
हिंद के दिल में निवास करती है हिंदी. हिंदी से हमारा अस्तित्व है. हिंदी भाषा के गौरव से ही हमारी पहचान है. मातृभाषा हिंदी को अंतर की गहराई से माप हम पाते हैं कि हिंदी से मूल्यवान कोई भाषा नहीं. हिंदी के शब्दों की गहराई, अर्थों का निरालापन, वाक्यों का सरलीकरण कितना उदात्त है, ये किसी से छिपा नहीं है. हिंदी जनसामान्य की भाषा है. मां की लोरी से निकलकर हिंदी शिशु की मुस्कान में विलीन हो जाती है. पिता के क्रोध में ढलकर बच्चे का भविष्य बना देती है. मंगलसूत्र में सुहाग बचा लेती है और राखी के धागों में भाई का जीवन सुरक्षित कर देती है. कौन सा स्थान है जहां हिंदी नहीं है? फिर भी मातृभाषा हिंदी के लिए कहा जाता है हिंदी अपनाओ.
हिंदी तो हमारी रग-रग में है. इससे अलग जो भी भाषा है वह हमारी नहीं है पर हमने अपना ली है. गुलामी की मानसिकता ढ़ोने की आदत जो पड़ गई है. पहले अंग्रेजों के गुलाम थे अब उनकी भाषा के हो गए हैं. कोई भाषा सीखनी या बोलनी बुरी बात नहीं है लेकिन अपनी भाषा का ज्ञान रिसता रहे ये उचित भी नहीं है. आगे बढ़ने की दौड़ में अंग्रेजी प्रहार करती है, घायल भी कर देती है लेकिन मरहम हिंदी ही लगाती है. सुकून हिंदी ही देती है. अंग्रेजी के मोह में हम डूब रहे हैं, तैर भी रहे हैं पर हमारी नौका हिंदी ही है जो हमें पार लगाती है. हिंदी के प्रख्यात लेखक भारतेन्दु हरिश्चन्द्र ने भी कहा है
निज भाषा की उन्नति अहै सब उन्नति को मूल
बिन निज भाषा ज्ञान के मिटे ना हिय को शूल
अर्थात् अपनी भाषा में ही हमारी प्रगति है. पश्चिमी सभ्यता अपनाकर कुछ लोग अंग्रेजी परिधानों के आवरण में लिपटकर अंग्रेजी बोलते हैं. अपने बच्चों को भी अंग्रेजी के शब्दों को बोलते देख फूला नहीं समाते हैं. बनावटीपन व कृत्रिमता जिनके रोम-रोम से प्रकट होती है वे हिंदी के महत्व को क्या समझेंगें? जिन्हें हिंदी बोलने में शर्म और अंग्रेजी पर गर्व होता है वे आज भी कहीं ना कहीं गुलाम हैं. हिंदी के दुश्मन हैं. मातृभाषा हिंदी हमारी मां के समान है. हिंदी हमारे माथे की बिंदिया में है, चूड़ियों की खनखनाहट में है. चुनरी के साथ लहराती है, साड़ियों की चुन्नटों में परत दर परत छिपी होती है. हिंदी हमसे अलग कहां है? हम इसकी उपस्थिति को नजरअंदाज कर ही नहीं सकते. हिंदी किसानों की भाषा है, गरीबों की भूख है, कमजोरों की ताकत है. हमारी लड़ाइयों में हिंदी है, मनमुटाव में हिंदी है. ये स्वाभिमान है हमारा, अभिमान है. जहां हिंदी नहीं है वहां हिंदुस्तान नहीं दिखाई देता. गरीब का पहनावा हिंदी है, उसमें झलकती गरीबी हिंदी है. बिलखते बच्चों का रोना हिंदी है. हिंदी हमारे खान-पान से लेकर हमारे पहनावे और सांसों में समाई हुई है.
आज के भौतिक पर्यावरण में जहां बच्चों की टूटी-फूटी अंग्रेजी बोलने पर खुश हुआ जाता है, जहां हिंदी बोलने वालों को कम पढ़ा-लिखा व कमजोर आंका जाता है, वहां हिंदुस्तान की जीवंतता कम हो जाती है पर गरुर कायम रहता है. अंग्रेजी बोलने में गर्व और हिंदी के ज्ञान में कमी के कारण शर्म कहां उचित है? हिंदुस्तान की आजादी से हमें सबक लेना चाहिए कि जिन अंग्रेजों के पंजों से छूटकर अनेक कष्ट सहकर हम आजाद हुए है. मुस्करा रहे हैं, यह आजादी हिंदी में है और वही हिंदी हमारी मुस्कराहटों और खिलखिलाहट की भाषा होनी चाहिए. विदेशी भाषा और विदेशी सभ्यता की नकल में हम अपना वैभव क्यों खो रहे हैं? यह सच है कि समाज का एक वर्ग अंग्रेजी को बहुत महत्व दे रहा है और इसे हम अपने बच्चों की प्रगति मानकर खुश भी हो रहें हैं पर हिंदी की उपेक्षा हमारे बच्चों को उनकी विरासत से दूर कर रही है.
हिंदी समृद्ध और मधुर भाषा है. सरल है, भावों से भरी है. हर किसी के हदय को स्पर्श करने की क्षमता है इसमें. अंग्रेजी कविताओं से खुश होने के साथ-साथ हिंदी की प्राथमिकता पर भी बल दें. वर्णमाला के कम होते ज्ञान से परिचय कराएं. हिंदी की महत्ता को बताएं. आलीशान स्कूलों की होड़ में अंग्रेजी माध्यम के पीछे दौड़ने वालों के कदम हिंदी की ओर मुड़ने चाहिए. देश की मातृभाषा को माता के समान ही गौरव मिलना चाहिए. परिवार में माता-पिता ही हिंदी की गरिमा को नहीं समझेंगे तो बच्चों की रुचि कैसे जगाएंगे? बात-बात में अंग्रेजी के शब्दों का प्रयोग करने वाले ना अंग्रेजी के निकट हो पाते हैं ना हिंदी के ज्ञान से परिपक्व. भाषा कोई भी हो बोलने में हर्ज नहीं लेकिन प्रमुखता अपनी ही भाषा को दें. अपनी भाषा की नैतिकता पर आंच आए ये असहनीय है. आज हिंदी भाषा कहीं ना कहीं सिसकती दिखाई देती है. उसके दर्द को अपने सीने में महसूस करें, उसकी कराह को सुने. हिंदुस्तान में रहकर हिंदी का प्रयोग करने में कैसी आनाकानी?
हिंदी हमारी रगों में दौड़ता लहू है. हर पड़ोसी का दर्द है. नारी की प्रसव पीड़ा है. बच्चे की किलकारी है. हिंदी में गंगा की लहरों सी पवित्रता है, यमुना की श्यामलता है. हिंदी अनंत विशाल आकाश है. हिंदी सागर की गहराई है जिसमें असंख्य रत्न हैं. हिंदी दादा-दादी का सम्मान है, बच्चों का संस्कार है, पुरस्कार है. इसकी उपेक्षा परिवार का विघटन है, समाज की दयनीयता है. एक बार किसी कार्यक्रम में जाने के लिए नीलू ने अपनी सहेली की कीमती साड़ी मांग ली. उसे पहन कर वह कार्यक्रम में चली तो गई पर सारे समय उसका ध्यान साड़ी पर ही रहा मांगी हुई जो थी. उसे आत्मगलानि हुई. दूसरे की मांगी हुई चीज से अपनी कम कीमत की वस्तु में ही सम्मान है. यहां तो भाषा के गौरव का प्रश्न है.
गर्व में भरकर हम भले ही अंग्रेजी को प्रमुखता देते हों पर हमारा सम्मान हिंदी भाषा के सम्मान में ही है. कई बार तो अंग्रेजी माहौल में बड़ी घुटन होती है जैसे सब मुखौटे लगाए हुए हो, तब गांव की चौपाल के हिंदी ठहाके बड़े अच्छे लगते हैं. पनिहारिनों के गीत बड़े प्यारे लगते हैं. लगता है हिंदी यहीं सिमट गई है लेकिन हिंदी का रास्ता बहुत लंबा है. राष्ट्र भाषा का गौरव प्राप्त हिंदी भाषा को 14 सितंबर 1949 को केन्द्र सरकार की आधिकारिक भाषा के रुप में माना गया. हिन्दुस्तान में हिंदी बोलने वाले हर क्षेत्र से हैं इसलिए हिंदी को राजभाषा का दर्जा मिला और 14 सितम्बर को हिंदी दिवस के रुप में मनाया जाता है. सभी हिंदी की महत्ता को समझें और हिंदी भाषा की उन्नति के लिए प्रयत्नशील रहें.
समसामयिक विषयों पर लेखन. शिक्षा, साहित्य और सामाजिक मामलों में खास दिलचस्पी. कविता-कहानियां भी लिखती हैं.
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