत रे जैत जैसी मौलिक न्यू-क्लासिक फिल्मों का निर्देशन किया था.
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<br />अगर कोई एक फिल्म है जो साबित करती है कि ममूटी देश के सबसे बेहतरीन अभिनेताओं में से एक हैं, तो वो निर्देशक जब्बार पटेल की डॉ. बाबासाहेब अंबेडकर है, जिसे 1998 में कई भाषाओं में रिलीज किया गया था.
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भारतीय संविधान के जनक' का किरदार निभाना अभिनेता के लिए सबसे चुनौतीपूर्ण कामों में से एक था, जिसमें उन्होंने अपनी सीमाओं को पार किया और साथ ही कुछ त्याग भी किए. 2021 में ओटीटीप्ले के साथ एक इंटरव्यू में, फिल्म के निर्देशक पटेल ने हमें बताया कि जब उन्होंने सीजीआई-रेंडर की गई तस्वीर के साथ अंबेडकर की भूमिका निभाने का विचार ममूटी को दिया तो शुरुआत में उनकी क्या प्रतिक्रिया थी.<br />भारतीय संविधान के जनक' का किरदार निभाना अभिनेता के लिए सबसे चुनौतीपूर्ण कामों में से एक था, जिसमें उन्होंने अपनी सीमाओं को पार किया और साथ ही कुछ त्याग भी किए. 2021 में ओटीटीप्ले के साथ एक इंटरव्यू में, फिल्म के निर्देशक पटेल ने हमें बताया कि जब उन्होंने सीजीआई-रेंडर की गई तस्वीर के साथ अंबेडकर की भूमिका निभाने का विचार ममूटी को दिया तो शुरुआत में उनकी क्या प्रतिक्रिया थी.
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निर्देशक ने कहा कि उन्होंने पुणे में सेंटर फॉर डेवलपमेंट ऑफ एडवांस्ड कंप्यूटिंग (सी-डैक) से ममूटी की एक तस्वीर ममूटी की फूले हुए गालों और बिना मूंछों के बनाने के लिए संपर्क किया था. फिर वो इसे मेगास्टार को दिखाने के लिए केरल ले गए, ताकि वो भूमिका के लिए सहमत हो जाएं.
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हालांकि, निर्देशक बताते हैं कि 'ममूटी ने शुरू में यह कहते हुए भूमिका करने से इनकार कर दिया कि उनमें और अंबेडकर में एकमात्र समानता यह है कि वे दोनों वकील हैं. फिर मैंने उन्हें चार तस्वीरें दिखाईं, जिनमें उनके मूल रूप से अंबेडकर में बदलाव दिखाया गया था. देखते ही वे चौंक गए और वे अपनी पत्नी के पास रसोई में भाग गए.
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<br />बिना मूछों की तस्वीर देख मामूटी ने अपनी पत्नी से कहा, ‘देखो इस आदमी ने (जब्बार पटेल) मेरे साथ क्या किया है. मैं अंबेडकर जैसा दिख रहा हूं’ और वो मान गईं,” निर्देशक ने कहा, हालांकि तस्वीरों ने उनके दिल में बदलाव ला दिया, लेकिन ममूटी फिर भी उस भूमिका को करने के लिए सहमत नहीं हुए. इसके बाद बेहतरीन फिल्म निर्माता अदूर गोपालकृष्णन को उन्हें स्क्रिप्ट सुनाने और आखिरकार हामी भरने के लिए मनाने में काफी समय लगा. जब्बार ने यह भी कहा कि पहले मेकअप ट्रायल में कुछ खास पल आए. उस दौरान मामूटी क्लीनशेव नहीं होना चाहते थे.
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निर्देशक बताते हैं कि वे अपनी मूंछें मुंडवाने के लिए राजी नहीं थे और वे खुद से नाराज थे. उन्होंने कहा, 'क्या आप जानते हैं कि मेरी मूंछें मेरे लिए क्या मायने रखती हैं?’ मलयाली महिलाएं उनकी मूंछों की वजह से उनके खूबसूरत लुक की दीवानी थीं और इसलिए मुझे उन्हें बताना पड़ा कि वे एक महान उद्देश्य के लिए अपनी मूंछें हटा रहे हैं.'
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उसी दौरान संयोग से अभिनेता के बेटे सलमान दुलकर भी उस समय मौजूद थे जब ममूटी ने अंबेडकर की भूमिका निभाने के लिए अपने चेहरे के बाल मुंडवाए थे. दुलकर उस समय के गवाह थे जब ममूटी ने गुस्से में अपनी मूंछें हटा ली थीं. उन्होंने कहा, 'अंकल, कृपया आइए. मेरे पिता बहुत गुस्से में हैं.' हमने उस वीडियो को रिकॉर्ड किया. दुलकर इसके लिए जिम्मेदार हैं.' खैर जैसे भी हो आखिरकार मामूटी ने अंबेडकर का रोल प्ले किया और उनका ये किरदार हमेशा के लिए यादगार बन गया. उन्हें देख लगता है कि वे ही इस किरदार के लिए सही विकल्प थे.
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अंबेडकर बनने के लिए कुर्बान की मूछें, यादगार बना दिया किरदार